विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में गरीब और अमीर में भेदभाव किया जा रहा है। यहां दर्शन शुल्क और वीआइपी कल्चर का विरोध करते हुए इसे भ्रष्टाचार की वजह भी बताया जा रहा है। इस संबंध में स्वस्तिक पीठ के पीठाधीश्वर डॉ. अवधेशपुरी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है।
डॉ. अवधेशपुरी ने इसे नागरिकों के संवैधानिक मूल अधिकार, समानता एवं धार्मिक स्वतंत्रता का हनन बताया है। उन्होंने दर्शन शुल्क एवं वीआइपी कल्चर को बन्द करने की मांग की है। पत्र में लिखा कि प्रदेश में भाजपा की सरकार है, जिसे हिन्दूवादी माना जाता है पर ऐसी सरकार के कार्यकाल में भी भगवान महाकाल के दरबार में नागरिकों के संवैधानिक मूल अधिकारों का हनन किया जा रहा है। दर्शन शुल्क व वीआईपी कल्चर द्वारा गरीब और अमीर के बीच भेदभाव किया जा रहा है। गरीब भक्तों को भगवान से दूर किया जा रहा है।
पत्र में उन्होंने बताया कि एक भी मस्जिद, गिरजाघर, चर्च या गुरुद्वारे में न ही वीआइपी कल्चर है और न दर्शन के नाम पर शुल्क लिया जाता है। हिंदुओं के मंदिरों का पहले तो सरकारीकरण किया गया है और अब उन्हें व्यावसायिक केंद्र बनाते हुए वीआईपी कल्चर विकसित करते हुए हिंदू श्रद्धालुओं से दर्शन का शुल्क लिया जा रहा है।
डॉ. अवधेशपुरी का कहना है कि अनुच्छेद 26 हमें धार्मिक स्वतंत्रता धार्मिक संस्थाओं की स्थापना, संपत्ति का अर्जन, पोषण, स्वामित्व, प्रशासन एवं धार्मिक कार्यों के प्रबंधन का अधिकार देता है तो फिर हिंदू मठ मंदिरों को शासन द्वारा प्रशासित कर हिंदुओं के संवैधानिक मूल अधिकारों के साथ खिलवाड़ क्यों किया जा रहा है? महाकाल के दरबार में वीआईपी कल्चर होने से भक्त अपने आपको छोटा एवं अपमानित अनुभव करता है। यह बन्द होनी चाहिए। उनका यह भी कहना कि इससे जनसामान्य में गहरा आक्रोश है, जिसका नुकसान आगामी चुनावों में हो सकता है।
बता दें दरअसल महाकाल मंदिर में प्रोटोकाल (वीआइपी) दर्शन के लिए प्रति व्यक्ति 250 रुपये का शुल्क लिया जाता है। शुल्क देनेवाले इन दर्शनार्थियों को गणेश मंडपम के प्रथम बैरिकेड से ही महाकाल के दर्शन कराए जाते हैं। पिछले साल भी प्रोटोकाल दर्शन पर 100 रुपये का शुल्क लगाया गया था लेकिन विरोध के बाद यह निर्णय वापस लेना पड़ा था। महाकाल के गर्भगृह में प्रवेश के लिए भी 1500 रुपये की रसीद कटवाना अनिवार्य है।