दिल्ली का रामलीला मैदान ना केवल धार्मिक आयोजनों का स्थल है, बल्कि यह एक ऐतिहासिक और सियासी जगह भी बन चुका है। इस मैदान का इतिहास मुगलों से लेकर आजादी की लड़ाई, राजनीतिक आंदोलनों और शपथ ग्रहण समारोहों तक फैला हुआ है। हाल ही में बीजेपी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के लिए इस मैदान का चुनाव किया, जो इसे एक बार फिर इतिहास बनाने वाला स्थल बना देगा।
रामलीला मैदान की ऐतिहासिक शुरुआत
दिल्ली का रामलीला मैदान, अजमेरी गेट के पास स्थित है, और इसका इतिहास मुगलों के समय से जुड़ा हुआ है। मुगलों के शासन में जब औरंगजेब की क्रूरता चरम पर थी, तब इस मैदान को कई बार उजाड़ा गया था। इसके बावजूद हिंदू सैनिकों ने छुपकर रामलीला और अन्य धार्मिक उत्सव मनाए। औरंगजेब के समय में इसे बस्ती का तालाब कहा जाता था, क्योंकि यहां एक बड़ा तालाब था और इसके चारों ओर बस्तियां बस गई थीं।
लेकिन जब बहादुर शाह जफर का शासन आया, तो उन्होंने रामलीला के आयोजन को बढ़ावा दिया। वह खुद भी इस मैदान की रौनक देखकर बहुत खुश होते थे। यह समय था जब रामलीला मैदान को धार्मिक आयोजनों के लिए प्रमुख स्थान के रूप में मान्यता मिली। हालांकि मुगलों के बाद, अंग्रेजों के शासन में इसे एक बार फिर से समतल किया गया और यहां अंग्रेजों ने अपनी छावनी बना ली थी।
रामलीला मैदान का राजनीतिक परिवर्तन
आजादी के बाद रामलीला मैदान का उपयोग केवल धार्मिक आयोजनों तक सीमित नहीं रहा। यह स्थल अब सियासी आंदोलनों और रैलियों का भी केंद्र बन चुका है। यहां महात्मा गांधी से लेकर सरदार पटेल जैसे नेता आजादी की लड़ाई को लेकर जन जागरूकता फैलाते थे। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में इस मैदान को कई बार स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष का गवाह बनने का मौका मिला।
सन् 1945 में मोहम्मद अली जिन्ना को यहीं पर मौलाना की उपाधि दी गई थी, वहीं 1952 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जम्मू और कश्मीर के लिए सत्याग्रह किया था। इस मैदान से 1965 में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने पाकिस्तान के खिलाफ भारत की विजय का जश्न मनाया और देशवासियों को संबोधित किया।
रामलीला मैदान का आंदोलन और सत्ता परिवर्तन
सत्तर के दशक के बाद रामलीला मैदान सत्ता परिवर्तन और राजनीतिक आंदोलनों के लिए भी एक महत्वपूर्ण स्थल बन गया। 1975 में जयप्रकाश नारायण ने यहीं से भ्रष्टाचार के खिलाफ संपूर्ण क्रांति का नारा दिया, जो पूरे देश में गूंज उठा। इस आंदोलन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को राष्ट्रीय आपातकाल घोषित करने पर मजबूर कर दिया।
आगे चलकर, 1977 में जब आपातकाल हटा और पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार सत्ता में आई, तब जयप्रकाश नारायण ने एक बार फिर यहां से देशवासियों को संबोधित किया। यह रामलीला मैदान ही था जहां इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन के दौरान अन्ना हजारे ने जनलोकपाल बिल के लिए आमरण अनशन किया। इस आंदोलन के बाद से दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस मैदान में आम आदमी पार्टी का गठन किया था, जो 2013 में दिल्ली की सत्ता में आई।
रामलीला मैदान का आधुनिक राजनीतिक महत्व
आज के समय में भी रामलीला मैदान सियासी आंदोलन और शक्ति प्रदर्शन का एक बड़ा केंद्र बना हुआ है। बीजेपी सरकार ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले इस मैदान में विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन की रैली आयोजित की थी, जो एक बड़े सियासी मंच के रूप में उभरा। इसी मैदान में अरविंद केजरीवाल ने भी 2013 में दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, और अब एक बार फिर बीजेपी ने दिल्ली के नए मुख्यमंत्री के लिए रामलीला मैदान को चुना है।
रामलीला मैदान की यह ऐतिहासिक पृष्ठभूमि इसे एक बदलाव और संघर्ष का स्थल बनाती है। यहां से उठने वाली हर आवाज न केवल दिल्ली बल्कि देश के कोने-कोने तक पहुंचती है। आज यह स्थल राजनीति, समाज और इतिहास का गवाह है, जो अपनी ऐतिहासिक धरोहर और संघर्षों के लिए प्रसिद्ध है।