महज 18 रुपये प्रति लीटर वाला पेट्रोल क्यों बिक रहा 71 रुपये में? ऐसे समझें तेल का खेल, सरकार मालामाल जनता बेहाल

नई दिल्ली, राजसत्ता एक्सप्रेस। कोरोना वायरस (Corona virus) के चलते दुनिया की अर्थव्यवस्था ध्वस्त है। कच्चे तेल (Crude Oil) की कीमतों में ऐतिहासिक गिरावट देखने को मिल रही है। लोगों को भरोसा था कि अब पेट्रोल-डीजल के दाम भी जरूर कम होंगे। कम हो भी सकते थे, लेकिन सरकार की मंशा कुछ और ही थी। वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में आई गिरावट का पूरा फायदा सरकार अकेले हजम करने में लगी है, जनता को इस मौके का रत्ती भर भी फायदा नहीं दिया जा रहा है। यह वही भाजपा है जो मनमोहन सरकार के दौरान राग अलापती थी कि पेट्रोल-डीजल लागत मूल्य से कहीं ज्यादा कीमत वसूलकर जनता को दिया जा रहा है। अब जब सत्ता हाथ में आई है तो.. इनके सुर ही जुदा है। ठेठ में कहें तो भाजपा पर.. नाम बड़े और दर्शन छोटे.. ऊंची दुकान फीकी पकवान.. तीन का तेरह जैसे मुहावरे सटीक बैठने लगे हैं।

बता दें कि भारतीय बास्केट के क्रूड ऑयल की दर करीब 64 फीसदी तक कम हुई है। दिसंबर 2019 में इंडियन बास्केट क्रूड का रेट 65.5 डॉलर प्रति बैरल था, लेकिन सोमवार को यह सिर्फ 23.38 डॉलर प्रति बैरल तक रह गया। अप्रैल महीने में यह 19.9 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया था। दुनियाभर की अर्थव्यवस्था पर कोरोनावायरस के प्रभाव से कच्चे तेल कीमतों में बड़ी गिरावट हुई है। हालात यहां तक आ गए हैं कि पिछले दिनों अमेरिकी बाजार में इसकी फ्यूचर प्राइस नेगेटिव में चली गई थी। इसके बावजूद हमें पेट्रोलियम उत्पादों पर उसकी कीमत से लगभग तीन गुना टैक्स चुकाना पड़ रहा है। इसे लेकर विपक्ष ने केंद्र सरकार पर हमला किया है।

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दिल्ली के बाजार में पेट्रोल जहां 71.26 रुपये प्रति लीटर तो डीजल 69.39 रुपये प्रति लीटर की दर से बिक रहा है। अब सवाल यह उठता है कि दुनियाभर में कच्चे तेल की कीमत पानी से भी कम हो गई है तो हमें पेट्रोल-डीजल इतना महंगा क्यों मिल रहा है?

भारत में पेट्रोलियम पदार्थों की मांग भले ही तेजी से बढ़ी हो, लेकिन उत्पादन पर्याप्त नहीं है। ऐसे में हमें अपनी आवश्यकता का करीब 85 फीसदी कच्चा तेल आयात करना पड़ता है। जाहिर है कि अगर विदेशी बाजार में यह महंगा होता तो घरेलू बाजार में पेट्रोल-डीजल महंगा होगा और कच्चा तेल सस्ता होगा तो पेट्रोलियम उत्पाद सस्ता होगा। लेकिन हमारे देश में ऐसा हो नहीं रहा है.. आइए, हम समझाते हैं कि आपके एक लीटर पेट्रोल की कीमत में क्या क्या शामिल है।

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टैक्स बढ़ाती रही केंद्र सरकार

पिछली बार साल 2014 से 2016 के बीच कच्चे तेल के दाम तेजी से गिर रहे थे तो सरकार इसका फायदा आम लोगों को देने के बजाय एक्साइज ड्यूटी प्लस रोड सेस के रूप में अपनी आमदनी बढ़ाती रही। नवंबर 2014 से जनवरी 2016 के बीच केंद्र सरकार ने 9 बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई और केवल एक बार राहत दी। नतीजतन साल 2014-15 और 2018-19 के बीच केंद्र सरकार ने तेल पर टैक्स के जरिए 10 लाख करोड़ रुपये कमाए। वहीं राज्य सरकारें भी इस बहती गंगा में हाथ धोने से नहीं चूकीं। पेट्रोल-डीजल पर वैट ने उन्हें मालामाल कर दिया। साल 2014-15 में जहां वैट के रूप में 1.3 लाख करोड़ रुपये मिले तो वहीं 2017-18 में यह बढ़कर 1.8 लाख करोड़ रुपये हो गया। इस बार भी जब कीमतें घटनी शुरू हुई तो केंद्र सरकार ने इस पर टैक्स बढ़ा दिया।

तीन गुना टैक्स

जब आप 71 रुपये लीटर की दर से पेट्रोल खरीदते हैं तो सारा पैसा पेट्रोल कंपनियों को नहीं देते हैं। इसमें से आधा से ज्यादा पैसा तो टैक्स के रूप में केंद्र और राज्य को जाता है। देश की सबसे बड़ी ऑयल मार्केटिंग कंपनी इंडियन ऑयल से मिली जानकारी के मुताबिक इस समय दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल की कीमत एक्स फैक्ट्री कीमत या बेस प्राइस 17.96 रुपये है। इसमें केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी के रूप में 32.98 रुपये, ढुलाई खर्च 32 पैसे, डीलर कमीशन 3.56 पैसे और राज्य सरकार का वैट 16.44 रुपये होता है। राज्य सरकार का वैट डीलर कमीशन पर भी लगता है। कुल मिलाकर पेट्रोल की कीमत 71.26 रुपये हो जाती है। इसमें केंद्र और राज्य सरकार का टैक्स 49.42 रुपये है।

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