हिन्दू धर्म में अक्षय तृतीया का बहुत महत्व है. इस त्योहार को आखा तीज के नाम से भी जानते हैं. इसे भगवान विष्णु के छठे अवतार श्री परशुराम की जन्मतिथि भी माना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है.
इस वर्ष अक्षय तृतीया 7 मई को मनाई जा रही है. मान्यता है कि इस दिन किये गए पुण्य काम अक्षय रहते हैं यानि उनका कभी क्षय नहीं होता. इस दिन कोई भी कार्य करने के लिए मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि ग्रहों के सन्दर्भ के अनुसार यह दिन बहुत ही शुभ माना जाता है.
अक्षय तृतीया के दिन पंखा, चावल, नमक, घी, चीनी, सब्जी, फल, इमली और वस्त्र वगैरह का दान अच्छा माना जाता है. यह व्रत गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश सहित पूरे उत्तर भारत में मनाया जाता है.
इसलिए विशेष है अक्षय तृतीया
- पितरों की शांति के लिए अक्षया तृतीया को बहुत विशेष माना जाता है.
- शिव-पार्वती और नर नारायण की पूजा भी की जाती है.
- मान्यता हैं कि त्रेता युग का आरंभ अक्षया तृतीया को ही हुआ.
- सुदामा ने श्रीकृष्ण से चावल अक्षया तृतीया के दिन ही प्राप्त किए थे.
- इस दिन सोना खरीदने की भी मान्यता है.
- देश के प्रसिद्ध तीर्थस्थल श्री बद्रीनाथ के कपाट भी इसी दिन से ही खोले जाते हैं.
- पौराणिक कहानियों के मुताबिक, इसी दिन महाभारत की लड़ाई खत्म हुई. द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ.
- इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर के पूछने पर यह बताया था कि आज के दिन जो भी रचनात्मक या सांसारिक कार्य करोगे, उसका पुण्य मिलेगा.
- कोई भी नया काम, नया घर और नया कारोबार शुरू करने से उसमें बरकत और ख्याति मिलेगी.
- अक्षय तृतीया के दिन स्नान, ध्यान, जप तप करना, हवन करना, स्वाध्याय पितृ तर्पण करना और दान पुण्य करने से पुण्य मिलता है.
अक्षय तृतीया की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक गरीब सदाचारी और देवताओं में श्रद्धा रखने वाला वैश्य रहता था. अमीर बिरादरी से आने पर भी वह बहुत गरीब था और दिन-रात परेशान रहता था. एक दिन किसी ब्राह्मण ने उसे अक्षय तृतीया का व्रत रखने की सलाह दी. त्योहार के दिन गंगा स्नान करके विधि-विधान से देवताओं की पूजा करने को भी उन्होंने पुण्य बताया. इस तरह यह पर्व प्रचलन में आया.