विश्वजीत भट्टाचार्य: पेट्रोल और डीजल की कीमतों में लगातार इजाफा हो रहा है, लेकिन अचरज की बात ये है कि महंगाई का आंकड़ा लगातार कम होता जा रहा है. सत्ता पर बैठी बीजेपी कह रही है कि ईंधन भले ही महंगा हो, लेकिन रोजमर्रा की चीजों की कीमतें न बढ़ने को ही अच्छे दिन मानना चाहिए. तो क्या अच्छे दिनों का बीजेपी का ये फलसफा ठीक है ? आर्थिक मामलों के जानकारों के मुताबिक मामला इसके उलट है.
जनवरी से पेट्रोल-डीजल की कीमतों में हो रही बढ़ोतरी
जनवरी 2018 से देखें, तो पेट्रोल की कीमतों में लगातार इजाफे का दौर जारी है. 30 जनवरी को पेट्रोल की कीमत 62 रुपए 96 पैसे से 80 रुपए 79 पैसे के बीच थी, वो 13 सितंबर 2018 को 81 रुपए से लेकर 88 रुपए 39 पैसे तक जा पहुंचा है. वहीं, डीजल की बात करें तो 30 जनवरी 2018 को इसकी कीमत 60 रुपए 11 पैसे से 69 रुपए 53 पैसे तक थी. 13 सितंबर 2018 को यही डीजल 73 रुपए 8 पैसे से 77 रुपए 58 पैसे तक जा पहुंचा है.
ईंधन महंगा, पर घटे महंगाई के आंकड़े
आम तौर पर माना यही जाता है कि महंगाई और ईंधन यानी पेट्रोल-डीजल की कीमतों के बीच सीधा संबंध है. यानी ईंधन की कीमत बढ़ने के साथ ही रोजमर्रा की चीजों की कीमतों में भी उछाल आता है, लेकिन दिसंबर 2017 से लेकर अब तक देखें, तो महंगाई लगातार कम होती गई है.
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दिसंबर 2017 में खुदरा महंगाई की दर 5.07% थी. जबकि, जनवरी 2018 में महंगाई की दर घटकर 4.44% हो गई. फरवरी 2018 में खुदरा महंगाई दर और घटी और ये 4.28% रही. मार्च में खुदरा महंगाई की दर में थोड़ा इजाफा हुआ और ये 4.58% रही. अप्रैल और मई 2018 में महंगाई की दर में इजाफा देखा गया. अप्रैल 2018 में खुदरा महंगाई की दर 4.87% और मई में 4.92% रही. जुलाई 2018 में महंगाई की दर ने फिर गोता लगाया और ये 4.17% पर आ गई. जबकि, अगस्त के ताजा आंकड़ों में खुदरा महंगाई की दर 4 फीसदी से भी नीचे 3.69% दर्ज की गई.
ईंधन महंगा होने पर भी महंगाई कैसे कम ?
महंगे ईंधन के बावजूद महंगाई के आंकड़े कम होने के बारे में दिल्ली से आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ शुभमय बनर्जी का कहना है कि ये आंकड़े गिर इस वजह से रहे हैं, क्योंकि लोग बाजार से चीजें कम खरीद रहे हैं. यानी सप्लाई ज्यादा है और डिमांड कम. इस वजह से पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों के बावजूद रोजमर्रा की चीजों के दाम नहीं बढ़े हैं. शुभमय के मुताबिक इसके अलावा सब्जी समेत तमाम जरूरी चीजों के उत्पादन में भारत दुनिया में काफी ऊपर है. विनिर्माण क्षेत्र भी नोटबंदी के झटके से उबर रहा है. इसका सीधा असर चीजों की कीमत न बढ़ने से है.
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अन्य विकसित देशों के साथ कदमताल
आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ शुभमय बनर्जी का ये भी कहना है कि ईंधन और महंगाई के बीच रिश्तों का जो ट्रेंड चल रहा है, वो काफी पहले से विकसित देशों में होता रहा है. इसकी वजह उत्पादन में बढ़ोतरी है. भारत अगर इस रफ्तार को बनाए रखता है, तो बाजार में चीजों की कीमतों में और गिरावट आ सकती है.
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क्या इसे अच्छे दिन माने जाएं ?
तो महंगाई के आंकड़े घटने को क्या अच्छे दिन माने जाएं ? शुभमय का कहना है कि अच्छे दिन की बात तो तब कही जा सकती है, जब आम लोगों की खरीदने की ताकत यानी क्रय शक्ति बढ़े. जबकि, फिलहाल बाजार में चीजें इसलिए सस्ती हैं, क्योंकि उनके खरीदारों की संख्या कम हुई है.
लेखक वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं, इनसे [email protected] के जरिए संपर्क किया जा सकता है.