इंडिया गठबंधन की हवा निकली! क्या कांग्रेस अब अकेले पड़ जाएगी?

नई दिल्ली: “इंडिया गठबंधन का क्या हुआ?” ये सवाल इन दिनों काफी चर्चा में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने के लिए बने इस गठबंधन का भविष्य अब सवालों के घेरे में है। पिछले कुछ दिनों से जो घटनाक्रम सामने आए हैं, उससे यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि इंडिया गठबंधन की स्थिति अब काफी कमजोर हो चुकी है। खासतौर पर जब आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने इसे सिर्फ 2024 के लोकसभा चुनावों तक सीमित कर दिया, तो कई राजनीतिक हलकों में यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या गठबंधन अब खत्म हो चुका है? क्या कांग्रेस को अब अलग-थलग कर दिया गया है? और क्या ये गठबंधन जो मोदी को सत्ता से उखाड़ने का दावा कर रहा था, अब खुद ही टूटने की कगार पर है?

गठबंधन की पहली दरार

इंडिया गठबंधन को लेकर पिछले कुछ महीनों में कई प्रकार की समस्याएं सामने आई हैं। कभी सीटों के बंटवारे को लेकर विवाद हुए, तो कभी कुछ दलों ने एक-दूसरे के विचारों को लेकर खींचतान की। ईवीएम पर राय में मतभेद और अडानी के मुद्दे पर हुए झगड़े ने इस गठबंधन के अंदर की दरारों को और चौड़ा किया। इन समस्याओं के बीच, गठबंधन में शामिल दलों ने भी एक दूसरे की नीतियों पर सवाल उठाने शुरू कर दिए थे। लेकिन अब सबसे बड़ी खबर तेजस्वी यादव के बयान से आई है, जिसमें उन्होंने साफ तौर पर कहा कि इंडिया गठबंधन सिर्फ 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए था, उसके बाद कोई गठबंधन नहीं रहेगा।

दिल्ली चुनाव में हुआ बड़ा उलटफेर

दिल्ली विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन की ताकत और कमजोरियां साफ तौर पर नजर आईं। कांग्रेस और अन्य दलों ने आप के खिलाफ एकजुट होने की बजाय केजरीवाल के पक्ष में खड़ा होना शुरू कर दिया। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस, अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी, और उद्धव ठाकरे की शिवसेना जैसे बड़े दलों ने इस बार कांग्रेस को अकेला छोड़ दिया और दिल्ली में आप को समर्थन दे दिया। यह संकेत था कि अब इंडिया गठबंधन में कांग्रेस का प्रभाव घट चुका है। इन दलों ने यह तर्क दिया कि कांग्रेस का साथ देना मतलब बीजेपी के खिलाफ वोट बंटना, और यह सीधे तौर पर बीजेपी को फायदा पहुंचाएगा।

अखिलेश यादव ने तो खुले तौर पर केजरीवाल के पक्ष में समर्थन का ऐलान कर दिया। ऐसे में साफ है कि इंडिया गठबंधन में अब सीटों के बंटवारे और राजनीतिक नेतृत्व को लेकर मतभेद और विवाद बढ़ते जा रहे हैं।

तेजस्वी यादव ने क्यों छोड़ा कांग्रेस का साथ?

अब बिहार में, जहां तेजस्वी यादव ने हाल ही में कांग्रेस से दूरी बनाई है, यह सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस का भविष्य अकेले ही संघर्ष करने का है। कांगेस सूत्रों का कहना है कि क्षेत्रीय दल अपनी सीटों के लिए दबाव बना रहे हैं और इसी कारण ऐसे बयान आ रहे हैं। वे यह भी दावा कर रहे हैं कि तेजस्वी यादव, बिहार में कांग्रेस को कम सीटें देने के लिए यह बयान दे रहे हैं, ताकि बिहार में चुनावी समीकरण उनके पक्ष में बने। वहीं कांग्रेस का कहना है कि इंडिया गठबंधन का गठन सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर आरएसएस की विचारधारा के खिलाफ था, और राज्यों में हर पार्टी को अपनी चुनावी रणनीति अपनाने का अधिकार है।

कांग्रेस की रणनीति और गठबंधन की स्थिति

कांग्रेस भी यह मान रही है कि देश के विभिन्न राज्यों में गठबंधन का राजनीतिक माहौल अलग-अलग हो सकता है। दिल्ली चुनाव और बिहार में हुए घटनाक्रम ने यह साफ कर दिया है कि इंडिया गठबंधन की स्थिति अब नाम की ही रह गई है। जहां एक ओर कांग्रेस अपने आप को राष्ट्रीय मुद्दों पर एकजुट दिखाने की कोशिश कर रही है, वहीं दूसरी ओर क्षेत्रीय दल अपनी स्वतंत्रता और सीटों को लेकर कांग्रेस से अलग-थलग होते जा रहे हैं।

क्या खत्म हो जाएगा इंडिया गठबंधन?

यह कहना अब मुश्किल हो गया है कि इंडिया गठबंधन अगले चुनाव में एकजुट रह पाएगा या नहीं। गठबंधन में शामिल दल अब कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल उठा रहे हैं, और यह भी कहा जा रहा है कि अब कांग्रेस को पूरी तरह से राष्ट्रीय राजनीति में खुद को स्थापित करना होगा। बिहार, दिल्ली, महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे राज्यों में जहां कांग्रेस ने गठबंधन का नेतृत्व किया, वहां से सीटों के बंटवारे को लेकर मतभेद बढ़ते जा रहे हैं। तेजस्वी यादव का बयान भी इस बात का इशारा है कि इंड‍िया गठबंधन का यह सफर अब बहुत लंबा नहीं होगा।

राजनीति का बदलता रंग

राजनीति में रिश्ते कभी स्थिर नहीं होते, और ऐसा लगता है कि इंडिया गठबंधन में अब वही हो रहा है। जहां कभी मोदी को हराने के लिए दल एकजुट थे, अब वही दल आपसी मतभेदों और सत्ता की चाहत में टूटते दिख रहे हैं। इंडिया गठबंधन के घटक दल कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए अपने-अपने रास्ते पर चलने की कोशिश कर रहे हैं।

जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, राजनीति के बनते-बिगड़ते रिश्तों का सिलसिला जारी रहेगा। यह कहा जा सकता है कि फिलहाल, इंडिया गठबंधन अपनी असल भूमिका में नहीं दिख रहा, और कांग्रेस का नेतृत्व अब सवालों के घेरे में है।

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