सुप्रीम कोर्ट सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि आतंकवाद की परिभाषा का आधार, बीमा कंपनियों के दावों के आधार नहीं तय किया जा सकता बल्कि ये पॉलिसी में दी गई परिभाषा से परिभाषित होंगें।
गौरतलब है कि झारखंड की एक कंपनी नर्सिंग इस्पात लिमिटेड की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह निर्णय सुनाया।
दरसल यह मामला नर्सिंग इस्पात लिमिटेड द्वारा एक बीमा दावा में ओरिएंटल इंश्योरेंस कम्पनी ने आतंकवाद के कारण हुए उपवाद को उपबंध का हवाला देकर ख़ारिज किया था। इसका दावा था कि स्टैंडर्ड फॉर एंड स्पेशल पेरेयल्स पॉलिसी के तहत उसके हुए नुकसानों का भरपाया कंपनी को करना चाहिए ।
हालांकि बीमा दावों को ख़ारिज करने का निर्णय एनडीआरसी द्वारा बरकरार रखा गया था।
इस मामले में बीमा कंपनी को न्यायमूर्ति अभय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अभय अशोका की पीठ ने सोमवार को एक माह के भीतर रजिस्ट्री के ८७ लाख रुपए जमा करने का आदेश दिया और एनडीआरसी के फैसले को ख़ारिज कर दिया ।
यह मामला २८ जून २००९ से २७ जून २०१० के मध्य का है। नर्सिंग इस्पात द्वारा २६ करोड़ का पॉलिसी खरीदा गया था जिसमें २ लाख से अधिक के प्रीमियम का भुगतान भी कर दिया गया था।
पॉलिसी में कारखाना की संपत्ति को आग , बिजली , विस्फोटक , दंगों , हड़ताल इत्यादि के कारण हुए नुकसान को कवर किया जाना था। लेकिन कंपनी ने इस नीति को २७ मार्च २०१० के हुए घटना के आधार पर ख़ारिज कर दिया था। जिसमें ५०-६० असामजिक हथियार बंद लोगों ने कारखाने के परिसर में घुसकर स्थानीय लोगों के लिए पैसे और नौकरी की मांग की और बाद में श्रमिकों से फिरौती की भी मांग की। कारखाने में लगे उपकरणों एवम मशीनरी को काफी नुकसान पहुंचाया । लेकिन बीमा कंपनी द्वारा अपवर्जन खंडन के आधार पर नर्सिंग इस्पात लिमिटेड के दावे को अस्वीकार कर दिया और उसे एनडीआरसी ने भी बरकरार रखा ।