क्या है गेस्टहाउस कांड, जिसने बना दिया था मायावती-मुलायम को एक-दूसरे का दुश्मन

लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी को मात देने के लिए सपा-बसपा ने आज गठबंधन का औपचारिक ऐलान किया, लेकिन एक समय वो भी था जब अखिलेश के पिता मुलायाम और मायावती एक दूसरे की शक्ल भी देखना पसंद नहीं करते थे. वहीं इन सबके बीच आज दोनों नेताओं ने 23 साल की दुश्मनी भुलाकर गठबंधन कर लिया और इस गठबंधन को लंबी रेस का घोड़ा भी बताया, लेकिन आखिर 23 साल पहले ऐसा क्या हुआ था जो दोनों नेताओं और दोनों पार्टियों के बीच दूरिया आ गई थी. चलिए जानते हैं.

ये दिन शायद ही कोई भूल पाएगा

उत्तर प्रदेश में 90 के शुरुआती दौर में मंदिर-मस्जिद विवाद के कारण ध्रुवीकरण अपने चरम पर था और सभी राजनीतिक दल इस बात को अच्छे से समझते थे. वहीं 1993 का चुनाव दो धुरविरोधी पार्टी सपा और बसपा ने साथ लड़ने का फैसला किया. वहीं चुनाव हुआ, लेकिन स्पष्ट बहुमत किसी को नहीं मिला. 4 दिसंबर 1993 को यूपी की कुर्सी पर गठबंधन काबिज हुआ, लेकिन बसपा ने सरकार से 2 जून 1995 को किनारा करते हुए समर्थन वापसी की घोषणा कर दी और गठबंधन टूट गया. यहां बसपा ने समर्थन वापस लिया और वहां मुलायम सिंह की सरकार अल्पमत में आ गई. इसके बाद मायावती ने बीजेपी के साथ मिलकर 3 जून 1995 को यूपी की कुर्सी संभाली. इस बीच 2 जून 1995 को उत्तर प्रदेश की राजनीति में जो हुआ वो शायद ही कभी हुआ हो.

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ये हुआ था उस दिन

उस दिन एक उन्मादी भीड़ सबक खिखाने के नाम पर बसपा सुप्रीमो की आबरू पर हमला करने पर आमादा थी. उस दिन को लेकर कई बातें होती रहती हैं, लेकिन ये आज भी एक विषय है कि आखिर लखनऊ के राज्य अतिथि गृह में 2 जून 1995 को क्या हुआ था. दरअसल, मायावती के समर्थन वापस लेने के बाद मुलायम सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे तो सरकार को बचाने के लिए जोड़-तोड़ की कोशिशें शुरू हो गई. वहीं जब बात बनती नहीं दिखी तो सपा के नाराज कार्यकर्ता और विधायक लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित गेस्टहाउस पहुंच गए, जहां पर मायावती ठरही हूईं थीं. बताया जाता है कि उस दिन गेस्ट हाउस के बंद कमरे में मायावती के साथ कुछ गुंडों ने बदसलूकी की थी. बसपा के मुताबिक सपा के कार्यकर्ता ने तब मायावती को धक्का दिया और मुकदमा ये लिखाया गया कि वो लोग उन्हें जान से मारना चाहते थे. इसी को गेस्टहाउस कांड कहा जाता है.

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