जानें कैसे एक झूठे मामले ने इसरो के पूर्व वैज्ञानिक की जिंदगी को कर दिया था तबाह

केरल पुलिस ने 1994 में इसरो के दो वैज्ञानिकों, बैंगलोर के दो व्यापारियों और दो मालदीव की औरतों की गिरफ्तारी की थी. गिरफ्तार किए गए इन लोगो में इसरो के जाने माने नाम्बी नारायण भी शामिल थे.

नई दिल्ली: इसरो जासूसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व वैज्ञानिक नाम्बी नारायणन को 50 लाख रूपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है. नारायण ने जासूसी मामले के काऱण हुई मानहानी के लिए सुप्रीम कोर्ट में मुआवजे की मांग वाली याचिका दायर की थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केरल पुलिस ने उन्हें बेवजह सताया औऱ गिरफ्तार किया गया था. जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस खानविलकर औऱ जस्टिस चंद्रचूड़ ने जुलाई में इस फैसले को सुरक्षित रख लिया था.

क्या था पूरा मामला

केरल पुलिस ने 1994 में इसरो के दो वैज्ञानिकों, बैंगलोर के दो व्यापारियों और दो मालदीव की औरतों की गिरफ्तारी की थी. गिरफ्तार किए गए इन लोगो में इसरो के जाने माने नाम्बी नारायण भी शामिल थे. इन लोगों पर आरोप लगे थे कि उन्होने इसरो के रॉकेट की तकनीक पाकिस्तान को बेचने की कोशिश की थी.

इस मामले के कारण न सिर्फ नाम्बी नारायण की जिंदगी को तबाह किया बल्कि इसरो की छवि को भी बिगाड़ दिया था.
इस केस के कई आयामों को लेकर कई रिपोर्ट्स मीडिया में छपी हैं.

द डेली पायोनीर की एक रिपोर्ट के मुताबिक मालदीव की महिला से बदला लेने केरल के एक सिनीयर इंसपेक्टर ने एक झूठा केस बनाया गया था, इस केस को एक अखबार द्वारा इतना तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया कि इसमें नारायण और इसरो में उनके साथी शशी पर जासूसी जैसे गंभीर आरोप लग गए.

द पायोनीर के मुताबिक 1994 के दौरान का ये मामला केवल दो लोगों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा का नतीजा था. विदेश मंत्री ए के अंटनी इस बात पर नाराज थे कि उन्हें केरल का मुख्यमंत्री क्यों नही बनया गया और केरल के डीआई जी सीबी मैथ्यूज खुद आईजी बनने की होड़ में थे लेकिन मुश्किल था क्योंकि उस समय के आईजी रमन श्रीवास्तव तत्कालीन मुख्यमंत्री करुणाकरण के खास थे. ऐसे में एके अंटनी और सीबी मैथ्यूज ने इस केस के जरिए अपने-अपने हितों को साधने की कोशिश की.

दरअसल इस पूरे मामले की शुरुआत गृह मंत्रालय के आदेश के साथ होती है. इस आदेश में गृह मंत्रालय ने स्पेशल ब्रांच को उन विदेशी लोगों की एक लिस्ट बनाने के लिए दी थी जो भारत में वीजा खत्म होने के बावजूद भी ठहरे हुए थे. उधर मालदीव की मरिएम रशिदा नाम की एक महिला भी भारत में मौजूद थी जो फ्लाइट के कैंसल होने की वजह से अपने देश नही लौट पाई थी और वो अपने हॉटल में रुकी हुई थी.

गुजरात में प्लेग फैलने के कारण इंडियन एयरलाइन ने मालदीव की ओर की अपनी सारी उड़ानों को रद्द कर दिया था. ऐसे में मरिएम रशिदा कई बार शहर के पुलिस कमिश्नर के दफ्तर मदद के लिए जा चुकी थी. लेकिन एक समय कमिश्नर के दफ्तर में संबंधित अधिकारी नही मिलकर उसे सिनियर इंसपेक्टर विजयन मिला. जिसने महिला की मदद करने की पेशकश की. उस समय शायद ही रशिदा को इंसपेक्टर की गलत भावनाओं का अंदाजा था इस लिए उन्होने मदद को स्वीकार कर लिया. लेकिन मदद के बाद इंसपेक्टर विजयन ने महिला का फायदा उठाने की कोशिश की इस पर राशिदा ने विजयन को धमकाया औऱ ये कहते हुए अपने कमरे से निकाल दिया जानते हो मैं पांच मिनट पहले किस से बात कर रही थी? तुम्हारे आईजी से. अपनी बद्तमीजी पर रशिदा से मिले ऐसे जवाब पर विजयन तिलमिला गया और बदला लेने की ठान ली.

विजयन की दखल के चलते रशिदा के फोन डीटेल्स पर आधारित एक खबर बनी की मालदीव की रशिदा ने इसरो में क्राओजैनिक इंजन पर काम करने वाले वैज्ञानिक शशी औऱ कुछ पुलिस अफसरों से बात की है. विजयन द्वारा करवाई गई इस जांच के आधार पर एक मशहूर सामाचार पत्र ने ये स्टोरी बनाई जिसमें नारायण जो इसरो में शशी के बॉस थे और आईजी रमन श्रीवास्तव तथाकथित जासूसी केस के मुख्य आरोपी बने. अखबार की बनाई गई उस खबर ने इतनी तूल पकड़ी ये खबर आग की तरह फैल गई और नेशनल मीडिया की कवरेज इसे मिलने लगी. मामले के चलते मुख्यमंत्री को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी और एके अंटनी मुख्यमंत्री बन गए.

जिसके बाद मामले की जांच के लिए डीआईजी सीबी मैथ्यू की अध्यक्षता में एक टीम का गठन किया गया. जांच के लिए इसरो के वैज्ञानिक नारायण और उनके साथी शशि को गिरफ्तार कर लिया गया था औऱ जांच के दौरान उन्हे खूब प्रताड़ित किया गया. बाद में इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई जिससे सामने आया कि ये पूरा मामला ही झूठ पर आधारित था.

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