नई दिल्ली: बिहार की राजनीति से बड़ा खबर सामने आयी है, चिराग पाससवान की पार्टी एलजेपी में बगावत हो गयी है. चिराग पासवान के साथ यह बगावत किसी और ने नहीं बल्कि उनके पशुपति पारस ने की है. इस बगावत के बाद एलजेपी के अध्यक्ष और संसदीय दल के नेतता चिराग पासवान अकेले पड़ते नजर आ रहे हैं. इसके साथ हही सवाल उठ रहे हैं कि क्या चाचा पशुपत पारस ने भतीजे चिराग पासवान के राजनीतिक करियर पर ब्रेक लगा दिया है.
सूत्रों के मुताबिक पार्टी के छह में से पांच लोकसभा सांसदों ने पशुपति पारस को संसदीय दल का नेता चुन लिया है. इसके साथ ही नए नेता चुने जाने का पत्र भी लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला को सौंप दिया गया है. अब अगर लोकसभा स्पीकर संसदीय दल के नेता के रूप में पशुपति पारस को मान्यता दे देते हैं तो चिराग पासवान की एलजेपी संसदीय दल के नेता के तौर पर मान्यता खत्म हो जाएगी.
सूत्रों के मुताबिक स्पीकर को भेजे पत्र में हाजीपुर से सांसद पशुपति पारस से अलावा हाजीपुर से सांसद प्रिंस पासवान, खगड़िया के सांसद महबूब अली कैसर, वैशाली से सांसद वीणा देवी और नावादा सांसद चंदन सिंह ने हस्ताक्षर किए हैं. सूत्रो के मुताबिक आज पशुपति पारस के घर बैठक होगी और इसके बाद फैसले को सार्वजनिक किया जाएगा.
खबर तो यह भी है कि इस बात की जानकारी बीजेपी और जेडीयू के शीर्ष नेतृत्व को भी है. पिता राम विलास पासवन के निधन के बाद एलजेपी के पोस्टर ब्वॉय चिराग पासवान बन गए और पार्टी से जुड़े सभी फैसले लेने लगे. यही बात पार्टी के बाकी नेताओं को पसंद नहीं आ रही थी. विधानसभा चुनाव में एनडीए से अलग लड़ने का फैसला भी चिराग का ही माना जाता है, जहां एलजेपी को बड़ी हार देखनी पड़ी थी
बिहार की इस बगावत के बाद सवाल उठता है कि क्या देश के राजनीति इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब एक पारिवारिक सदस्य ने दूसरे सदस्य के साथ बगावत की हो? इस सवाल का जवाब हां में है. महाराष्ट्र की राजनीति से भी चाचा और भतीजे में राजनीतिक तकरार को देश ने पहले भी देखा है. यह चाचा और भतीजे और कोई नहीं बल्कि बाला साहेब ठाकरे और राज ठाकरे थे.
बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने जे जे स्कूल ऑफ आर्टस से फाइन आर्ट की पढ़ाई पूरी करने के बाद राजनीति में रूचि लेना शुरू कर दिया. राज ठाकरे भी बाला साहेब की तरह शुरू में कार्टून बनाने लगे. साल 1990 में पहली बार राज की सियासत में एंट्री हुई. राज ठाकरे को शुरू में विद्धार्थी सेना का अध्यक्ष बनाया गया
राज ठाकरे अपने चाचा बाल ठाकरे के हर अंदाज को बारीकी से देखकर उसकी कॉपी करने लगे थे जिसकी वजह से शिवसेना में जूनियर बाल ठाकरे के रूप में उनका कद तेजी से बढ़ने लगा. 1989 में पहली बार शिवसेना का एक उम्मीदवार सांसद पहुंचा. 1995 के विधानसभा चुनावों में शिवसेना बीजेपी गठबंधन की जीत हुई. महाराष्ट्र में बाला साहब इतना बड़ा चेहरा होने के बाद मुख्यमंत्री नहीं बने लेकिन सत्ता की चाबी उन्हीं के पास रही.