भारत पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को इन तरीकों से कर सकता है हासिल

हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच विवादित कश्मीर क्षेत्र, जिसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) कहा जाता है, पर चर्चा तेज हो गई है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रविवार को पीओके के निवासियों को भारत आने और भारतीय नागरिक बनने का आमंत्रण दिया।

उनका यह बयान जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान आया, जहां वह बीजेपी के उम्मीदवार के समर्थन में थे। राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत आपको अपना मानता है, जबकि पाकिस्तान आपको विदेशी मानता है। उन्होंने यह भी दावा किया कि पाकिस्तान के एक अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने हाल ही में एक हलफनामा दायर किया था जिसमें पीओके को विदेशी भूमि बताया गया था।

राजनाथ सिंह का यह बयान चुनावी भाषण का हिस्सा हो सकता है, लेकिन यह पहली बार नहीं है जब बीजेपी ने पीओके के मुद्दे पर ऐसा रुख अपनाया है। उन्होंने कहा, “हम जम्मू और कश्मीर में इतना विकास करेंगे कि पीओके के लोग देखेंगे कि वहां रहना उनके लिए फायदेमंद नहीं है और वे भारत आने की इच्छा जताएंगे।” राजनाथ सिंह का यह बयान भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चल रहे विवाद को और हवा दे सकता है।

पाकिस्तान के संविधान में पीओके का विशेष उल्लेख नहीं है। संविधान के आर्टिकल 257 में कहा गया है कि पीओके पाकिस्तान का हिस्सा तब बनेगा जब वहां के लोग इसे चाहेंगे। पाकिस्तान की सरकार ने हाल ही में स्वीकार किया है कि पीओके ‘विदेशी जमीन’ है, हालांकि यह स्थिति संविधान में स्पष्ट नहीं की गई है।

भारत को पीओके प्राप्त करने के लिए कई रास्ते हैं, जिनमें अंतरराष्ट्रीय दबाव, द्विपक्षीय वार्ता, ताकतवर देशों से मजबूत संबंध, कानूनी और संवैधानिक उपाय, सैन्य ऑपरेशन, और जन आंदोलन शामिल हैं। भारत संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के मानवाधिकार उल्लंघनों और पीओके के कब्जे का मुद्दा उठाता रहा है। इसके अलावा, भारत को अमेरिका और रूस जैसे देशों के साथ अपने संबंध मजबूत करने चाहिए जो पाकिस्तान पर दबाव डाल सकते हैं।

अमित शाह ने भी पीओके को भारत का हिस्सा मानते हुए इसे वापस लाने की प्राथमिकता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने कश्मीर को नजरअंदाज किया, जबकि उनकी सरकार ने अनुच्छेद 370 को समाप्त कर और आतंकवाद पर काबू पाया है।

भारत की पीओके के मुद्दे पर भविष्य की योजना और रणनीति देखनी बाकी है, लेकिन विभिन्न तरीकों से दबाव और बातचीत के माध्यम से समाधान की संभावनाएं खुलती हैं।

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