Friday, April 18, 2025

चीन से मिलकर लड़ेंगे भारत और जापान, थिंक टैंक ने दिया नई परमाणु मिसाइलें बनाने का सुझाव

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता और अमेरिका की अनिश्चित विदेश नीति के बीच एक नई रणनीतिक साझेदारी उभरती दिख रही है। जापान के एक प्रमुख थिंक टैंक ने हाल ही में प्रस्ताव दिया है कि भारत और जापान को मिलकर लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइल प्रणाली विकसित करनी चाहिए। इस कदम का उद्देश्य न केवल चीन की बढ़ती ताकत का मुकाबला करना है, बल्कि अमेरिका पर निर्भरता को भी कम करना है।

एक साथ आएंगे भारत और जापान

जापान और भारत दोनों ही पिछले कुछ वर्षों में चीन की विस्तारवादी नीतियों का सामना कर चुके हैं। भारत को लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश जैसे संवेदनशील इलाकों में लगातार घुसपैठ का सामना करना पड़ा है, वहीं जापान को सेनकाकू द्वीप समूह पर चीनी दावों ने परेशान कर रखा है। जापानी थिंक टैंक का मानना है कि यदि भारत और जापान एक साझा मिसाइल प्रोग्राम पर काम करें, जिसकी रेंज 2000 से 3000 किलोमीटर तक हो, तो ये न केवल रणनीतिक रूप से फायदेमंद होगा बल्कि चीन को भी एक स्पष्ट संदेश देगा। इस मिसाइल की पहुंच चीन के आंतरिक ठिकानों तक हो सकती है—खासकर वो सैन्य बेस जो फिलहाल चीन को अजेय बना रहे हैं।

नई शक्ति, नई रणनीति

भारत के पास पहले से ही अग्नि मिसाइलों की श्रृंखला मौजूद है, जो कई हजार किलोमीटर दूर तक वार कर सकती है। वहीं जापान अब टॉमहॉक और टाइप-12 जैसी लंबी दूरी की मिसाइलें अपने रक्षा ढांचे में शामिल कर रहा है। ऐसे में दोनों देशों की ताकत को मिलाकर एक ऐसा हाइब्रिड मिसाइल प्लेटफॉर्म तैयार किया जा सकता है, जिसे समुद्री या जमीनी दोनों प्लेटफॉर्म से लॉन्च किया जा सके। इस साझेदारी में भारत की मिसाइल निर्माण में लागत प्रभावी विशेषज्ञता और जापान की उच्च तकनीकी सटीकता का अनूठा संगम देखने को मिल सकता है। यह कदम दोनों देशों को अमेरिकी रणनीतिक छतरी से कुछ हद तक आत्मनिर्भर बना सकता है।

चीन की मिसाइल ताकत को मिलेगी चुनौती

चीन के पास DF-26 जैसी मिसाइलें हैं, जिनकी मारक क्षमता 4000 किलोमीटर से अधिक है और जिन्हें ‘एयरक्राफ्ट कैरियर किलर’ कहा जाता है। इसके अलावा चीन ने एंटी-एक्सेस/एरिया-डिनायल रणनीति के तहत ताइवान और दक्षिण चीन सागर में अपनी पकड़ मजबूत की है। ऐसे में भारत और जापान यदि एक साझा लंबी दूरी की मिसाइल विकसित करते हैं, तो यह चीन की इन क्षमताओं को संतुलित कर सकता है। साथ ही यह एक स्पष्ट संकेत भी होगा कि एशिया के लोकतांत्रिक देश अब मिलकर अपनी सुरक्षा का खाका तैयार कर रहे हैं।

बदल सकते हैं एशिया में सुरक्षा समीकरण

यह प्रस्ताव अभी केवल कागज़ों पर है, लेकिन अगर इसे अमल में लाया जाता है तो यह एशिया में सुरक्षा के समीकरण बदल सकता है। यह न केवल एक तकनीकी सहयोग होगा, बल्कि दो लोकतांत्रिक शक्तियों के बीच एक रणनीतिक गठबंधन की शुरुआत भी होगी। ऐसे समय में जब अमेरिका की प्रतिबद्धता पर सवाल उठ रहे हैं, भारत और जापान का यह कदम एशिया में एक ‘इंटीग्रेटेड डिटरेंस’ की ओर बड़ा और ठोस कदम साबित हो सकता है।

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