ISRO की बड़ी लॉन्चिंग टली, PROBA-3 मिशन में हुई देरी, जानिए इसकी वजह

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने आज, यानी 4 दिसंबर को जो महत्वाकांक्षी PSLV-C59 रॉकेट के जरिए PROBA-3 मिशन लॉन्च करने की योजना बनाई थी, उसे तकनीकी खराबी के कारण स्थगित कर दिया है। अब यह मिशन कल, 5 दिसंबर को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से शाम 4:12 बजे लॉन्च किया जाएगा। इस मिशन को लेकर ISRO के अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि लॉन्चिंग से पहले कुछ तकनीकी समस्या आई थी, जिसकी वजह से मिशन को रद्द करना पड़ा।
इस लॉन्च के बारे में जानकारी देते हुए ISRO के प्रवक्ता ने बताया कि वैज्ञानिकों ने इस तकनीकी दिक्कत को हल कर लिया है और अब मिशन को पुनः 5 दिसंबर के लिए निर्धारित किया गया है। इस मिशन में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) का भी सहयोग है, और यह मिशन सूर्य के सबसे बाहरी और गर्म भाग का अध्ययन करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
PROBA-3 मिशन का महत्व
PROBA-3 मिशन, जो यूरोपीय देशों का एक साझेदारी प्रोजेक्ट है, सूर्य के कोरोना या उसकी परिमंडल (Corona) का अध्ययन करेगा। कोरोनाग्राफ, यानी सूर्य का बाहरी वायुमंडल, जो बेहद गर्म और रहस्यमय होता है, उसे समझना वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत अहम है। इससे सूर्य के व्यवहार, सौर तूफान, और इसके पृथ्वी पर प्रभावों को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी।
PROBA-3 मिशन के तहत, ESA ने दो स्पेसक्राफ्ट तैयार किए हैं, जिनका नाम है “Occulter” और “Coronagraph”। इन दोनों सैटेलाइट्स की एक खास बात यह है कि यह दोनों स्पेसक्राफ्ट मिलकर सूर्य के कोरोना का बहुत गहराई से अध्ययन करेंगे। इस मिशन की खास बात यह है कि यह पहला मौका है जब अंतरिक्ष में ‘Precision Formation Flying’ (सटीक आकार में उड़ान) तकनीक का परीक्षण किया जाएगा। इस तकनीक में दोनों सैटेलाइट्स एक निश्चित आकार और एक साथ उड़ान भरेंगे, और हर स्थिति में एक-दूसरे से एक निश्चित दूरी बनाए रखेंगे।
ISRO और ESA का सहयोग, भारत का अहम रोल
PROBA-3 मिशन में ISRO की वाणिज्यिक शाखा न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। ISRO ने इस मिशन को सफल बनाने के लिए सभी आवश्यक तकनीकी सहयोग प्रदान किया है। इस मिशन में ISRO का योगदान, पहले दो PROBA मिशन की सफलता को देखते हुए, भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के लिए एक और बड़ा कदम साबित हो सकता है।
इससे पहले, ISRO ने 2001 में PROBA-1 और 2009 में PROBA-2 मिशन लॉन्च किए थे, जिनमें सफलता हासिल हुई थी। इन दोनों मिशनों में, ISRO ने सौरमंडल और पृथ्वी के बाहरी वातावरण के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की थी। अब PROBA-3 से उम्मीद की जा रही है कि सूर्य के कोरोना के बारे में नई जानकारी मिलेगी, जिससे सूर्य के व्यवहार और उस पर आधारित कई विज्ञान को समझने में मदद मिलेगी।
PROBA-3 मिशन के स्पेसक्राफ्ट
इस मिशन में दो मुख्य स्पेसक्राफ्ट होंगे:
  1. Occulter – यह स्पेसक्राफ्ट लगभग 200 किलोग्राम वजन का होगा और इसका मुख्य काम सूर्य के कोरोना का अध्ययन करना होगा। इसे सूर्य के सामने रखकर, इसका उद्देश्य सूर्य की रोशनी को अवरुद्ध करना है, ताकि कोरोनाग्राफ को सूर्य के बाहरी वातावरण के बारे में अधिक सटीक जानकारी मिल सके।
  2. Coronagraph – यह स्पेसक्राफ्ट लगभग 340 किलोग्राम वज़न का होगा और यह सूर्य के बाहरी वातावरण के बारे में जानकारी प्रदान करेगा। यह सटीक तरीके से कोरोना का अध्ययन करने में मदद करेगा।
लॉन्च के बाद, ये दोनों सैटेलाइट्स एक दूसरे से अलग हो जाएंगे, लेकिन उनका मुख्य उद्देश्य एक ही रहेगा—सौर कोरोना का गहन अध्ययन।
मिशन का लक्ष्य और समयसीमा
PROBA-3 मिशन की समयसीमा लगभग 2 साल की है। इस दौरान, दोनों स्पेसक्राफ्ट सूर्य के कोरोना का अध्ययन करेंगे और इससे मिली जानकारी का इस्तेमाल पृथ्वी के सौर वायुमंडल के अध्ययन में किया जाएगा। सूर्य के कोरोना का तापमान बेहद अधिक होता है और इसकी संरचना को पूरी तरह से समझ पाना वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत अहम है।
इस मिशन के माध्यम से वैज्ञानिक यह समझने की कोशिश करेंगे कि सूर्य के बाहरी वातावरण के तापमान में इतनी अधिक वृद्धि क्यों होती है, जबकि सूर्य के अंदरूनी हिस्से का तापमान अपेक्षाकृत कम है। इससे सूर्य के सौर तूफानों, कणों और अन्य घटनाओं के प्रभाव को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी।
नए प्रयोग और तकनीक
PROBA-3 मिशन में ‘Precision Formation Flying’ तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। इसका मतलब यह है कि दोनों सैटेलाइट्स अपने रास्ते पर एक साथ उड़ते हुए, एक स्थिर और निर्धारित रूप में अपने स्थान को बनाए रखेंगे। यह एक चुनौतीपूर्ण काम है, क्योंकि अंतरिक्ष में इतनी सटीकता से उड़ान भरना बहुत कठिन है।
इस तकनीक का सफल परीक्षण विज्ञान के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी, क्योंकि इससे भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों में नई संभावनाओं के द्वार खुल सकते हैं। यह तकनीक अन्य अंतरिक्ष मिशनों में भी लागू की जा सकती है, जैसे कि गहरे अंतरिक्ष से जुड़ी परियोजनाओं में।
अंतरिक्ष में यूरोपीय देशों का सहयोग
PROBA-3 मिशन यूरोप के कई देशों के सहयोग से संचालित हो रहा है। इस मिशन में भागीदार देशों में स्पेन, पोलैंड, बेल्जियम, इटली और स्विट्जरलैंड शामिल हैं। यह मिशन एक महत्वपूर्ण कदम है यूरोप और भारत के बीच अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ाने के लिहाज से।
इस मिशन से दोनों देशों को सूर्य और अंतरिक्ष के अन्य रहस्यों को समझने का एक नया अवसर मिलेगा। इसके अलावा, यह इस बात को भी प्रमाणित करेगा कि अंतरिक्ष विज्ञान में सहयोग से हम बड़े और चुनौतीपूर्ण मिशनों को अधिक प्रभावी ढंग से पूरा कर सकते हैं।

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