महत्व खो रहा पाटीदार आंदोलन, यशवंत सिन्हा के सहारे हार्दिक का अनशन!

अहमदाबाद: पटेलों को आरक्षण दिलाने की मांग पर अनशन पर बैठे हार्दिक पटेल को पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा का साथ मिला है. दोनों नेताओं ने पटेलों के बीच प्रासंगिकता खो रहे हार्दिक पटेल के आंदोलन को और किसानों के कर्ज माफ करने को लेकर जारी उनके आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने का वादा किया है.

यशवंत सिन्हा ने संवाददाताओं से कहा, “केंद्र और राज्य की सरकारों को छोड़कर बाकी पूरा देश हार्दिक के अनशन से हिल उठा है.” यशवंत सिन्हा ने अप्रैल में भाजपा से इस्तीफा दे दिया था.

दोनों नेताओं ने कहा कि हार्दिक की मांगों को उनका पूरा समर्थन है.

यशवंत ने कहा, “हार्दिक ने किसानों का जो मुद्दा उठाया है, वह सिर्फ गुजरात तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे देश के लिए प्रासंगिक है। किसान गहरी पीड़ा में हैं और इस स्थिति को एक स्थायी समाधान की जरूरत है। मैं विपक्ष सहित हर किसी से अपील करता हूं कि किसानों के मुद्दों को देशभर में उठाया जाए।”

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गुजरात को मॉडल राज्य बताने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दावे को खारिज करते हुए शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा कि गुजराज मॉडल जैसा कुछ नहीं है. उन्होंने कहा, “गुजरात मॉडल फेल हो चुका है. अब आपको (2019 के चुनाव में) बोनस नहीं मिलने वाला है.”

मीडिया रपटों के अनुसार, हार्दिक जब से अनशन पर बैठे हैं, उनका 20 किलोग्राम वजन घट चुका है। मंगलवार को उनके अनशन का 11वां दिन था और उनकी हालत लगातार बिगड़ रही है।

वहीं गुजरात के पटेलों के छह धार्मिक संगठनों ने हार्दिक के आंदोलन से पैदा हुए मुद्दे पर चर्चा की और उनके अनशन को समाप्त कराने में मदद या मध्यस्थता करने की पेशकश की. उनके नेता शाम को समुदाय के भाजपा मंत्रियों से मिलकर स्थिति पर चर्चा करने के लिए राजधानी गांधीनगर पहुंचे.

हालांकि इस बीच हार्दिक पटेल की पाटीदारों के बीच कम हो रही प्रासंगिकता पर भी बातें होने लगी हैं. जिस हार्दिक पटेल की रैलियों में लाखों की तादाद होती अब अनशन में उनके समर्थन के लिए कुछ सौ लोग ही जुट पाए हैं. कई मीडिया रिपोर्ट्स में इसकी वजह हार्दिक पटेल की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को बताया है. जिसके चलते आरक्षण की मांग करने में उनका साथ देने वाले उनसे अलग होते चले गए और पाटीदार आंदोलन अपना महत्व खोने लगा.

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शुरूआत में पाटीदार आंदोलन की सफलता की वजह पाटीदार नेताओं की एकजूटता थी लेकिन सत्याग्रह में छपि रिपोर्ट के मुताबिक हार्दिक पटेल की महत्वाकांक्षाओं की बदोलत उस एकजूटता में दरार आते चली गई और धीरे-धीरे वो खत्म ही हो गई. इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो यही था कि गुजरात चुनाव के दौरान जब हार्दिक पटेल ने किसी पार्टी को समर्थन न देने की बात कहते हुए भाजपा के खिलाफ प्रचार करने का फैसला लिया था.

तब पाटीदार आंदोलन में उनके साथ महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले और उनके साथ जेल तक जाने वाले केतन पटेल भाजपा में शामिल हो गए थे. इससे पहले हार्दिक के एक और साथी चिराग पटेल पहले ही भाजपा में शामिल हो चुके थे. ऐसे में न सिर्फ हार्दिक पटेल बल्कि पूरा पाटीदार आंदोलन ही राजनीतिक महत्वकांक्षाओं की भेंट चढ़ गया.

ये हार्दिक पटेल की राजनीतिक महत्वकांक्षाओं का ही नतीजा है कि अब अपने पाटीदार समुदाय के लोगों की बजाए उनको मोदी सरकार के विरोधियों से ज्यादा समर्थन मिल रहा है. लेकिन क्या यशवंत सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा, हार्दिक पटेल को खोई हुई प्रासंगिकता वापिस दिला सकेंगे.

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