जगतजननी मां दुर्गा के नौ दिनों की शुरुआत मंगलवार 9 अप्रैल से हो गई है. नवरात्रि के पहले दिन माता दुर्गा के प्रथम स्वरूप माता शैलपुत्री का पूजन किया जाता है. यह मां का सौम्य स्वरूप है. माता के इस स्वरूप का पूजन करने से सुख और समृद्धि प्राप्त होती है.
नवरात्रि की शुरुआत से ही लोग माता दुर्गा को अपने घरों में विराजमान करते हैं. इसके साथ ही कलश स्थापना भी करते हैं और अखंड ज्योति भी जलाते हैं. साल 2024 की चैत्र नवरात्रि की शुरुआत मंगलवार से हुई है. इस कारण माता घोड़े पर सवार होकर आई हैं. नवरात्रि के पहले दिन माता के स्वरूप शैलपुत्री का पूजन किया जाता है.
क्या है देवी के नवरात्र का अर्थ –
नवरात्र का अर्थ है, नया और रात्र का अर्थ है अनुष्ठान, अर्थात् नया अनुष्ठान. शक्ति के नौ रूपों की आराधना नौ अलग-अलग दिनों में करने के क्रम को ही नवरात्र कहते हैं. मां जीवात्मा, परमात्मा, भूताकाश, चित्ताकाश और चिदाकाश में सर्वव्यापी है. ये ही मां ब्रह्मशक्ति हैं.
कलश पूजन का शुभ मुहूर्त –
चैत्र नवरात्रि के शुभारंभ पर कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त अभिजित है, जो दोपहर 12 बजकर 04 मिनट से 12 बजकर 52 मिनट तक है. देवी के सभी साधकों को इसी इसी अवधि के दौरान कलश स्थापना करने का प्रयास करना चाहिए.
नवरात्रि के 9 दिनों में कलश स्थापना और अखंड ज्योति के साथ देवी दुर्गा की करवाएं विशेष पूजा.
देवी की पूजा-
नवरात्र के दिन देवी के साधक मां जगदंबे की की पूजा के लिए सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर कलश, नारियल-चुन्नी, श्रृंगार का सामान, अक्षत, हल्दी, फल-फूल पुष्प आदि यथा संभव सामग्री साथ रख लें.
माता की पूजा का कलश सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का होना चाहिए. लोहे अथवा स्टील का कलश पूजा मे प्रयोग नहीं करना चाहिए. कलश के ऊपर रोली से ‘ॐ’ और स्वास्तिक आदि लिखें. पूजा आरम्भ के समय ‘ॐ पुण्डरीकाक्षाय’ नमः’ कहते हुए अपने ऊपर जल छिडकें.
अपने पूजा स्थल से दक्षिण और पूर्व के कोने में घी का दीपक जलाते हुए यह मंत्र पढ़ें –
ॐ दीपो ज्योतिः परब्रह्म दीपो ज्योतिर्र जनार्दनः|
दीपो हरतु में पापं पूजा दीप नमोस्तु ते।।