दिल्ली विधानसभा चुनाव में ‘स्विंग वोटर्स’ का खेल, 2025 में बदल सकती है सत्ता की तस्वीर

दिल्ली में 2025 विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होने वाला है, और इस बार आम आदमी पार्टी (AAP), बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला होने की संभावना है। पिछले कुछ सालों से दिल्ली का वोटिंग पैटर्न बेहद दिलचस्प और असामान्य रहा है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मतदाताओं के वोट करने का तरीका अलग-अलग रहता है, जिसे राजनीति में “स्विंग वोटर” कहा जाता है। स्विंग वोटर्स वही होते हैं, जो चुनावों में अपने वोट का मिजाज बदलते हैं, और यही वोटर्स सत्ता का खेल बनाने या बिगाड़ने की ताकत रखते हैं।

दिल्ली में स्विंग वोटर्स का अहम रोल

दिल्ली के हालिया चुनावों में स्विंग वोटर्स की अहम भूमिका रही है। 2014 में जहां बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी सातों सीटें जीत ली थीं, वहीं 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने जबरदस्त प्रदर्शन किया और बीजेपी को कड़ी टक्कर दी। यह ताजा उदाहरण दिखाता है कि कैसे लोकसभा और विधानसभा चुनावों में दिल्ली के वोटरों का मिजाज बदलता है, और यही बदलाव चुनाव के परिणामों पर असर डालता है।

स्विंग वोटर्स की पहचान: कौन हैं ये मतदाता?

स्विंग वोटर्स का मिजाज अचानक बदल जाता है। दिल्ली में लगभग 20 से 25 फीसदी ऐसे वोटर हैं, जिनका चुनावी रुख लोकसभा और विधानसभा चुनावों में अलग-अलग होता है। ये मतदाता न तो किसी एक पार्टी के प्रति पूरी तरह वफादार होते हैं और न ही किसी एक पार्टी को लगातार समर्थन देते हैं।

स्विंग वोटर्स के आंकड़े: सवर्ण, ओबीसी, दलित और मुस्लिम समाज

दिल्ली में स्विंग वोटर्स की पहचान करने के लिए सीएसडीएस (CSDES) के आंकड़े काफी महत्वपूर्ण साबित होते हैं। दिल्ली के सवर्ण समाज के लगभग 30 फीसदी वोट स्विंग करते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में जहां बीजेपी को सवर्ण समाज का 75 फीसदी समर्थन मिला था, वहीं 2020 के विधानसभा चुनाव में यह समर्थन घटकर 54 फीसदी रह गया था।

साथ ही, ओबीसी समाज के भी 25-30 फीसदी वोट स्विंग करते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को ओबीसी समाज का 64 फीसदी समर्थन मिला था, जो कि 2020 के विधानसभा चुनाव में घटकर 50 फीसदी हो गया।

दलित समाज का भी 45-50 फीसदी वोट स्विंग करता है। 2019 में जहां बीजेपी को 44 फीसदी दलित समर्थन मिला था, वह 2020 में घटकर 25 फीसदी रह गया। आम आदमी पार्टी ने इस वोट को अधिकतर हासिल किया, और उसका समर्थन बढ़कर 69 फीसदी हो गया था।

मुस्लिम समाज भी दिल्ली में एक बड़ा स्विंग वोट बैंक है, जिसमें करीब 55-60 फीसदी वोट स्विंग करते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मुस्लिम वोटों का सिर्फ 7 फीसदी समर्थन मिला था, जो कि 2020 के विधानसभा चुनाव में घटकर 3 फीसदी रह गया।

क्या 2025 में बदल जाएगी दिल्ली की सत्ता की दिशा?

अब सवाल यह उठता है कि क्या 2025 में दिल्ली के चुनाव परिणाम बदलेंगे? क्या स्विंग वोटर्स का मिजाज पहले जैसा ही रहेगा, या फिर सियासी समीकरण बदल सकते हैं?

दिल्ली में बीजेपी का वोट शेयर लगभग 35 फीसदी है, जबकि आम आदमी पार्टी का वोट शेयर 25 फीसदी के आसपास है। कांग्रेस का वोट शेयर आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच सिमट गया है, लेकिन फिर भी स्विंग वोटर्स के हिसाब से चुनाव के परिणाम में उलटफेर हो सकता है। अगर 2015 और 2020 की तरह ही वोटिंग पैटर्न रहा, तो आम आदमी पार्टी को फायदा हो सकता है।

2024 के लोकसभा चुनावों का असर

2024 के लोकसभा चुनावों के परिणाम भी दिल्ली के विधानसभा चुनाव पर असर डाल सकते हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 54.35 फीसदी वोट मिले थे, जबकि आम आदमी पार्टी को 24.17 फीसदी और कांग्रेस को 18.91 फीसदी वोट मिले थे।

2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मिलकर चुनाव लड़ी थीं, लेकिन विधानसभा चुनाव में दोनों ही पार्टी अलग-अलग मैदान में होंगी। अगर दिल्ली में 2020 की तरह वोटिंग पैटर्न रहा, तो बीजेपी को परेशानियां झेलनी पड़ सकती हैं।

क्या बीजेपी की रणनीति चलेगी?

दिल्ली में अगर बीजेपी अपनी लोकसभा की जीत को विधानसभा चुनाव में भी दोहरा पाने में सफल हो जाती है, तो वह दिल्ली के सत्ता पर काबिज हो सकती है। लेकिन स्विंग वोटर्स के रुख को देखकर यह भी कहा जा सकता है कि आम आदमी पार्टी के पास सत्ता का खेल पलटने की पूरी ताकत है।

इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांटे का मुकाबला होने की संभावना है, और इसका फैसला स्विंग वोटर्स के हाथों में होगा। इस बार अगर वोटिंग पैटर्न वही रहा, तो दिल्ली में सत्ता का खेल बदल सकता है।

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