पाकिस्तान के बनते ही जिन्ना और लियाकत अली खान को लग रहा था कि कश्मीर तो बस अब उनका है। लेकिन उनकी सारी प्लानिंग पर पानी फिर गया, जब रेडक्लिफ बाउंड्री कमीशन ने गुरदासपुर भारत के हवाले कर दिया। ये वही गुरदासपुर था, जो कश्मीर को सालभर जोड़ने का इकलौता रास्ता था। अगर ये पाकिस्तान के पास होता, तो भारत का कश्मीर में दखल देना टेढ़ी खीर हो जाता। बस, यही बात जिन्ना और लियाकत को चुभ गई, और वो भड़क उठे।
जिन्ना का बदला तेवर, लेकिन दिल में थी दूसरी बात
11 अगस्त 1947 को पाकिस्तान की संविधान सभा की पहली मीटिंग में जिन्ना का लहजा कुछ नरम-नरम सा था। वो हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की बातें कर रहे थे। कह रहे थे कि वक्त के साथ सारे टकराव खत्म हो जाएंगे। ये भी बोले कि कुछ लोग भारत के बंटवारे और पंजाब-बंगाल के टुकड़ों से खुश नहीं हैं, लेकिन अब जब फैसला हो गया है, तो सबको इसका मान रखना चाहिए। लेकिन क्या जिन्ना ये सब दिल से बोल रहे थे? शायद नहीं! असल में वो कश्मीर को हथियाने की फिराक में थे। गुरदासपुर के भारत के पास जाने से उनकी सारी साजिश पर ब्रेक लग गया।
गुरदासपुर गया भारत, पाकिस्तान की बौखलाहट
जिन्ना और लियाकत को पहले ही खबर लग चुकी थी कि गुरदासपुर भारत को मिलने वाला है। ये सुनते ही वो तिलमिला गए। गुरदासपुर इसलिए जरूरी था, क्योंकि ये कश्मीर तक हर मौसम में पहुंचने का रास्ता देता था। लियाकत अली ने माउंटबेटन के सहयोगी लॉर्ड इस्मे को धमकी तक दे डाली कि अगर गुरदासपुर भारत को मिला, तो मुसलमान इसे धोखा मानेंगे, और पाकिस्तान-ब्रिटेन के रिश्ते खराब हो जाएंगे। माउंटबेटन ने साफ जवाब दिया कि वो सीमा निर्धारण से खुद को अलग रखे हैं। उन्होंने तो नक्शे तक नहीं देखे, क्योंकि नक्शे उनके ऑफिस में तब आए, जब रेडक्लिफ अपनी पत्नी के साथ 13 अगस्त को कराची के लिए उड़ चुके थे।
रेडक्लिफ थे जिन्ना की पसंद, फिर भी पंगा
बंटवारे के लिए सीमा तय करने का जिम्मा रेडक्लिफ को मिला, जिनका नाम खुद जिन्ना ने सुझाया था। रेडक्लिफ लंदन के मशहूर वकील थे, जो पहले कभी भारत नहीं आए थे। नेहरू को पहले तो उनके नाम पर कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन बाद में उनके कंजर्वेटिव कनेक्शन्स को लेकर शक हुआ। नेहरू ने सुझाव दिया कि सीमा तय करने के लिए एक फेडरल कोर्ट बनाई जाए, लेकिन जिन्ना ने इसका जोरदार विरोध किया। आखिरकार, रेडक्लिफ ही इस काम के लिए फाइनल हुए।
जल्दबाजी में बंटवारा, नक्शे भी अधूरे
रेडक्लिफ 8 जुलाई 1947 को भारत आए। तब हालात इतने खराब थे कि अशांति और अराजकता फैली हुई थी। नौकरशाही बंट चुकी थी, और नक्शे-जनगणना के आंकड़े भी आधे-अधूरे थे। फिर भी रेडक्लिफ को 10 अगस्त तक काम पूरा करना था, जिसके लिए बाद में दो दिन और मिले। 12 अगस्त को उनकी रिपोर्ट तैयार थी। लेकिन उन्हें और माउंटबेटन को डर था कि रिपोर्ट के खुलासे पर बवाल हो सकता है। 13 अगस्त को रेडक्लिफ कराची चले गए, 14 अगस्त को पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस मना, और 15 अगस्त को भारत आजाद हुआ। लेकिन सीमा से जुड़ा राजपत्र 17 अगस्त को ही जारी हुआ।
लाहौर का फैसला और पाकिस्तान की नाराजगी
रेडक्लिफ के फैसले ने दोनों देशों को नाखुश किया। लाहौर, जहां हिंदू-सिख बहुमत में थे, उसे पाकिस्तान को दे दिया गया। रेडक्लिफ ने बाद में कहा कि पहले वो लाहौर भारत को देने वाले थे, लेकिन फिर लगा कि मुसलमानों को पंजाब में एक बड़ा शहर चाहिए। दूसरी तरफ, गुरदासपुर और फिरोजपुर भारत को मिलने से पाकिस्तान नाराज था। वो चाहता था कि इन इलाकों के जरिए भारत को कश्मीर का रास्ता न मिले। रेडक्लिफ ने बाद में बताया कि उन्हें उस वक्त जम्मू-कश्मीर के बारे में कुछ पता ही नहीं था।
सतर्क सरदार पटेल कश्मीर को लेकर थे सजग
पाकिस्तान की कश्मीर पर नजर थी। तो दूसरी तरफ उसके नापाक इरादे से सरदार पटेल पूरी तरह चौकन्ने थे। उन्होंने पाकिस्तान की साजिश नाकाम करने के लिए जमीन से आसमान तक जरूरी इंतजाम किए। गुरदासपुर भारत के हिस्से में आ चुका था, लेकिन वहां से कश्मीर को जोड़ने वाली सड़क उन दिनों बैलगाड़ी से भी सफर लायक नहीं थी। सरदार ने तेजी से इसका कायाकल्प कराया। उनकी पहल पर कई हवाई उड़ानों को मोड़कर दिल्ली-श्रीनगर से जोड़ा गया।
अमृतसर-जम्मू लिंक पर वायरलेस और तार संयंत्र स्थापित किए गए। पठानकोट-जम्मू के बीच टेलीफोन लाइनें खींची गईं। उस वक्त के कार्य-ऊर्जा-खनन मंत्री बी. एन. गाडगिल ने याद किया, “अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में सरदार पटेल ने नक्शा निकाला और जम्मू-पठानकोट इलाके को इंगित करते हुए कहा कि दोनों को जोड़ने वाली भारी वाहनों लायक 65 मील लंबी सड़क आठ महीने में तैयार हो जानी चाहिए।” गाडगिल ने कहा कि बीच में पड़ने वाली नदी-नाले-पहाड़ नक्शे में नजर नहीं आ रहे हैं। सरदार ने दो टूक कहा—“आपको करना है।” राजस्थान से विशेष ट्रेनों से लगभग दस हजार मजदूर लाए गए। रात में काम जारी रखने के लिए फ्लड लाइट लगाई गईं। डिस्पेंसरी, बाजार और जरूरी इंतजाम किए गए। समय से सड़क बनकर तैयार हुई।