नील आर्मस्ट्रॉन्ग के नाम को किसी परिचय की जरूरत नहीं क्योंकि अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के महत्वाकांक्षी अपोलो 11 कार्यक्रम के तहत चांद पर पहली बार कदम रखने वाले इंसान बने थे। नील का जन्म ओहियो को वापाकाओनेटा में 5 अगस्त 1930 को हुआ था। 20 जुलाई 1969 को वे चंद्रमा पर कदम रखने वाले पहले अंतरिक्ष यात्री बने थे। लेकिन जब वो धरती पर वापस लौटे तो उनका जीवन पूरी तरह बदल गया। 16 जुलाई 1969 को लॉन्च अपोलो 11 मिशन संपन्न होने के कुछ समय बाद ये किस्सा मशहूर हुआ कि आर्मस्ट्रॉन्ग ने इस्लाम कबूल कर लिया क्योंकि उन्हें चांद पर आजान सुनाई दी थी। लेकिन क्या ऐसा सच में हुआ था? चलिए जानने की कोशिश करते हैं।
दावे के मुताबिक, चांद पर गए अपोलो 11 के क्रू सदस्यों ने एक अजनबी सी आवाज सुनी थी। लेकिन वो उस भाषा या ध्वनि का अर्थ नहीं समझे थे। हालांकि, बाद में जब आर्मस्ट्रॉन्ग इजिप्ट में थे तब उन्होंने वैसी ही ध्वनि सुनी और पूछताछ करने पर उन्हें पता चला कि वो आजान थी। ये जानते ही आर्मस्ट्रॉन्ग ने इस्लाम कबूल कर लिया था। आर्मस्ट्रॉन्ग के साथ एडविन आल्ड्रिन चांद पर सहयात्री थे, जो कि आर्मस्ट्रॉन्ग के 19 मिनट बाद चांद पर उतरे थे और अगले कई घंटों तक दोनों साथ में ही चांद पर रहे थे। एडविन ने एक मैगजीन को 1970 में बताया था कि ‘जब मैं लूनर मॉड्यूल से चांद की सतह पर उतरा तो कुछ देर वहां खामोशी थी। मैंने टेस्टामेंट के एक हिस्से का पाठ किया था और फिर चर्च की दी हुई वाइन मैंने प्याले में भरी थी।’ एडविन के लिखे इस पूरे लेख में कहीं ऐसा ज़िक्र नहीं था कि कोई ध्वनि या अजान जैसी आवाज सुनाई दी हो।
कई बार इस बात का खंडन किया गया कि ऐसी कोई आवाज चांद पर नहीं सुनाई दी थी। साथ ही इस बात का भी सबूत है कि ये अफ़वाहें किस कदर प्रचारित हो चुकी थीं कि आर्मस्ट्रॉन्ग ने इस्लाम कबूल किया। सालों बाद नासा की वेबसाइट नासा.जीओवी पर भी खंडन करते हुए कहा गया कि नासा ने 1969 में हुई मून लैंडिंग के वक्त की पूरी ट्रांस्क्रिप्ट यानी प्रतिलिपि दस्तावेज़ और ऑडियो जारी किए हैं। इनमें ऐसी किसी आवाज का जिक्र नहीं है। वहीं दूसरी तरफ आर्मस्ट्रॉन्ग ने खुले मंचों से समय-समय पर हुए सवाल जवाब के सत्रों में भी इन खबरों को महज़ अफ़वाह करार दिया गया।