नई दिल्ली: भारत का प्रदूषण स्तर डब्लूएचओ द्वारा निर्धारित भारत वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं कर रहा, जिसके कारण देश में प्रत्येक व्यक्ति की उम्र कम से कम एक से दो साल और दिल्ली जैसे प्रदूषित शहर में छह साल तक घट रही है। वहीं अगर हम डब्लूएचओ के मानकों को पूरा करते हैं तो देश में प्रत्येक व्यक्ति की उम्र चार से पांच साल तक बढ़ सकती है।”
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा हाल ही में जारी की गई सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में भारत के 14 शहर शामिल थे, लेकिन इससे भी ज्यादा चौंका देने वाली बात यह है कि भारत का प्रदूषण स्तर संगठन द्वारा निर्धारित भारत वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं कर रहा है जिसके कारण देश में प्रत्येक व्यक्ति की उम्र कम से कम एक से दो साल और दिल्ली में छह साल तक घट रही है।
लंग केयर फॉउंडेशन के अध्यक्ष व प्रोफेसर डॉ. अरविंद कुमार ने समाचार एजेंसी आईएएनएस के साथ बातचीत में कहा, ” भारत का प्रदूषण स्तर डब्लूएचओ द्वारा निर्धारित भारत वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं कर रहा, जिसके कारण देश में प्रत्येक व्यक्ति की उम्र कम से कम एक से दो साल और दिल्ली जैसे प्रदूषित शहर में छह साल तक घट रही है। वहीं अगर हम डब्लूएचओ के मानकों को पूरा करते हैं तो देश में प्रत्येक व्यक्ति की उम्र चार से पांच साल तक बढ़ सकती है।”
डॉ. अरविंद कुमार ने कहा, “दरअसल इसके पीछे वजह है देश और दिल्ली का पीएम2.5 स्तर। हाल ही में अमेरिका के बर्कले अर्थ संगठन ने एक स्टडी की है, जिसमें फेफड़ों और शरीर के अन्य हिस्सों को नुकसान पहुंचाने वाले पीएम2.5 की क्षमता को सिगरेट के धुएं के साथ सह-संबंधित किया गया था, उनका निष्कर्ष था कि 22 माइक्रोग्राम क्यूबिट मीटर पीएम 2.5 एक सिगरेट के बराबर है। अगर आप 24 घंटे तक 22 माइक्रोग्राम के संपर्क में आते हैं तो आपके शरीर को एक सिगरेट से होने वाला नुकसान हो रहा है।”
सर्दियों में दिल्ली वाले रोज 50 सिगरेट तक ‘पीते’ हैं
उन्होंने कहा कि अगर हम दिल्ली के एक साल का औसत देखें तो यह 140 से 150 माइक्रोग्राम क्यूबिट मीटर रहा, जिसे भाग करने पर यह छह से सात सिगरेट बनता है। इसलिए हम सब दिल्ली वासियों ने रोजाना कम से कम छह से सात सिगरेट तो पी ही हैं, जबकि सर्दियों में इसकी संख्या 10 से 40 सिगरेट तक पहुंच जाती है। पिछले साल पीएम2.5 999.99 से ऊपर चला गया था तो धूम्रपान नहीं करने वाले लोगों ने भी 40 से 50 सिगरेट पी।
दिल्ली में प्रदूषण से सुरक्षा के सवाल पर उन्होंने कहा, “अगर आप दिल्ली में रह रहे हैं और चाह रहे हैं कि हमारे अंगों को नुकसान न हो यह तो बिल्कुल असंभव हैं। बाकी अगर जहां प्रदूषण ज्यादा है तो आप वहां जाने से बचें, वहां शारीरिक गतिविधि न करें, घर के अंदर रहिए, दरवाजे-खिड़कियां बंद रखिए, कोई भी ऐसी गतिविधि जिससे आपकी सांस तेज होती हो वह न करें।”
साधारण मास्क लगाना बेकार
उन्होंने कहा, “बाकी एयर प्यूरीफायर बिल्कुल पैसे की बर्बादी है, उसमें बहुत ज्यादा पैसा खर्च कर थोड़े से लोगों को थोड़े से समय के लिए बहुत थोड़ा सा फायदा होता है। एक बात यह भी कि अगर आप इन एयर प्यूरीफायर के फिल्टर एक साल में नहीं बदलते हैं तो यह डर्टीफायर हो जाएगा। वही हाल मास्क का भी है, साधारण मास्क केवल दिखावा है उससे कुछ नहीं होता। केवल एक मास्क थोड़ा बहुत बचाव करता है वह एन 95 मास्क है, लेकिन इसे भी ज्यादा देर तक नहीं पहना जा सकता क्योंकि यह बहुत सख्त होता है और इसे 10 से 15 मिनट तक ही लगाया जा सकता है। हां अगर आप किसी बदबूदार जगह से निकल रहे हैं तो आप उसका प्रयोग कर सकते हैं।”
डॉ. अरविंद कुमार ने कहा, “मेरे लिए तो यह राष्ट्रीय आपातकाल है, इसमें सभी को तुरंत सघन प्रयास शुरू कर देना चाहिए और हम इसे कल के लिए टालेंगे तो हम अपने परसो को खतरनाक बना रहे हैं।”
क्या करें कि सुधरें हालात ?
प्रदूषण को रोकने के लिए सरकार द्वारा किस तरह के कदम उठाए जाए के सवाल पर प्रोफेसर अरविंद ने कहा, “सरकार को कोयले से चलने वाले 500 से ज्यादा ऊर्जा संयंत्रों के उत्सर्जन को पश्चिमी देशों के उत्सर्जन मानकों के बराबर बनाना चाहिए और उन्हें लागू करना चाहिए। जब सरकार पैसे की कमी की बात करती है तो वह लोगों के जिंदगियों के सामने कुछ भी नहीं है। इसलिए फैक्ट्रियों में जो मानक हैं उनको तुरंत लागू किया जाना चाहिए, हमारी गाड़ियों में पेट्रोल, डीजल इंजनों में बीएस6 तकनीक को लाया जाना चाहिए और शहरों में कूड़े को जलाने की जो पक्रिया शुरू हुई है उसके लिए तुरंत उपाय करने चाहिए, दिल्ली में तो यह बड़ी समस्या हो गई है और दूसरे महानगर बड़ी तेजी से इस ओर अग्रसर हो रहे हैं।”
उन्होंने कहा, “साथ ही फसलों के जलाने की समस्या मानवजनित है उसका कितना भी सख्त उपाय क्यों न हो उसे किया जाना चाहिए, चाहे उसके लिए सेना को शामिल कर युद्ध स्तर पर उसका समाधान निकालना है तो लोगों के स्वास्थ्य के खातिर उसे किया जाना चाहिए, नहीं तो इसकी भारी कीमत हमें चुकानी पड़ेगी।”