कृष्ण नगरी मथुरा की होली पूरे सबाब पर है। रंगों के इस उत्सव में पूरा मथुरा डूबा हुआ है। क्या बरसाना, क्या नंद गांव ,क्या गोकुल, क्या ब्रज और क्या वृंदावन? सब रंगों से सराबोर है।
वास्तव में छड़ीमार होली कृष्ण के प्रति प्रेममयी और भावमयी होली का प्रतीक है। दरअसल, भगवान कृष्ण ने ब्रज में अपना बचपन कान्हा के तौर पर बिताया। कान्हा बचपन में बहुत नटखट हुआ करते थे और गोपियों को सताया करते थे। ऐसे में कान्हा को सबक सिखाने के लिए गोपियां हाथ में छड़ी लेकर कान्हा उनके पीछे भागती थीं। बाल कृष्ण को कहीं चोट न लग जाए। इसलिए लाठी की जगह छड़ी का इस्तेमाल करती थीं।
छड़ीमार होली खेलने वाली गोपियों को 10 दिन पहले से दूध, दही, मक्खन, लस्सी, काजू बादाम खिलाकर होली खेलने के लिए तैयार किया जाता है। लट्ठमार होली की तरह ही छड़ीमार होली का भी अपना अलग महत्व है।