Kapil Sibal on Cash Scandal: भारतीय न्यायपालिका में एक ऐतिहासिक लेकिन विवादास्पद कदम सामने आया है। जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से मिले कैश मामले में सुप्रीम कोर्ट ने न केवल जांच रिपोर्ट सार्वजनिक की, बल्कि वीडियो और तस्वीरें भी जारी कर दीं। इस फैसले ने न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता और गोपनीयता के बीच बहस छेड़ दी है। (Kapil Sibal on Cash Scandal) सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सिब्बल इस फैसले से बेहद असहज दिखे और उन्होंने इसे “न्यायपालिका के लिए खतरनाक ट्रेंड” बताया। उनका कहना है कि जब तक जांच पूरी न हो, तब तक किसी भी मामले पर टिप्पणी करना न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।
“यह खतरनाक मिसाल है”
अंग्रेजी से बातचीत में सिब्बल ने कहा…”यह फैसला पूरी तरह से सुप्रीम कोर्ट के विवेक पर निर्भर करता है। यह सही है या गलत, इसका आकलन समय करेगा। अदालत खुद जब किसी दस्तावेज को जारी करती है, तो लोग उस पर विश्वास कर लेते हैं। लेकिन यह सच है या नहीं, यह बाद में तय होगा।”
उन्होंने जोर देते हुए कहा कि यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया के लिए खतरनाक मिसाल बन सकता है। सिब्बल ने सुझाव दिया कि ऐसी संवेदनशील स्थितियों में संस्थान को एक ठोस लिखित नीति बनानी चाहिए, ताकि भविष्य में इस तरह की परिस्थिति आने पर न्यायपालिका का एक स्पष्ट रुख हो।
संस्थागत निर्णय जरूरी, नहीं तो होगी बड़ी चूक!
सिब्बल ने कहा कि इस मुद्दे पर बार एसोसिएशन और अन्य कानूनी निकायों से विचार-विमर्श करके ही फैसला लिया जाना चाहिए। उनका मानना है कि न्यायाधीशों को भी वही जानकारी होती है, जो जनता को मिलती है। ऐसे में किसी भी न्यायिक संस्थान को बिना समुचित प्रक्रिया अपनाए जांच रिपोर्ट जारी नहीं करनी चाहिए।
उन्होंने सुझाव दिया कि इस तरह के मामलों से निपटने के लिए एक स्थायी समिति होनी चाहिए, जो यह तय करे कि क्या सार्वजनिक किया जाना चाहिए और क्या नहीं। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा…”अगर किसी मामले से जुड़े सबूत सार्वजनिक कर दिए जाते हैं, तो संस्था पहले ही हार मान चुकी होती है।”
सिब्बल ने न्यायिक सिद्धांतों का हवाला देते हुए कहा कि जब तक कोई व्यक्ति दोषी साबित नहीं हो जाता, तब तक उसे निर्दोष माना जाना चाहिए। लेकिन इस मामले में तो जांच अभी पूरी भी नहीं हुई है। ऐसे में किसी भी जिम्मेदार नागरिक को इस मुद्दे पर जल्दबाजी में टिप्पणी नहीं करनी चाहिए।
कैसे सामने आया यह विवाद …”आग” से उठी “आंच”
इस पूरे विवाद की शुरुआत 14 मार्च को हुई, जब नई दिल्ली में जस्टिस यशवंत वर्मा के घर आग लगने की घटना सामने आई। आग बुझाने के दौरान कथित तौर पर उनके घर से भारी मात्रा में नकदी मिलने का खुलासा हुआ, जिससे पूरा न्यायिक तंत्र हिल गया।
इस घटना के बाद जस्टिस वर्मा को दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया, जिससे मामला और भी संदिग्ध हो गया।
अब तीन जजों की कमेटी करेगी जांच
सुप्रीम कोर्ट ने 22 मार्च को तीन सदस्यीय जांच कमेटी का गठन किया, जिसमें शामिल हैं..
शीला नागू – मुख्य न्यायाधीश, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट
जीएस संधावालिया – मुख्य न्यायाधीश, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
अनु शिवरामन – न्यायाधीश, कर्नाटक हाईकोर्ट
इस कमेटी को इस विवाद की पूरी गहन जांच करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान दिल्ली हाईकोर्ट की संशोधित आंतरिक जांच रिपोर्ट को भी सार्वजनिक कर दिया और साथ ही वीडियो और तस्वीरें भी साझा कीं, जिससे बहस और तेज हो गई।
अब सवाल उठता है …क्या यह पारदर्शिता है या जल्दबाजी?
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने न्यायपालिका की पारदर्शिता और गोपनीयता के संतुलन को लेकर गंभीर बहस छेड़ दी है। क्या सुप्रीम कोर्ट का यह कदम न्यायपालिका की साख को मजबूत करेगा या इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाएगा?
कपिल सिब्बल की चिंता इस बात पर भी है कि अगर अदालतें खुद ही मामलों को सार्वजनिक करने लगेंगी, तो निष्पक्ष न्याय कैसे सुनिश्चित होगा? क्या यह फैसला न्याय की पारदर्शिता को बढ़ाने वाला है या फिर भविष्य में एक खतरनाक मिसाल बनने जा रहा है?
अब पूरा देश इस जांच रिपोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के अगले कदम का इंतजार कर रहा है। क्या यह न्याय के लिए एक नए युग की शुरुआत है या फिर न्यायपालिका की परंपराओं के टूटने का संकेत?