अमेरिकी राजनीति में एक नया भूचाल आ गया है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने सलाहकार बोर्ड में दो ऐसे व्यक्तियों को नियुक्त किया है जिनके नाम आतंकवाद से जुड़े काले अध्यायों में दर्ज हैं। आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के ट्रेनिंग कैंप से प्रशिक्षित इस्माइल रॉयर आज व्हाइट हाउस की नीतियों पर सलाह देगा। वहीं शेख हमजा यूसुफ, जिस पर अल-कायदा और हमास से संबंध रखने के गंभीर आरोप हैं, अब ट्रम्प प्रशासन का हिस्सा बन चुका है। यह नियुक्ति न सिर्फ अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के लिए सिरदर्द बनी है, बल्कि भारत जैसे देशों की सुरक्षा चिंताओं को भी बढ़ा दिया है। आखिर क्यों ट्रम्प ने ऐसे विवादित चेहरों को अपने सलाहकार मंडल में जगह दी? क्या यह अमेरिका की आतंकवाद विरोधी नीतियों पर पानी फेरने जैसा नहीं है?
कैसे एक आतंकी बना व्हाइट हाउस सलाहकार?
इस्माइल रॉयर का किस्सा किसी थ्रिलर फिल्म की पटकथा से कम नहीं है। साल 2000 में इस्लाम कबूल करने के बाद वह सीधे पाकिस्तान के लश्कर-ए-तैयबा ट्रेनिंग कैंप पहुंच गया। कश्मीर में भारतीय सेना के खिलाफ हमलों में शामिल होने के बाद अमेरिकी FBI ने 2003 में उसे गिरफ्तार किया। कोर्ट में उसने खुद स्वीकार किया कि उसने अन्य आतंकियों को लश्कर कैंप में भर्ती कराया था। 20 साल की सजा सुनाई गई, लेकिन महज 13 साल बाद ही वह जेल से बाहर आ गया। और आज वही रॉयर ट्रम्प प्रशासन के ‘व्हाइट हाउस सलाहकार बोर्ड ऑफ लीडर्स’ का हिस्सा है।
शेख हमजा कैसे बना ट्रम्प का खास?
शेख हमजा यूसुफ की कहानी भी कम चौंकाने वाली नहीं। एक आयरिश कैथोलिक परिवार में जन्मे यूसुफ ने 1977 में इस्लाम कबूल किया। मध्य पूर्व में लंबे समय तक रहने के दौरान उसने अल-कायदा और हमास जैसे संगठनों से संबंध बनाए। अमेरिकी खोजी पत्रकार लारा लूमर के अनुसार, यूसुफ ने जायतुना कॉलेज के माध्यम से इस्लामिक कट्टरपंथ को बढ़ावा दिया। यूएई सरकार से उसके गहरे संबंध हैं, जहां उसका संगठन इस्लामिक एक्स्ट्रीमिज्म को फंडिंग करने के आरोपों से घिरा रहा है। ऐसे व्यक्ति को ट्रम्प ने अपना सलाहकार बनाकर अमेरिकी सुरक्षा हितों के साथ किस तरह का खिलवाड़ किया है?
क्या ट्रम्प आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं?
प्रखर पत्रकार लारा लूमर ने इन नियुक्तियों पर करारी चोट की है। उनका सीधा सवाल है कि जिन संगठनों को अमेरिका ने आतंकी घोषित किया है, उनसे जुड़े लोगों को सरकार में जगह देना क्या देशद्रोह नहीं? लूमर ने दस्तावेजी सबूतों के साथ दिखाया है कि कैसे रॉयर और यूसुफ ने वर्षों तक आतंकी संगठनों को बढ़ावा दिया। ट्रम्प प्रशासन का यह कदम अमेरिकी संसद में भी तूफान ला सकता है, खासकर तब जब 2024 के चुनाव नजदीक हैं।
ट्रंप का यह फैसला भारत के लिए कितना गंभीर?
बता दें कि इस नियुक्ति का सबसे गंभीर असर भारत पर पड़ सकता है। लश्कर-ए-तैयबा वही संगठन है जिसने 26/11 मुंबई हमले जैसी घटनाओं को अंजाम दिया। अगर अमेरिका में उससे जुड़े लोगों को सरकारी संरक्षण मिलने लगे, तो यह भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी के लिए एक बड़ा झटका होगा। भारतीय खुफिया एजेंसियों को आशंका है कि पाकिस्तान इसका फायदा उठाकर कश्मीर में आतंकवाद को और हवा दे सकता है। इससे यह सवाल भी उठ रहा है कि ट्रम्प वाकई पाकिस्तान के एजेंडे को बढ़ावा दे रहे हैं।
अमेरिकी सुरक्षा बनाम ट्रम्प की राजनीति
ट्रम्प की यह नियुक्ति उनकी विवादास्पद राजनीतिक शैली का एक और उदाहरण है। एक तरफ वे आतंकवाद के खिलाफ कड़े बयान देते हैं, दूसरी ओर आतंकी पृष्ठभूमि वालों को सरकार में जगह दे रहे हैं। यह न सिर्फ अमेरिकी सुरक्षा बलों के मनोबल को ठेस पहुंचाएगा, बल्कि वैश्विक आतंकवाद विरोधी मोर्चे को भी कमजोर करेगा। भारत को अब अपनी कूटनीति में सतर्कता बरतनी होगी, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय राजनीति के इस नए दांव-पेंच में उसके राष्ट्रीय हित दांव पर लगे हैं। फिलहाल, यह सवाल हर किसी के जहन में है किक्या ट्रम्प वाकई अमेरिका की सुरक्षा चाहते हैं या फिर यह सब सिर्फ उनके वोट बैंक की राजनीति है?