गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को कहा कि सरकार जम्मू-कश्मीर से आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर्स एक्ट (AFSPA) हटाने पर विचार कर रही है. सरकार वहां से सेना के जवानों को हटाने की योजना बना रही है. इसके अलावा अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर में सितंबर से पहले विधानसभा चुनाव कराने की भी बात कही है.
अमित शाह ने एक इंटरव्यू में कहा कि केंद्र सरकार कश्मीर में लॉ एंड ऑर्डर स्थानिय पुलिस को सौंपने की तैयारी में है. उन्होंने कहा कि पहले वहां की पुलिस पर भरोस नहीं किया जा सकता था, लेकिन अब हालात बदले हैं. अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर के युवाओं से पाकिस्तान की साजिशों से दूर रहने का भी आग्रह किया. हम कश्मीर की भलाई के लिए लगातार काम कर रहे हैं.
POK की जमीन हमारी है…
कश्मीर बीजेपी के लिए चुनावी मुद्दा रहा है. गृह मंत्री कई बार पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) भारत का अभिन्न अंग बता चुके हैं. उन्होंने जोर देकर कहा कि वहां रहने वाले मुस्लिम और हिंदू दोनों ही भारतीय हैं. वो जमीन हमारी है और उसे पाना हर भारतीय का लक्ष्य है. इस बीच अमित शाह के कश्मीर से AFSPA हटाने के बयान के बाद ये चर्चा जोरों पर हैं कि इसके बाद कश्मीर में कानून व्यवस्था कैसे काम करेगा? क्या वहां की पुलिस पाकिस्तान प्रयोजित आतंकवाद से निपने में सक्षम है.
अफ्स्पा देती है सशस्त्र बालों को विशेष शक्तियां
केंद्र सरकार अफ्स्पा का इस्तेमाल अशांत क्षेत्रों में करती आई है. इसके तहत सशस्त्र बालों को विशेष शक्तियां दी गई हैं. इस कानून में आवश्यकता होने पर तलाशी लेने, गिरफ्तार करने और गोली चलाने की शक्तियां देता है. सुरक्षाबलों के पास बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार करने की भी ताकत होती है. कश्मीर में 90 के दशक में जब आतंकवाद बढ़ा तो यहां भी ये कानून लागू कर दिया गया. अगर अफ्स्पा जम्मू-कश्मीर के हटाया जाता है तो सुरक्षाबलों की ताकत में कमी आएगी. राज्य के लॉ एंड ऑर्डर की जिम्मेदारी राज्य पुलिस के पास होगी.
अफ्स्पा हटने से घाटी में क्या बदलेगा?
जम्मू-कश्मीर और आतंकावाद का नाता पुराना रहा है. पाकिस्तान यहां अशांति फैलाने की फिराक में रहता है. जब 90 के दशक में कश्मीर घाटी में आतंकवाद बढ़ा तो इसे कुचलने के लिए केंद्र सरकार ने अफ्स्पा लागू कर दिया. सेना के पास किसी भी घर की तालाशी लेने का अधिकार है. अगर सुरक्षाबलों के लगता है कि किसी बील्डिंग या घर में आतंकी छिपे हैं तो वो उसे बिना किसी परमिशन की उड़ा सकते हैं.
फिलहाल स्थानीय पुलिस सहायक की भूमिका में केंद्रीय बलों के साथ सभी आतंकवाद विरोधी अभियानों का नेतृत्व कर रही है. लेकिन अगर ये कानून हटता है तो कानून और व्यवस्था की जिम्मेदारी पूरी तरह से जम्मू-कश्मीर पुलिस के पास होगी. सुरक्षाबलों की शक्तियां सीमित हो जाएंगी. सुरक्षाबल बिना वारंट किसी की भी गिरफ्तारी कर सकते हैं, शक के आधार पर गोली चला सकते हैं.
पत्थरबाजी की घटनाएं हुई कम
अमित शाह ने कहा कि 2010 में जम्मू कश्मीर में पत्थरबाजी के 2564 घटनाएं हुई थीं, जो अब शून्य हो गई है. पहले हर दिन आतंकवाद की घटना होती थी, जो अब काफी कम हुए हैं. उन्होंने दावा करते हुए कहा कि राज्य में मौतों की संख्या 68 फीसदी कम हुई है. 2004 से 2014 के बीच 1770 सिविलियंस की मौतें हुईं. इसमें भी कमी आई है. मोदी सरकार के कार्यकाल में 341 मौतें हुई हैं. 2004 से 2014 तक 1060 जवानों की जानें गई, लेकिन 2014 से 2023 तक 574 जवानों को ने अपनी जाने गंवानी पड़ी है.