आइए जानते हैं कि भारतीय इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और अमेरिकी इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन में क्या अंतर है और ये कैसे काम करते हैं.
अमेरिका में बैलेट पेपर से मतदान पर है जोर
अमेरिका में वोटिंग तकनीक पर नजर रखने वाली संस्था ने 2022 के मिड टर्म इलेक्शन के आंकड़ों के हवाले से बताया था कि रजिस्टर्ड मतदाताओं में से 70 फीसदी ने बैलेट पेपर से मतदान को प्राथमिकता दी.इसमें मतदाता अपने हाथ से ही बैलेट पेपर पर निशान लगाता है.इन बैलेट पेपर को मशीने के जरिए स्कैन किया जाता है.बहुत असाधारण स्थिति में ही उसे हाथ से गिना जाता है.
वहीं 23 फीसदी मतदाताओं ने बैलेट मार्किंग डिवाइस (BMD) का इस्तेमाल किया. इसमें मतदाता अपना मत व्यक्त करने के लिए मशीन का इस्तेमाल करते हैं. इसका प्रिंटआउट निकलता है.इसे एक मशीन से स्कैन किया जाता है.
अमेरिका की ईवीएम
सात फीसदी मतदाताओं ने डायरेक्ट रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रानिक (DRE) का इस्तेमाल किया. डीआरई अपनी मेमोरी में वोट को सुरक्षित रखता है.ये मशीनें वोट का पेपर रिकॉर्ड भी देती हैं.इस व्यवस्था का इस्तेमाल करने वालों की संख्या साल-दर-साल कम हो रही है.साल 2004 में 28.9 फीसदी मतदाताओं ने अपना वोट देने के लिए डायरेक्ट रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल किया था.
डीआरई की टचस्क्रीन वोटिंग मशीन से कोई पेपर बैलेट नहीं निकलता है और न ही इसका ऑडिट हो सकता है और न ही इसको वेरिफाई किया जा सकता है.इसमें मतदाता किसी गड़बड़ी का पता नहीं लगा सकता है,क्योंकि उसे सही मतदान दिखाई देगा, जबकि डिजिटल तरीके से गलत वोट रिकॉर्ड होता है.धांधली से बचने के लिए लगाए गए वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रायल (VVPAT) भी बैलेट पेपर जैसी सटीक जानकारी देने में नाकाम रहे.
अमेरिका की इलेक्ट्रॉनिक वोट मशीन की सबसे बड़ी खामी यह बताई जाती है कि इसमें इलेक्ट्रॉनिक वोट के बैकअप के लिए कोई फिजिकल रिकॉर्ड नहीं है.इसका मतलब यह है कि चुनाव अधिकारी इस बात पर भरोसा करने के लिए मजबूर हैं कि मशीनें हैक या खराब नहीं हो सकती जिससे वोट बदला या खो सकता है.
अमेरिकी ईवीएम की विश्वसनीयता का संकट
अमेरिका में डायरेक्ट रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रानिक को बनाने का काम अलग-अलग कंपनियां करती हैं. इसलिए उनकी विश्वसनीयता को लेकर संदेह जताया जाता रहा है.
हर राज्य तय करता है कि वे किस प्रणाली और मशीन का उपयोग करेंगे, और अक्सर ऐसा होता है कि मौजूदा बजट बहुत सीमित होते हैं.
अमेरिका की अधिकांश ईवीएम सीधे-सीधे इंटरनेट से नहीं जुड़ी होती हैं. लेकिन इससे यह तय नहीं होता कि वो हैक नहीं की जा सकती हैं.हर चुनाव से पहले ईवीएम की प्रोग्रामिंग की जाती है. इसमें उम्मीदवारों का ब्यौरा डाला जाता है. इसे इलेक्शन मैनेजमेंट सिस्टम (ईएमएस)के जरिए किया जाता है. ईएमएस आमतौर पर लैपटॉप या डेस्कटॉप के जरिए किया जाता है. इन लैपटॉप और डेस्कटॉप का इस्तेमाल दूसरे काम के लिए भी होता है. इस दौरान वो इंटरनेट से जुड़े हो सकते हैं. इस दौरान हैकर उनका इस्तेमाल कर सकते हैं. उसमें कोई वायरस डाल सकते हैं.
कैसी होती है भारत की ईवीएम
ईवीएम या इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन बैटरी से चलने वाली एक ऐसी मशीन,जो मतदान के दौरान डाले गए वोटों को दर्ज करती है और वोटों की गिनती भी करती है.ये मशीन तीन हिस्सों से बनी होती है. एक होती है कंट्रोल यूनिट (सीयू), दूसरी बैलेटिंग यूनिट (बीयू). ये दोनों मशीनें पांच मीटर लंबी एक तार से जुड़ी होती हैं. तीसरा हिस्सा होता है वीवीपैट.
बैलट यूनिट पर मतदाता बटन दबाकर वोट देता है और दूसरी यूनिट उस वोट को स्टोर किया जाता है.एक बैलेट यूनिट में 16 उम्मीदवारों के नाम दर्ज किए जा सकते हैं.अगर उम्मीदवार अधिक हों तो अतिरिक्त बैलेटिंग यूनिट्स को कंट्रोल यूनिट से जोड़ा जा सकता है.चुनाव आयोग के अनुसार,ऐसी 24 बैलेटिंग यूनिट एकसाथ जोड़ी जा सकती हैं,जिससे नोटा समेत अधिकतम 384 उम्मीदवारों के लिए मतदान करवाया जा सकता है. कंट्रोल यूनिट बूथ के मतदान अधिकारी के पास होती है. वहीं बैलेट यूनिट तीन तरफ से घेरे में रखी रहती है.वहां लोग वोट डालते हैं.