नई दिल्ली, 14 अगस्त: आजादी के जश्न को लेकर कई किस्से और कहानियां हैं जो भारतीय लोग सुनते आए हैं और जो काफी प्रचलित हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आजादी के दिन यानि 15 अगस्त 1947 को महात्मा गांधी क्या कर रहे थे और उन्होने आजादी का जश्न कैसे मनाया था.
गांधी जिन्होने कांग्रेस को अमीरों की पार्टी से जन साधारण की पार्टी बनाया, जिन्होने आजादी का नेतृत्व किया उनके आजादी के जश्न के बारे में जानकर आपको यकीनन आजादी थोड़ी फिकी लगने लग जाएगी. लेकिन ये जानकारी आपको आजादी के मायने और कल्पना के दूसरे पक्ष बताएगी.
न केवल गांधी बल्कि कई स्वतंत्रता सेनानियों के लिए आजादी का मतलब केवल अंग्रेजों से आजादी नही था जिसमें भगत सिंह भी शामिल थे. उन नेताओं के लिए आजादी का मतलब कई सामाजिक परेशानियों से भी आजादी था. गांधी देश के बंटवारे और सांप्रदायिक हिंसाओं की कीमत पर मिली आजादी पर कुछ खास प्रसन्न नही थे.
15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ तो वो सांप्रदायिक दंगों के बीच उलझा हुआ था, गांधी ने दिल्ली में बैठ जश्न मनाने की बजाए दंगों से जुझते हुए भारत का दौरा करना बेहतर समझा. आजादी के दिन और उससे कुछ दिनों पहले वो बंगाल में थे जहां से हिंदु-मुस्लिम दंगों की शुरूआत हुई थी. वो अपने बंगाल दौरे में लोगों से शांति की अपील करते हुए उपवास पर थे.
वहीं 15 अगस्त 1947 के दिन भी गांधी उपवास पर रहे और प्रार्थना कर खादी बुनने का काम किया. अपनी मित्र अगैथा हैरिसन को लिखे एक पत्र में उन्होने कहा था कि बड़े और आज जैसे शुभ अवसरों को मैं भगवान का शुक्रिया अदा कर और प्रार्थना करते हुए मनाता हूं. इस दिन उन्होने बंगाल के राज्यपाल सी राजगोपालचारी से भी मुलाकात की थी और उन्हें बताया था कि आज तुमने कांटों का ताज पहना है, दौलत और सत्ता का शिकार मत हो जाना.
आजादी के दिन के अंत में गांधी ने हिंदु-मुस्लमानों से मुलाकात की थी और उनसे शांति बनाए रखने की कामना की थी.