नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को समलैंगिकता को अवैध बताने वाली IPC की धारा 377 की वैधता पर अहम फैसला सुनाया है. चीफ़ जस्टिस की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि समलैंगिकता अपराध नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को अतार्किक और मनमानी धारा बताते हुए करीब 55 मिनट में अपना फ़ैसला सुनाकर धारा 377 को रद्द कर दिया.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि वो जांच करेंगे कि क्या जीने के मौलिक अधिकार में ‘यौन आजादी का अधिकार’ शामिल है, विशेष रूप से 9 न्यायाधीश बेंच के फैसले के बाद कि ‘निजता का अधिकार’ एक मौलिक अधिकार है.
आपको बता दें, भारत में 2009 में पहली बार धारा 377 पर सेक्स वर्करों ने अपनी आवाज उठाई. नाज़ फाउंडेशन के इन सेक्स वर्करों ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि यह सिर्फ सेक्स की बात नहीं बल्कि यह हमारी आजादी, भावना, समानता और सम्मान का हनन है.
क्या है धारा 377
भारत में समलैंगिकता एक कानून अपराध है और इसके लिए बकायादा भारतीय दंड संहिता में कड़ी सजा का प्रावधान भी किया गया है. आईपीसी की धारा 377 के तहत अगर आरोप सिद्ध हो जाता है तो 10 साल या फिर आजीवन जेल की सजा का भी प्रावधान है. ये सजा गैर-जमानती होती है यानि अगर कोई पुरुष या महिला इस एक्ट के तहत गिरफ्तार होते हैं तो उन्हें बेल भी नहीं मिल सकती है.
इस एक्ट के तहत आपसी सहमति के बावजूद दो पुरुषों या दो महिलाओं के बीच सेक्स के अलावा पुरुष या महिला का आपसी सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध (unnatural Sex), पुरुष या महिला का जानवरों के साथ सेक्स या फिर किसी भी प्रकार की अप्राकृतिक हरकतों को भी इस श्रेणी में रखा गया है.
ACT 377 के अंतर्गत अपराध को संज्ञेय बनाया गया है. इसमें गिरफ्तारी के लिए किसी प्रकार के वारंट की जरूरत नहीं होती है. शक के आधार पर या गुप्त सूचना का हवाला देकर पुलिस इस मामले में किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है. समलैंगिकता की इस श्रेणी को LGBTQ (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीयर) के नाम से भी जाना जाता है. इसी समुदायों के लोग भारतीय दंड संहिता के तहत इस धारा में बदलाव कराने और अपना हक पाने की लड़ाई लड़ रहे हैं.
किसने बनाई धारा 377?
भारतीय दंड संहिता की धारा 377 जिसे हम इंडियन पीनल कोड के सेक्शन 377 के नाम से भी जानते है, एक विवादित कानून है जो ब्रिटिश काल में बनी थी. इसके अंतर्गत समान लिंग के कोई भी दो व्यक्ति अगर आपस में जिस्मानी संबंध बनाते हैं तो उसे अपराध की श्रेणी में रखा जाता है. इस एक्ट के निर्माता थे ब्रिटेन में जन्मे लॉर्ड मैकाले जो एक राजनीतिज्ञ और इतिहासकार थे. उन्हें 1830 में ब्रिटिश पार्लियामेन्ट का सदस्य चुना गया.
वो1834 में गवर्नर-जनरल के एक्जीक्यूटिव काउंसिल के पहले कानूनी सदस्य नियुक्त होकर भारत आए थे. भारत आकर वह सुप्रीम काउंसिल में लॉ मेंबर और लॉ कमिशन के हेड बने. इस दौरान उन्होंने भारतीय कानून का ड्राफ्ट तैयार किया. इसी ड्राफ्ट में धारा-377 में समलैंगिक संबंधों को अपराध की कैटेगरी में डाला गया.