नई दिल्लीः गणेश चतुर्थी को विनायाक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है, इसको भगवान गणेश के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार भद्रा (मध्य अगस्त से मध्य सितंबर) में इस शुभ त्योहार को मनाया जाता है. यह 10 दिनों तक चलने वाला त्योहार अनंत चतुर्दशी पर समाप्त होता है, गणेश भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं. भगवान श्री गणेश को 108 विभिन्न नामों से जाना जाता है. व्यापक रूप से ये गणपति या विनायक के रूप में प्रसिद्ध हैं.
हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है. शिव पुराण में इस बात का उल्लेख किया गया है कि इस त्योहार को मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. भारत के दक्षिण और पश्चिम राज्यों में इस त्योहार की विशेष धूमधाम रहती है.
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भारत में जब पेशवाओं का शासन था, तब से यहां पर गणेश उत्सव मनाया जा रहा है. सवाई माधवराव पेशवा के शासन में पूना के प्रसिद्ध शनिवारवाड़ा नामक राजमहल में भव्य गणेशोत्सव को धूमधाम से मनाया जाता था. जब अंग्रेज भारत आए तो उन्होंने पेशवाओं के राज्यों पर अधिकार कर लिया. तब से वहां इस त्योहार की रंगत कुछ फीकी पड़ना शुरू हो गई, लेकिन कोई भी इस परंपरा को बंद नहीं करवा सका.
गणेश चतुर्थी को भारत के कई राज्यों में और कई दूसरे देशों जैसे थाईलैंड, कंबोडिया, इंडोनेशिया और नेपाल में भी बड़े हर्षोल्लास से मानाया जाता है. महाराष्ट्र, गोवा, केरल, तमिलनाडु कुछ ऐसे शहरों में से एक हैं जहां यह उत्सव सालों 10 दिनों तक मनाया जाता है
गणेश चतुर्थी का इतिहास
इस त्योहार के इतिहास से जुड़ी सभी कहानियों में से, सबसे अधिक प्रासंगिक भगवान शिव और देवी पार्वती से जुड़ी कहानी है. एक समय की बात है जब माता पार्वती स्नान कर रहीं थीं, तो उन्होंने गणेश को अपने स्नानघर के दरवाज़े की रक्षा करने का काम दिया. भगवान शिव के घर लौटने के बाद, गणेश ने उन्हें घर में प्रवेश करने से रोक दिया जिसके कारण गणेश और शिव के बीच युद्ध हो गया और गुस्से में शिव ने गणेश का सिर काट दिया. यह देखकर माता पार्वती को गुस्सा आ गया. यह देखकर भगवान शिव ने गणेश को दुबारा जीवित करने का वादा किया और उन्होंने गणेश के धड़ पर गज का सर लगा दिया, और इसी तरह गजानन का जन्म हुआ.
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हालांकि यह ज्ञात नहीं है कि गणेश चतुर्थी को कब और कैसे पहली बार मनाया गया था, लेकिन इतिहासकारों के अनुसार, सबसे पहले गणेश चतुर्थी उत्सव सातवाहन, राष्ट्रकूट और चालुक्य के शासनकाल में मनाई गई थी. ऐतिहासिक रिकॉर्ड से पता चलता है कि गणेश चतुर्थी उत्सव महाराष्ट्र में, महान मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज, द्वारा संस्कृति और राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया था.
ऐसे मनाया जाने लगा 10 दिन का उत्सव
अंग्रेजों के सत्तासीन होने के बाद हिंदुओं पर पाबंदियां लगाने लगीं. इतिहास में बताया गया है कि कुछ शासकों के गलत निर्णयों के चलते हिंदुओं में अपने ही धर्म के प्रति कड़वाहट पैदा हो गई और लोगों में धर्म के प्रति उदासीनता बढ़ती चली गई. उस समय महान क्रांतिकारी व जननेता लोकमान्य तिलक ने सोचा कि हिंदू धर्म को कैसे संगठित किया जाए? लोकमान्य तिलक ने विचार किया कि श्रीगणेश ही एकमात्र ऐसे देवता हैं जो समाज के सभी स्तरों में पूजनीय हैं.
उन्होंने हिंदुओं को एकत्रित करने के उद्देश्य से पुणे में सन 1893 में सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुआत की. तब यह तय किया गया कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी (अनंत चतुर्दशी) तक गणेश उत्सव मनाया जाए और तब से पूरे महाराष्ट्र में यह उत्सव 10 तक मनाया जाने लगा. उसके बाद देश के बाकी राज्यों में भी इस पर्व को धूमधाम से मनाया जाने लगा.