दिल्ली कूच कर रहे किसान: कौन हैं ये किसान, कहां से आए हैं, और क्या हैं इनकी मुख्य मांगें?
आज सुबह से ही दिल्ली की सड़कों पर किसान बेताबी से बढ़ रहे हैं, उनके चेहरे पर एक समान लक्ष्य है— संसद का घेराव करना। मीडिया के कैमरे उनके पीछे हैं और पूरे देश की नजरें इस प्रदर्शन पर टिकी हैं। खबरों के मुताबिक, लगभग 40 से 45 हजार किसान इस आंदोलन का हिस्सा हैं और अब तक एक बड़ा जत्था नोएडा के महामाया फ्लाईओवर तक पहुंच चुका है। हालांकि, शासन-प्रशासन ने इनकी राह में रोड़े डालने के लिए बॉर्डर की कड़ी सुरक्षा व्यवस्था कर दी है, फिर भी किसान पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।
अब सवाल यह उठता है कि ये किसान कौन हैं, कहां से आए हैं, और उनकी मुख्य मांगें क्या हैं?
दिल्ली कूच कर रहे किसान कौन हैं, कहां से आए हैं?
संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में 10 प्रमुख किसान संगठनों का एक बड़ा गठबंधन इस आंदोलन को चला रहा है। इन संगठनों में भारतीय किसान यूनियन (टिकैत), भारतीय किसान यूनियन (महात्मा टिकैत), भारतीय किसान यूनियन (अजगर), भारतीय किसान यूनियन (कृषक शक्ति), भारतीय किसान परिषद, अखिल भारतीय किसान सभा, किसान एकता परिषद, किसान मजदूर संघर्ष मोर्चा, जय जवान-जय किसान मोर्चा और सिस्टम सुधार संगठन आगरा जैसे अहम संगठन शामिल हैं।
ये किसान मुख्यतः उत्तर प्रदेश के पश्चिमी इलाके, पंजाब और हरियाणा से आए हैं। 6 दिसंबर को शंभू और खनौरी बॉर्डर से इनका पहला जत्था दिल्ली की ओर कूच करेगा। इन किसानों के साथ-साथ केरल, उत्तराखंड और तमिलनाडु में भी प्रदर्शन की चर्चाएं हैं। इन राज्यों के किसान भी अपने-अपने राज्य की विधानसभाओं का घेराव करने की योजना बना रहे हैं।
यहां तक कि दिल्ली के सटे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई और किसानों के इस प्रदर्शन से जुड़ने की उम्मीद जताई जा रही है।
किसानों की मुख्य मांगें क्या हैं?
इन किसानों की मांगें फिलहाल काफी बिखरी हुई दिखती हैं, लेकिन कुछ मुख्य मुद्दे हैं, जिन पर वे विशेष जोर दे रहे हैं।
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भूमि अधिग्रहण के सवाल पर उचित मुआवजा: किसानों का मुख्य मुद्दा यह है कि जब उनकी भूमि का अधिग्रहण किया जाता है, तो उन्हें उसके बदले उचित मुआवजा मिलना चाहिए। खासकर गौतमबुद्ध नगर के किसानों का कहना है कि उन्हें गोरखपुर हाईवे परियोजना के तहत 4 गुना मुआवजा नहीं मिला।
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फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी: किसानों की मांग है कि सरकार एमएसपी पर फसल खरीद की गारंटी दे।
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कृषि संबंधी बकाया समस्याओं का समाधान: किसानों का कहना है कि जिन किसानों पर कर्ज का बोझ है, उसे माफ किया जाए और उनका बकाया चुका दिया जाए।
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भूमि अधिग्रहण कानून में सुधार: किसानों का कहना है कि भूमि अधिग्रहण कानून के तहत उन्हें जो लाभ मिलते हैं, उसमें सुधार किया जाए। इसके तहत वे चाहते हैं कि आबादी क्षेत्र में 10 फीसदी प्लॉट, बाजार दर के 4 गुना मुआवजे, भूमिहीन किसानों के बच्चों के लिए रोजगार और पुनर्वास की व्यवस्था हो।
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कर्ज माफी और पेंशन: किसानों की एक पुरानी लेकिन बड़ी मांग यह भी है कि उन्हें कर्ज माफी दी जाए और पेंशन की व्यवस्था की जाए। इसके साथ ही, बिजली दरों में बढ़ोतरी न करने और पिछले आंदोलनों में दर्ज हुए पुलिस मामलों को वापस लेने की मांग भी उठ रही है।
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लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों को न्याय: 2020-21 के किसान आंदोलन के दौरान लखीमपुर खीरी हिंसा हुई थी, जिसमें किसानों की मौत हुई थी। किसान चाहते हैं कि इसके पीड़ितों को न्याय मिले और मृतक किसानों के परिवारों को मुआवजा मिले।
संयुक्त किसान मोर्चा का प्रेस बयान और आर-पार की लड़ाई
संयुक्त किसान मोर्चा ने हाल ही में एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की, जिसमें यह कहा गया कि इस बार उनकी लड़ाई आर-पार की होगी। उनका आरोप है कि सरकार ने उनकी मांगों को लेकर 18 फरवरी के बाद से कोई बातचीत नहीं की है, जबकि पहले यह वादा किया गया था कि सरकार किसानों से बातचीत कर एक ठोस समाधान निकालेगी।
किसान इस बात से नाराज हैं कि उनकी चिंताओं पर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं, और वे अब संसद का घेराव कर अपनी आवाज उठाने के लिए दिल्ली कूच करने जा रहे हैं।
प्रदर्शन का पैटर्न: क्या है अगला कदम?
इन किसानों का यह आंदोलन अब एक संगठित संघर्ष की तरह दिख रहा है। 6 दिसंबर के बाद दिल्ली में और दिल्ली के आस-पास और किसान जुटने की संभावना है। किसानों की यह जिद है कि सरकार उनकी मांगों को गंभीरता से ले और जल्द से जल्द समाधान निकाले।
किसान यह भी चाहते हैं कि उन्हें उनके अधिकार मिले, जो दशकों से नदारद हैं। वे चाहते हैं कि कृषि नीति में बदलाव हो और उनका जीवनस्तर बेहतर बने। उनकी मांगें सिर्फ भौतिक नहीं, बल्कि एक बेहतर और समान्य जीवन की भी हैं।