नई दिल्ली। देश के जाने-माने पत्रकार कुलदीप नैयर का 95 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. नैयर ने बीती रात 12.30 बजे एस्कॉर्ट्स अस्पताल में आखिरी सांस ली. उनका अंतिम संस्कार गुरुवार दोपहर एक बजे किया जाएगा.
देश की अहम राजनीतिक घटनाओं के गवाह रहे नैयर ने अपनी आत्मकथा ‘बियॉन्ड द लाइंस’ लिख चुके हैं. इसमें पाकिस्तान में अपने जन्म से लेकर भारत में पत्रकारिता और राजनीतिक उथल-पुथल की घटनाओं को लेकर उन्होंने तमाम खुलासे किए थे. इंदिरा गांधी ने जब आपातकाल लगाया था तो 1975 से 1977 के बीच 21 महीने तक विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया था.इस दौरान मीसा के तहत जेल भी गए. तब नैयर उर्दू प्रेस रिपोर्टर थे और उन्होंने अपनी लेखनी के जरिये तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर जमकर किए .1990 में वह ग्रेट ब्रिटेन के उच्चायुक्त बने वहीं 1996 में संयुक्त राष्ट्र के लिए वह भारतीय प्रतिनिधिमंडल के दस्य रहे। 1997 में नैय्यर राज्यसभा सदस्य पहुंचे.
कुलदीप नैयर ने अपने जीवनकाल में डेढ़ दर्जन से अधिक चर्चित पुस्तकें लिखीं. इसमें इंडिया हाउस(1992), इंडिया ऑफ्टर नेहरू(1975), डिस्टेंट नबर्सः ए टेल ऑफ सब कॉन्टिनेंट(1972), द जजमेंटःइनसाइड स्टोरी ऑफ इमरजेंसी इन इंडिया(1977), वाल एट वाघा-इंडिया पाकिस्तान रिलेशनशिप(2003) प्रमुख हैं.
शास्त्री के पीएम बनने की कहानी नैयर की जुबानी: जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद प्रधानमंत्री पद के लिए जोड़-तोड़ शुरू हुई थी. लाल बहादुर शास्त्री, मोरारजी देसाई और जयप्रकाश नारायण के नाम पर अटकलें कांग्रेस के अंदर लग रहीं थीं.तब कुलदीप नैय्यर यूएनआई में थे. इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री पद के लिए मोरारजी देसाई की दावेदारी की खबर जारी कर दी. इससे पार्टी और बाहर के लोगों में मोरारजी के प्रति नाराजगी पैदा हो गई और लोग उन्हें महत्वाकांक्षी मानने लगे. मोरारजी समर्थकों के मुताबिक इस खबर से उन्हें सौ वोटों का घाटा हो गया.
नैयर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि के. कामराज ने संसद भवन में मुलाकात के दौरान उन्हें थैंक्यू कहा था. वहीं जब शास्त्री पार्टी का नेता चुने गए तो उन्हें संसद भवन की सीढ़ियों पर सबके सामने उन्हें गले लगा लिया था. जबकि मोरारजी देसाई को लगता था कि उनकी खबर से उन्हें नुकसान हुआ। शास्त्री को फायदा पहुंचाने के लिए खबर लिखी गई थी.
अपनी आत्मकथा में एक और खुलासा नैयर कर चुके हैं. लिखा है-लालबहादुर शास्त्री की दिल्ली में समाधि बनाने के पक्ष में इंदिरा गांधी नहीं थी, मगर जब ललिता शास्त्री ने आमरण अनशन की धमकी दी तो मामले की नजाकत को समझते हुए इंदिरा को फैसला बदलना पड़ा और दिल्ली में समाधि बपनवानी पड़ी.
वीपी सिंह ने दिया बड़ा ओहदा : आत्मकथा ‘बियांड द लाइंस’में कुलदीप नैयर ने काफी साफगोई से तमाम वाकये बयां किए हैं। दरअसल जब राजीव गांधी से मतभेद के कारण वीपी सिंह को कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया तो उन्होंने आरिफ मोहम्मद खान और अरुण नेहरू के साथ 1987 में अलग पार्टी का गठन किया.वीपी सिंह 1988 में इलाहाबाद से लोकसभा चुनाव जीतने में सफल रहे फिर 11 अक्टूबर 1988 को उनकी पार्टी, जनता पार्टी और लोकदल में गठबंधन हुआ और राजीव गांधी के विरोध की नींव पर एक नई पार्टी जनता दल बनी। वीपी सिंह जनता दल के अध्यक्ष बने। कुलदीप नैयर ने दावा किया था कि वीपी सिंह के जनता दल अध्यक्ष चुने जाने के दौरान हाई वोल्टेज ड्रामे की स्क्रिप्ट उन्होंने लिखी थी, जिसके इनाम के तौर पर प्रधानमंत्री बनने के बाद वीपी सिंह ने उन्हें ब्रिटेन का उच्चायुक्त बना दिया.