पूरे देश में आज विजय दशमी के त्योहार को पूरे धूधाम से मनाया जा रहा है। साल शारदीय नवरात्रि के समापन पर दशहरा (Dussehra 2020) मनाया जाता है। दुनिया में इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है। आज के दिन प्रभु श्रीराम (Shree Ram) की पूजा के साथ ही बुराई के रुप में रावण के पुतले के दहन की परंपरा है। हालांकि देश में कई स्थान हैं जहां रावण के पुतले को जलाने की बजाए मंदिरों में उसकी देवता की तरह पूजा होती है।
उत्तर प्रदेश में ग्रेटर नोएडा के बिसरख गांव हैं। जहां रावण का मंदिर बना हुआ और लोग पूरी आस्था के साथ उसकी पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इसी स्थान पर रावण का जन्म हुआ था। बिसरख गांव रावण का ननिहाल था।
कानपुर के शिवाला में भी रावण का मंदिर है। जिसका नाम दशानन मंदिर है। यहां के लोगों का मानना है कि रावण राक्षसों के राजा नहीं बल्कि ज्ञानी, कुशाग्र बुद्धि वाले महापंडित थे। यहां भी रावण का पुतला नहीं जलाते।
मध्य प्रदेश के मंदसौर में भी रावण के पुतले का दहन करने की बजाय उसकी पूजा की जाती है। कहा जाता है कि यहां रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका था। ऐसे में यहां रावण को दामाद की उपाधि दी गई है।
राजस्थान के जोधपुर में भी रावण की पूजा होती है। यहां कुछ लोग खुद को रावण का वंशज मानते हैं। यही वजह है कि दशहरे के अवसर पर रावण मंदिर में उसकी पूजा करते हैं।
महाराष्ट्र के अमरावती में गढ़चिरौली के पास पारसवाड़ी एक छोटा-सा गांव है। यहां रहने वाली गोंड जनजाति के लोग मानते हैं कि महाज्ञानी रावण भी गोंड था। और ये लोग उसके वंशज हैं। यही वजह है कि यहां के लोग रावण और उसके पुत्र को देवता मानकर पूजते हैं।