बहुचर्चित सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर केस में आज केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) की एक विशेष अदालत ने सभी 22 आरोपियों को सबूतों ने अभाव में बरी कर दिया है।
Sohrabuddin Sheikh case: All 22 accused acquitted by Special CBI Court in Mumbai due to lack of evidence pic.twitter.com/CSdFvx7f4w
— ANI (@ANI) December 21, 2018
स्पेशल सीबीआी जज ने अपने फैसले में कहा कि, जो गवाह और सबूत सीबीआी की तरफ से पेश किए गए वो इतने काफी नहीं थे जिससे यह साबित हो सके की हत्या का साजिश रची गई। साथ ही कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि तुलसी राम प्रजापति की हत्या एक साजिश का हिस्सा था वो भी गलत है।
Special CBI court: Allegation that Tulsiram Prajapati was murdered through a conspiracy is not true https://t.co/BjjlLhZ0PY
— ANI (@ANI) December 21, 2018
साथ ही कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ‘सरकारी मशीनरी और अभियोजन पक्ष ने बहुत सारे प्रयास किए, 210 गवाहों को लाया गया, लेकिन संतोषजनक सबूत नहीं मिले। अगर गवाह नहीं बोलते हैं तो अभियोजक की कोई गलती नहीं है।’
Special CBI Court: Govt machinery and prosecution put in a lot of effort, 210 witnesses were brought but satisfactory evidence didn’t come and witnesses turned hostile. No fault of prosecutor if witnesses don’t speak https://t.co/BjjlLhZ0PY
— ANI (@ANI) December 21, 2018
2005-06 के दौरान हुए इस एनकाउंटर में देश की राजनीति को हिला कर रख दिया था। पुलिस ने एनकाउंटर के बाद कहा था कि सोहराबुद्दीन शेख का संबंध आतंकी संगठन से था, जो किसी बड़ी साजिश के तहत काम कर रहा था.
गुजरात पुलिस ने कथित गैंगस्टर सोहराबुद्दीन और तुलसीराम प्रजापति को मार गिराया था। जिसका 13 साल बाद आज कोर्ट फैसला सुनाएगी. मामले की आखिरी बहस 5 दिसंबर को हुई थी. सीबीआई के विशेष न्यायाधीश एस. जे. शर्मा अपना फैसला सुनाएंगे.
37 आरोपियों में 16 हो चुके हैं बरी
सोहराबुद्दीन के मामले में कुल 37 लोगों को आरोपी बनाया गया था, जिनमें साल 2014 में 16 लोग बरी हो गए थे। बरी किए गए लोगों में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह (तत्कालीन गृह मंत्री), पुलिस अफसर डीजी बंजारा शामिल है। ये मामला पहले गुजरात में चल रहा था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इसे मुंबई ट्रांसफर कर दिया गया था.
क्या है पूरा मामला?
इस मामले की सुनवाई पहले जज उत्पत कर रहे थे, हालांकि बाद में उनका ट्रांसफर कर दिया गया. उनके बाद इस मामले की सुनवाई जज बृजगोपाल गोया कर रहे थे, नियुक्ति के कुछ समय बाद ही उनकी मौत हो गई थी. जिसके बाद कुछ समय के लिए इस केस में मीडिया रिपोर्टिंग पर बैन लगाया था.