नई दिल्ली: परोक्ष रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की डिग्री की जानकारी मांगे जाने के मामले की सुनवाई हाईकोर्ट ने 25 जुलाई के लिए स्थगित कर दी है। यह जानकारी दिल्ली विविद्यालय (डीयू) से आरटीआई के जरिए मांगी गई है। डीयू ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी है और कहा है कि सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) मजाक बनकर रह गया है। आरटीआई के जरिए प्रधानमंत्री के अलावा वर्ष 1978 में बीए परीक्षा पास करनेवाले सभी छात्रों के बारे में जानकारी मांगी गई है।
यह निजी जानकारी है और उसे किसी तीसरे को नहीं दिया जा सकता है। सुनवाई के दौरान डीयू के अधिवक्ता ने न्यायमूर्ति वी. कामेश्वर राव से कहा कि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता वोट डालने गुजरात गए हुए हैं। वे ही इस मामले में उसके तरफ से पक्ष रखते हैं। इस मामले की सुनवाई स्थगित कर दी जाए। न्यायमूर्ति ने इस मामले की पूरी जानकारी ली और सभी पक्षों की सहमति से सुनवाई 25 जुलाई के लिए स्थगित कर दी। सॉलिसिटर जनरल ने 31 जनवरी को कोर्ट से कहा था कि संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्तियों की डिग्री के बारे में जानकारी मांगा जाना आरटीआई कानून का मजाक है।
उन्होंने आरटीआई कानून के कुछ प्रावधानों का जिक्र करते हुए कहा था कि जब तक कोई जनहित से जुड़ा मामला नहीं हो तबतक किसी की निजी जानकारी नहीं दी जानी चाहिए। यह कानून भी कहता है। उन्होंने कहा था कि इस कानून का इस्तेमाल गलत उद्देश्यों के लिए नहीं किया जा सकता। प्रधानमंत्री व मंत्री की डिग्री विभिन्न मंचों पर सार्वजनिक रूप से मौजूद है। उसमें छुपाने को कुछ भी नहीं है लेकिन कानून का गलत इस्तेमाल कर उसे निचले स्तर तक ले जाया जा रहा है।
इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। मालूम हो कि हाईकोर्ट डीयू की केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के उस निर्देश को चुनौती देनेवाली याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसमें वर्ष 1978 में बीए परीक्षा पास करनेवाले छात्रों की जानकारी मांगी गई है। याचिका में सभी छात्रों के रिकार्ड की निरीक्षण करने की अनुमति मांगी गई है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी वर्ष 1978 में ही बीए पास किया था।