नई दिल्ली। विश्व रक्तदाता दिवस हर साल 14 जून को मनाया जाता है. इसको मनाने के पीछे विश्व स्वास्थ्य संगठन का मुख्य उद्देश्य लोगों को रक्त का दान करने के प्रति जागरुक करना है. इस दिन वैश्विक स्वास्थ्य समुदाय आम जनता को उनके कर्तव्य को याद दिलाने के लिए एक जुट होता है. कोरोना वायरस महामारी के बीच रक्तदान का महत्व एक बार फिर से काफी बढ़ गया है. महामारी के दौरान कई चुनौतियों के बावजूद कई देशों समेत विशेष रूप से भारत में रक्तदाताओं ने उन रोगियों को रक्त और प्लाज्मा दान करना जारी रखा, जिन्हें इसकी जरूरत थी.
हालांकि, पिछले महीने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने द लैंसेट के रिकवरी क्लिनिकल परीक्षण के परिणाम सामने आने के बाद से प्लाजमा थेरेपी को हटा दिया है. दरअसल मेडिकल जर्नल ने बताया किया कि ज्यादा मात्रा में एंटीबॉडी के साथ प्लाज्मा थेरेपी मिलने पर कोविड मरीज की जान को खतरा हो रहा था. वहीं डब्लूएचओ ने लोगों से कहा कि रक्तदान करना चाहिए, क्योंकि ये नेक काम है’.
माना जा रहा है कि ऐसे समय में जब स्वास्थ्य सेवा का बुनियादी ढांचा कोविड के मामलों से भरा हुआ है, तब थैलेसीमिया, एनीमिया और रक्त संबंधी अन्य बीमारियों को दूर करने के लिए रोगियों को रक्तदान की चिकित्सा सेवा लेना जरूरी है. वहीं प्रेगनेंसी के दौरान भी महिलाओं को ज्यादा खून की जरूरत होती है, जिसकी पूर्ति रक्तदान से की जाती है.
डब्ल्यूएचओ ने साल 2021 में दुनिया भर में रक्त दाताओं की इस असाधारण सेवा को उजागर करने के लिए ‘रक्त दो और दुनिया को हराते रहो’ का नारा जारी किया है. चिकित्सा संकट के समय में ये जरूरी प्रयास सामान्य और इमर्जेंसी के समय में एक सुरक्षित और पर्याप्त रक्त आपूर्ति सुनिश्चित करने में सुव्यवस्थित, प्रतिबद्ध, स्वैच्छिक रहेंगे.