जानकार बता रहे हैं, योगी का हनुमान को “दलित” कहना सही है या गलत
विश्वजीत भट्टाचार्य: राजस्थान के अलवर में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने एक चुनावी जनसभा में हनुमान को दलित, वंचित, वनवासी कह दिया. इससे विवाद खड़ा हो गया है. विरोध करने वालों का कहना है कि दलित कहकर हनुमान का अपमान किया गया. हनुमान को दलित कहने पर योगी आदित्यनाथ को नोटिस तक भेजा गया है. वैसे “दलित” शब्द की हिंदी और अंग्रेजी में परिभाषा को देखें तो उस हिसाब से योगी का बयान ठीक नजर आता है, लेकिन जानकारों की राय इस पर बंटी हुई है.
“दैनिक हिंदुस्तान” दिल्ली के संपादक रह चुके प्रमोद जोशी का कहना है कि दलित शब्द किसी व्यक्ति की सामाजिक हालत बताता है. अगर कोई सवर्ण भी है और वो सुविधाओं से वंचित है, तो उसे भी दलित कहा जा सकता है. प्रमोद जोशी के अनुसार हनुमान किष्किंधा के वन में रहते थे और इस तरह तत्कालीन समाज के हिसाब से उन्हें कई तरह की सुविधाओं से वंचित रहना पड़ा था. ऐसे में योगी आदित्यनाथ का हनुमान को दलित बताना गलत नहीं है.
वहीं, हिंदी की नामचीन पत्रिका “इंडिया टुडे” के संपादक अंशुमान तिवारी के अनुसार हनुमान रुद्र के 11वें अवतार थे. उनके पिता पवन थे, जो देवताओं में शुमार किए जाते हैं. इस तरह हनुमान को वंचित श्रेणी का मानना भी सही नहीं है. अंशुमान तिवारी ने “रामायण महातीर्थम” पुस्तक के लेखक कुबेरनाथ राय का हवाला दिया. कुबेरनाथ राय ने रामायण और आदिग्रंथों को लेकर काफी रिसर्च की. उन्होंने लिखा था कि वानर एक खास जाति थी.
दलित शब्द आखिर कहां से आया है ?
संस्कृत को देखें, तो दलित शब्द की व्युत्पत्ति “दल” धातु से हुई है. संस्कृत में दल का मतलब कुचलना, हिस्से करना और तोड़ना है. “हिंदी शब्दसागर” और “वृहत हिंदीकोश” में दलित का अर्थ कुचला हुआ, खंडित, रौंदा हुआ, मर्दित, दबाया हुआ, पदाक्रांत वगैरा दिया हुआ है. बात करें अंग्रेजी के शब्दकोशों की, तो ज्यादातर में दलित शब्द के लिए “डिप्रेस्ड” और “डाउन ट्रोडन” लिखा गया है. डाउन ट्रोडन की हिंदी करें, तो ये पददलित होता है यानी सबसे ज्यादा वंचित.
दलित और शूद्र में है बड़ा अंतर
दैनिक हिंदुस्तान दिल्ली के संपादक रहे प्रमोद जोशी के अनुसार समाज में रहने वाला कोई भी व्यक्ति दलित हो सकता है. यानी ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य समुदाय का कोई व्यक्ति सुविधाओं से वंचित हो, तो उसे भी दलित ही कहा जाएगा. वहीं, शूद्र के बारे में “निरुक्त शास्त्र” में यास्क मुनि कहते हैं-
जन्मना जायते शूद्र: संस्कारात भवेत द्विज।
वेद पाठात् भवेत् विप्र: ब्रह्म जानातीति ब्राह्मण।।
इसका अर्थ है कि हर व्यक्ति जन्म से शूद्र होता है. संस्कार मिलने पर वो द्विज हो जाता है. वेदों को पढ़ने और समझने से वो विप्र होता है. जो ब्रह्म यानी ईश्वर को जान ले, वो ही ब्राह्मण कहलाने का अधिकारी है.