जिसे फ्लावर समझ रहीं थीं स्मृति ईरानी वो निकला फायर, कैसे KL शर्मा ने तोड़ दिया BJP का गुरूर?

अल्लू अर्जुन की ब्लॉकबस्टर फिल्म पुष्पा याद है. पुष्पा का एक डायलॉग बेहद फेमस हुआ था, ‘फ्लावर नहीं फायर है मैं.’ स्मृति ईरानी से चूक ये हुई कि उन्होंने किशोरी लाल शर्मा को फ्लावर समझ लिया. किशोरी लाल ‘किशोर’ नहीं थे, सियासी तौर पर बेहद प्रौढ़ हैं और उन्हें यह साबित भी कर दिया. केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेताओं ने जिस केएल शर्मा को फ्लावर समझा, वो फायर निकला. उन्होंने न केवल बीजेपी की टॉप लीडर को हराया बल्कि एक रिकॉर्ड भी कायम कर लिया. एक सांसद प्रतिनिधि ने, एक कैबिनेट मंत्री को 1,67,000 वोटों से हरा दिया. ऐसी हार तो खुद राहुल गांधी नहीं दे पाए थे, जब साल 2014 के चुनाव में उन्होंने स्मृति ईरानी को हराया था. तब करीब हार-जीत का अंतर 1,07,923 था. अब इतनी करारी हार कैसे केएल शर्मा ने दे दी, इस पर सबकी नजरें टिकी हैं.

केएल शर्मा, अमेठी और रायबरेली दोनों लोकसभा सीटों पर मजबूत पकड़ रखते हैं. वे राहुल गांधी के भी सांसद प्रतिनिधि रह चुके हैं और सोनिया गांधी के भी. वे राजीव गांधी के वक्त से कांग्रेस में हैं और उनके लिए काम करते रहे. इस बार उनकी सधी हुई रणनीति ने बीजेपी का काम बिगाड़ दिया.

केएल शर्मा, कांग्रेस के लिए पर्दे के पीछे काम करते हैं. उनके करीबी कहते हैं कि वे कांग्रेस के लिए दोनों लोकसभाओं में चाणक्य की तरह रहे हैं. उनका मैनेजमेंट गांव और ब्लॉक स्तर तक है. वे छोटे-छोटे सामुदायिक केंद्रों तक पर पकड़ रखते हैं. कांग्रेस की दोनों लोकसभाओं पर सतत जीत के लिए उन्हें जिम्मेदार भी कहा जाता है. ऐसे में जब बारी खुद की आई तो उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को ऐसे सेट किया कि ऐतिहासिक जीत दर्ज कर ली.

कैसे खिसका दी स्मृति की जमीन?

स्मृति ईरानी, ऐसा नहीं है कि 2019 की जीत के बाद अमेठी को भूल गईं. उन्होंने कई विकास के काम कराए लेकिन स्थानीय लोगों से वे वैसे ही दूर रह गईं, जैसे राहुल गांधी. अमेठी के लोगों को समझने में स्मृति ईरानी से चूक हुई. उनकी तल्ख बातें, जनता को खटकने लगीं. वे गांधी परिवार के खिलाफ आक्रामक होकर बोलतीं, जबकि अमेठी में आज भी कांग्रेस के लिए एक सॉफ्ट जगह है. वे काम कराती रहीं लेकिन स्थानीय लोगों की पहुंच से बहुत दूर रहीं. साल 1999 से जिस लोकसभा सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा हो, वहां अचानक से कांग्रेस का मुक्त हो जाना भी आसान नहीं था. स्मृति ईरानी को केएल शर्मा को हल्के में लेना भारी पड़ गया.

केएल शर्मा ने ऐसा क्या किया अचानक बदली रणनीति?

भले ही कांग्रेस ने नामांकन के आखिरी दिन केएल शर्मा के नाम पर मुहर लगाई लेकिन बहुत सधे तरीके से इन सीटों पर मेहनत चलती रही. कांग्रेस का कैडर जानता था कि केएल शर्मा यहां से चुनाव लड़ेंगे. सपा के सपोर्ट ने कांग्रेस को और मजबूत कर दिया. किशोरी लाल, कांग्रेस कार्यकर्ताओं को साधने में कामयाब हो गए. दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी से चूक ये हुई कि स्मृति ईरानी स्टार प्रचारक बनी रहीं. वे कई राज्यों में जनसभाएं कर रही थीं. लोकसभा चुनावों में जैसे ही अमेठी से ध्यान हटा, वोटर कांग्रेस के पास चले गए.

इस स्ट्रेटेजी की काट नहीं ढूंढ पाई स्मृति

केएल शर्मा की पत्नी किरण शर्मा हैं. उनकी दो बेटियां हैं. उन्होंने स्थानीय स्तर पर नाराज नेताओं से मुलाकात की, रूठे नेताओं को मानाया. गली-मोहल्ले में जनसभाएं लगाईं. ब्लॉक और बूथ लेवल पर पकड़ मजबूत की. केएल शर्मा के बारे में कहा जाता है कि स्थानीय नेताओं और ग्रामीणों के नाम तक उन्हें याद रहते हैं. उनका ‘अपनापन’ स्मृति ईरानी पर भारी पड़ गया.

गांधी परिवार, जीत के लिए कितना जिम्मेदार?

गांधी परिवार ने इस लोकसभा सीट के लिए अपना पूरा दमखम लगा दिया. प्रियंका गांधी अमेठी में टिक गईं. राहुल गांधी भी बार-बार आए. सोनिया गांधी की भावुक अपील काम कर गई और स्मृति ईरानी की नींव हिल गई. केएल शर्मा ने अपनी बेटी और पत्नी को सियासी समर में उतार दिया. वे चुनाव प्रचार करती रहीं. लोगों को लगता रहा कि केएल शर्मा जमीन से जुड़े आदमी हैं और वे हमारी पहुंच से बहुत बाहर नहीं हैं.

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