ब्रिट्रिश फार्मा कंपनी और ऑक्सफोर्ड के वैज्ञानिकों द्वारा बनाई गई और कोरोनारोधी वैक्सीन से TTR जैसी बीमारी होने की खबर से कई लोगों लोगों में डर का माहौल है. ऐसे में आईसीएमआर के पूर्व वैज्ञानिक ने इसको लेकर बेहद राहत भरी खबर दी है.
आईसीएमआर के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. रमन गंगाखेडकर ने बताया कि कोरोनारोधी वैक्सीन कोविशील्ड लगवाने वाले 10 लाख लोगों में से केवल 7 से 8 लोगों में ही हार्ट अटैक, ब्लड क्लॉटिंग आदि साइड इफेक्ट दिखाई दिए हैं. इस साइड इफेक्ट को थ्रोम्बोसिस थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (TTS) कहा जा रहा है.
डॉ. गंगाखेडकर ने कहा कि कोविशील्ड से होने वाले साइड इफेक्ट्स काफी दुर्लभ हैं. उन्होंने एक निजी चैनल से बातचीत में बताया कि जब आप वैक्सीन की पहली डोज लेते हैं तो सबसे ज्यादा रिस्क होता है. वहीं, दूसरी डोज लेने पर यह कम हो जाता है.वहीं, तीसरी डोज लेने वालों को खतरा बेहद ही कम हो जाता है.
डॉ. गंगाखेडकर ने कहा कि इस वैक्सीन को लगवाने वाले किसी भी व्यक्ति को डरने की आवश्कता नहीं है. इसका साइड इफेक्ट्स वैक्सीन लगवाने के शुरुआती दो से तीन महीनों में ही दिखने लगता है. सालों बाद अब वैक्सीन लेने वालों को डरने की आवश्यकता नहीं है.
ब्रिटेन के हाईकोर्ट मे कोविशील्ड वैक्सीन को तैयार करने वाली कंपनी एस्ट्राजेनेका ने माना है कि दुर्लभ केसों में इस वैकेसीन को लेने वालों में ब्लड क्लॉटिंग की समस्या देखने को मिल सकती है. भारत में 80 फीसदी से अधिक लोगों को यह वैक्सीन लगाई गई है. इस कारण ऐसी खबर के बाद लोगों में डर का माहौल था. ब्रिटेन में होने वाली कुछ मौतों का जिम्मेदार उनके परिजन वैक्सीन को मान रहे हैं.
इस कारण उन्होंने इसको बनाने वाली कंपनी के खिलाफ केस दर्ज किया था. जब कंपनी ने कोर्ट में इस बात को स्वीकार किया है कि इस वैक्सीन से TTR जैसी समस्या कुछ दुर्लभ मामलों में दिख सकती है तो इसको लगवाने वालों में डर का माहौल पैदा हो गया है. इसको लेकर ICMR के पूर्व वैज्ञानिक ने कहा है कि वैक्सीन लगवाने वाले किसी भी व्यक्ति को अब घबराने की आवश्कता नहीं है. हर वैक्सीन के कुछ साइडइफेक्टस होते हैं, जो समय के साथ समाप्त हो जाते हैं.