नई दिल्ली। भारत ने हमारे अंदरूनी मामलों में दखल देने के लिए एक बार फिर पाकिस्तान को कड़ी फटकार लगाई है। दरअसल पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अयोध्या राम मंदिर और नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का मुद्दा उठाया, यह बात भारत को नागवार गुजरी और भारत ने दुनिया के कई देशों के सामने पाकिस्तान को दो टूक जवाब देते हुए कहा कि पड़ोसी देश अपने सीमित और गुमराह करने वाले दृष्टिकोण के साथ दु:खद रूप से स्थिर बना हुआ है, यह एक टूटे हुए रिकॉर्ड की तरह है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तान ने ‘इस्लामोफोबिया से निपटने के उपायों’ पर एक प्रस्ताव पेश किया था। यह प्रस्ताव चीन की ओर से सह प्रायोजित मसौदा था। इस दौरान पाकिस्तान ने अयोध्या राम मंदिर और भारत नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए का मुद्दा उठाया। इस बात पर भारत की राजदूत रुचिरा कंबोज ने पाकिस्तान को अपमानजनक रूप से एक टूटा हुआ रिकॉर्डधारी देश करार दिया। उन्होंने कहा कि केवल एक धर्म के बजाय हिंदू, बौद्ध, सिख हिंसा और भेदभाव का सामना करने के लिए अन्य धर्मों के खिलाफ धार्मिक भय की व्यापकता को स्वीकार किया जाना चाहिए।
पाकिस्तान के राजदूत मुनीर अकरम ने इस्लामोफोबिया विषय पर बोलते हुए अयोध्या में राम मंदिर और सीएए का मुद्दा उठाया था। रुचिरा कंबोज ने कहा कि पड़ोसी देश अपने सीमित और गुमराह करने वाले दृष्टिकोण के साथ दुखद रूप से स्थिर बने हुए हैं। यह एक टूटे हुए रिकॉर्ड की तरह हैं। जबकि दुनिया प्रगति कर रही है, लेकिन इस देश की हालत दुखद रूप से स्थिर बनी हुई है। कंबोज ने आगे कहा कि इस्लामोफोबिया का मुद्दा नि:संदेह महत्वपूर्ण है, लेकिन हमें यह स्वीकार भी करना होगा कि अन्य धर्मों के लोग भी हिंसा और भेदभाव का सामना कर रहे हैं।
सभी को यह स्वीकार करना होगा कि दुनियाभर में 1.2 अरब से अधिक हिंदू, 53.5 करोड़ बौद्ध, तीन करोड़ से अधिक सिख, सभी धार्मिक पूर्वाग्रह की चुनौती का सामना कर रहे हैं। अब समय आ चुका है कि एक धर्म के बजाय सभी धर्मों के प्रति धार्मिक पूर्वाग्रह की व्यापकता को स्वीकार किया जाए। कंबोज ने कहा कि मेरे देश से संबंधित मामलों को सीमित और गुमराह करने वाले दृष्टिकोण को देखना वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है।
खासकर तब जब महासभा सदस्यों से ज्ञान, गहराई और वैश्विक दृष्टिकोण की मांग करता है, लेकिन पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल की यह विशेषता नहीं है। पाकिस्तान की ओर से 193 सदस्यीय महासभा में पेश किए गए प्रस्ताव को अपनाया गया। जिसके पक्ष में 115 देशों ने मतदान किया। भारत, ब्राजील, फ्रांस, जर्मनी, इटली, यूक्रेन और ब्रिटेन सहित 44 देशों ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया।