दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के मतदान में जबरदस्त उत्साह देखने को मिला है। अब तक के आंकड़े और वोटिंग प्रतिशत को देखकर यह कहा जा सकता है कि इस बार राजधानी दिल्ली में मतदाताओं ने अपनी ताकत का एहसास कराया। चुनाव आयोग के मुताबिक, शाम 6 बजे तक दिल्ली में 60.42 प्रतिशत मतदान हो चुका है, जबकि पिछली बार यानी 2020 में 62.80 प्रतिशत मतदान हुआ था। इस बार मतदान में मामूली कमी देखी गई, लेकिन इसका असर सरकार पर किस तरह होगा, यह सवाल अब हर किसी के दिमाग में है।
चलिए, मतदान के इन आंकड़ों और वोटिंग प्रतिशत से समझते हैं कि दिल्ली की राजनीति का मिजाज क्या है और सियासी हवा किस दिशा में बह रही है।
मतदान में बढ़ोतरी का क्या है सियासी असर?
दिल्ली में पिछले कुछ सालों में मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी देखने को मिली है, और हर बार यह बदलाव सियासी गणना को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, 2003, 2008, 2013 और 2015 के विधानसभा चुनावों में वोट प्रतिशत में वृद्धि हुई थी। खासतौर पर 2003 में 4.43 प्रतिशत, 2008 में 4.1 प्रतिशत, 2013 में 8 प्रतिशत और 2015 में 1.45 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई थी।
इससे पहले, 2013 को छोड़कर कभी भी वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी से सरकार में उलटफेर नहीं हुआ था, हालांकि सीटों की संख्या में कमी और बढ़ोतरी जरूर हुई थी। 2003 में वोट बढ़ने से कांग्रेस की सीटों में 5 की कमी आई, जबकि 2008 में बढ़े वोटों का सीधा असर कांग्रेस की सीटों पर पड़ा, और पार्टी को 4 सीटों का नुकसान हुआ।
लेकिन 2013 में कांग्रेस को बड़ा नुकसान हुआ, जब पार्टी 8 सीटों पर सिमट गई। उस चुनाव में वोट बढ़ने का सीधा फायदा बीजेपी और आम आदमी पार्टी (AAP) को हुआ। 2015 में भी यही हुआ, जब वोट बढ़ने से आम आदमी पार्टी को 67 सीटों पर जीत मिली।
अब, 2025 में दिल्ली में भी वोटिंग प्रतिशत बढ़ने की संभावना है, और ऐसे में आम आदमी पार्टी (AAP) की सीटों में कमी आ सकती है, जैसा कि कुछ सियासी पंडितों ने कहा है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पहले ही 55 सीटों पर जीत का दावा किया था, जबकि 2020 में उनकी पार्टी ने 62 सीटों पर जीत दर्ज की थी। अगर वोटों में बढ़ोतरी का यह ट्रेंड जारी रहा, तो परिणाम कुछ अलग हो सकते हैं।
झारखंड और महाराष्ट्र का अनुभव: बढ़ते वोट, बदलती राजनीति
दिल्ली चुनाव से पहले झारखंड और महाराष्ट्र में भी विधानसभा चुनाव हुए थे, और इन दोनों राज्यों में वोटिंग प्रतिशत में बढ़ोतरी देखने को मिली थी। 2019 के मुकाबले, झारखंड में 3 प्रतिशत अधिक मतदान हुआ था, और इसका फायदा हेमंत सोरेन के गठबंधन को हुआ था, जो 2024 में 56 सीटों पर जीत गए थे।
महाराष्ट्र में भी 4 प्रतिशत अधिक मतदान हुआ था। 2019 में यहां 62 प्रतिशत वोट पड़े थे, और इस बार 66 प्रतिशत वोटिंग हुई। इस बदलाव का सीधा असर महायुति गठबंधन पर पड़ा, जिसने 236 सीटों पर जीत हासिल की थी। इन दोनों राज्यों में महिलाओं के बढ़ते वोट को सत्ता वापसी का कारण माना गया है।
दिल्ली में भी महिलाओं के लिए कई लोक-लुभावन वादे किए गए हैं, और अगर इन वादों का असर हुआ, तो इसका सीधा फायदा आम आदमी पार्टी को हो सकता है। महिलाएं, खासकर सशक्तिकरण की दिशा में कुछ कदम उठाने के लिए, चुनाव में अहम भूमिका निभा सकती हैं।
मुस्लिम बहुल इलाकों में वोटर्स का क्रेज: सीलमपुर और मुस्तफाबाद की राजनीति
दिल्ली में मुस्लिम बहुल इलाकों की सियासत भी इस चुनाव में अहम है। सीलमपुर और मुस्तफाबाद में मतदान प्रतिशत काफी अधिक देखने को मिला है। दोनों सीटों पर आम आदमी पार्टी ने पिछली बार जीत दर्ज की थी, लेकिन इस बार इन इलाकों में पार्टी को तगड़ी चुनौती मिलती दिखाई दे रही है।
मुस्तफाबाद में असदुद्दीन ओवैसी के उम्मीदवार ताहिर हुसैन मैदान में हैं, और बीजेपी की तरफ से मोहन सिंह विष्ट चुनावी मैदान में हैं। आप ने यहां से पूर्व विधायक हसन अहमद के बेटे आदिल को टिकट दिया है।
सीलमपुर में भी मुकाबला कड़ा है। यहां आम आदमी पार्टी ने चौधरी मतीन अहमद के बेटे चौधरी जुबेर को टिकट दिया है। बीजेपी ने अनिल गौर को, और कांग्रेस ने अब्दुल रहमान को उम्मीदवार बनाया है। इन दोनों इलाकों में उम्मीदवारों के बीच सीधी टक्कर देखने को मिलेगी, और यह इलाके चुनाव परिणाम पर असर डाल सकते हैं।
क्या होगा दिल्ली की सत्ता का भविष्य?
इस चुनाव में मतदान प्रतिशत और सियासी समीकरणों को देखकर यह कहा जा सकता है कि दिल्ली की राजनीति में इस बार कुछ बड़ा बदलाव हो सकता है। हालांकि, चुनावी परिणाम अभी भी सस्पेंस में हैं। अगर मतदान में हुई बढ़ोतरी का असर सियासी पार्टियों पर पड़ा, तो दिल्ली में सत्ता का समीकरण बदल सकता है।
लेकिन, इस समय सबसे बड़ी चुनौती यह है कि कौन सी पार्टी इन वोटों का सही फायदा उठाएगी। दिल्ली के मतदाता इस बार उम्मीद कर रहे हैं कि सत्ता में बदलाव से उन्हें उनकी आवाज़ सुनी जाएगी।