दिल्ली में विधानसभा चुनाव से पहले एक और मुद्दा गरमा गया है। इस बार विवाद का कारण है कैग (CAG) रिपोर्ट, जिसमें दिल्ली की आबकारी नीति के कारण सरकारी खजाने को 2,026 करोड़ रुपये का नुकसान होने का दावा किया गया है। यह रिपोर्ट एक बार फिर दिल्ली सरकार और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच जुबानी जंग का कारण बन गई है। इस मुद्दे पर दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार को कड़ी फटकार लगाई है।
दिल्ली सरकार को हाईकोर्ट का तगड़ा संदेश
हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा कि कैग रिपोर्ट को विधानसभा में क्यों नहीं पेश किया गया? जस्टिस सचिन दत्ता ने कहा, “जिस तरह से आप अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट रहे हैं, उससे संदेह पैदा होता है। आपको तुरंत रिपोर्ट को विधानसभा अध्यक्ष को भेजना चाहिए था और इस पर चर्चा करानी चाहिए थी।” कोर्ट ने इस मामले को लेकर दिल्ली सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाए और यह भी कहा कि यह स्थिति ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ है।
CAG रिपोर्ट: क्या है इसमें खास?
CAG की रिपोर्ट में यह आरोप लगाया गया है कि दिल्ली की आबकारी नीति के चलते दिल्ली सरकार को 2,026 करोड़ रुपये का भारी नुकसान हुआ है। बीजेपी लगातार इस रिपोर्ट को लेकर दिल्ली सरकार पर हमला कर रही है। पार्टी का कहना है कि यह नुकसान आम जनता का पैसा है, और दिल्ली सरकार को इस पर जवाब देना चाहिए। हालांकि, आम आदमी पार्टी ने इस रिपोर्ट को ‘फर्जी’ बताते हुए कहा कि यह बीजेपी का सियासी खेल है।
बीजेपी और AAP के बीच जुबानी जंग
बीजेपी इस मुद्दे को लेकर पूरी तरह से हमलावर है, जबकि आम आदमी पार्टी इसे राजनीति का हिस्सा मानती है। बीजेपी ने आरोप लगाया है कि रिपोर्ट को लेकर सरकार की ओर से कोई गंभीर कदम नहीं उठाए गए। वहीं, AAP ने यह भी कहा कि बीजेपी अपने कार्यालय में यह रिपोर्ट तैयार करती है, जिससे इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठता है।
इस बीच, बीजेपी ने कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने अदालत से अनुरोध किया था कि वह विधानसभा स्पीकर को आदेश दे कि वह इस रिपोर्ट को सदन में पेश करने के लिए सत्र बुलाएं। हाईकोर्ट ने इस मामले में अगले सुनवाई की तारीख 15 जनवरी तय की है।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और दोनों पक्षों की दलीलें
हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों ने अपने-अपने तर्क पेश किए। बीजेपी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने कोर्ट में यह कहा कि दिल्ली सरकार को सीएजी की रिपोर्ट तुरंत विधानसभा के स्पीकर को भेजनी चाहिए और इस पर सदन में बहस होनी चाहिए।
वहीं, सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने बीजेपी पर पलटवार करते हुए कहा कि जब मामला अदालत में है, तो बीजेपी द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करना राजनीति करने जैसा है। उन्होंने कहा, “यह मामला विचाराधीन है और बीजेपी इसे सियासी रंग दे रही है।”
क्या कहता है हाईकोर्ट?
हाईकोर्ट ने इस पूरे मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि वह राजनीति में नहीं पड़ सकता। जस्टिस सचिन दत्ता ने कहा कि यह सवाल नहीं है कि उपराज्यपाल कार्यालय ने रिपोर्ट को सार्वजनिक किया या नहीं। असल मुद्दा यह था कि दिल्ली सरकार को रिपोर्ट को विधानसभा के स्पीकर के पास भेजना चाहिए था और इस पर सदन में चर्चा होनी चाहिए थी। कोर्ट ने दिल्ली सरकार की ‘टालमटोल’ की कार्रवाई पर गंभीर चिंता जताई।
क्यों महत्त्वपूर्ण है यह मामला?
यह मामला दिल्ली की आबकारी नीति और सरकार के वित्तीय प्रबंधन पर सवाल उठाता है। अगर कैग की रिपोर्ट सही है, तो दिल्ली सरकार को इस बड़े वित्तीय नुकसान का जवाब देना पड़ेगा। साथ ही, रिपोर्ट को विधानसभा में पेश किए बिना चुप्प रहना सरकार के लिए परेशानी का कारण बन सकता है, क्योंकि इस पर विधानसभा में चर्चा होनी चाहिए थी।
यह मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि विधानसभा चुनाव करीब हैं और ऐसे मुद्दे जनता के बीच सरकार की छवि को प्रभावित कर सकते हैं। बीजेपी इस रिपोर्ट को अपने चुनावी प्रचार का एक हथियार बनाना चाहती है, जबकि AAP इसे सियासी साजिश करार दे रही है।
अगली सुनवाई और आगे का रास्ता
इस मामले की अगली सुनवाई अब 15 जनवरी को होगी। कोर्ट ने दिल्ली सरकार को कैग रिपोर्ट को विधानसभा में पेश करने का आदेश दिया था, लेकिन सरकार ने अभी तक इस पर कोई कदम नहीं उठाया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या दिल्ली सरकार 15 जनवरी तक इस पर कोई कदम उठाती है या फिर कोर्ट के और कड़े निर्देशों का सामना करती है।