लखनऊ: किसान एक साथ कई किस्म की खेती कर मालामाल हो सकते हैं। ऐसी ही नई समन्यवित खेती को अपनाकर उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के दौलतपुर गाँव का युवा किसान अमरेन्द्र प्रताप सिंह लाखों रूपये की आमदनी कर रहा है। इस खेती का माडल माडर्न युवाओं के लिए मिसाल है। अमरेन्द्र ने खेती की शुरुआत एक एकड़ में ताईवानी तरबूज की खेती से किया और आज उसने 20 एकड़ में केला , 6 एकड़ में ताईवानी तरबूज, एक एकड़ में ताईवानी खरबूज, एक एकड़ में मशरूम और 2500 क्षमता का पोल्ट्री फार्म बना रखा है। केले के खेत के कुछ हिस्से में इन्होने हल्दी की इंटर क्रापिंग कर रखी थी, जिससे केले में लगने वाली सारी लागत निकल चुकी है।
जिस क्षेत्र में इन्होने हल्दी की इंटर क्रापिंग की थी उस क्षेत्र के केले में इस समय फल आ चुके है। प्रगतिशील किसान अमरेन्द्र का मानना है की हल्दी के कारण केले को अतिरिक्त पोषक तत्व मिला है जिसके कारण इतने क्षेत्र में जल्दी फल आ गए। प्रति एकड़ केले की खेती में एक लाख रुपये लागत आती है और इससे इनको शुद्ध लाभ एक लाख से लेकर 4 लाख रुपये तक होता है। इनके केले की सप्लाई दिल्ली और हरियाणा में होती है और हल्दी की सप्लाई बिहार में होती है। इसका मुख्य कारण यह है की उत्तर प्रदेश में हल्दी का कोई बाज़ार नहीं है।
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तरबूज और खरबूज की खेती से यह लाखो की आमदनी कर रहे है। अमरेन्द्र यह खेती ड्रिप और मल्चिंग विधि से करता है। ताईवानी तरबूज से खेती की शुरुआत करने वाले अमरेन्द्र इस समय 6 एकड़ में ताईवानी तरबूज ,एक एकड़ में ताईवानी खरबूज और तीन बीघे में खीरा लगाये हुए है। उसका मानना है कि ड्रिप और मल्चिंग से जहां एक तरफ खरपतवार से छुटकारा मिल जाता है वही जीवन के लिए सबसे मूल्यवान पानी की भी बचत होती है । आधुनिक मशीनों से बेड पर खेती करने से मैन पॉवर कम लगता है। अमरेन्द्र के तरबूज व खरभूजे में प्रति एकड़ लगभग 50 हज़ार रुपये लागत आती है जबकि इसमे शुद्ध मुनाफा लगभग एक लाख रुपये होता है। कम समय 90 दिन में तैयार होने वाली इस फसल से किसान भाई अच्छा लाभ ले सकते है। युवा किसान अमरेन्द्र आज की युवा पीढ़ी के लिए मिसाल है।
वह पोल्ट्री फॉर्म और मशरूम की खेती से भी अच्छा फायदा उठा रहा है। इनकी पूरी खेती एक दूसरे पर आधारित है जिसे समन्वित खेती कहा जाता है। अमरेन्द्र ने 2500 की संख्या का पोल्ट्री फार्म भी स्थापित कर रखा है। जिनसे निकलने वाले वेस्ट को यह अपने मशरूम की खेती में प्रयोग करते है और जब मशरूम की खेती समाप्त होती है तो इससे निकालने वाले वेस्ट को यह अपने खेतो में प्रयोग करते है। जब मशरूम का सीजन था तब वह एक दिन में तीन सौ कुंतल का उत्पादन यह करता था। मशरूम की खपत लखनऊ में ही हो जाती है।