भोपाल: कांग्रेस की मध्य प्रदेश इकाई पर सीधा किसी का नियंत्रण नहीं रहा है. हालत तो ठीक बिगडै़ल घोड़े जैसी हो चली है, आलम यह है कि कोई प्रदेश प्रभारी महासचिव से अभद्रता कर जाता है तो कोई बैठकें छोड़ देता है तो कोई वरिष्ठ नेताओं पर हमले करने से नहीं चूकता. वहीं, प्रदेश संगठन इन हालातों के लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई का साहस नहीं जुटा पा रहा है.
राज्य में भाजपा सरकार के खिलाफ बने माहौल को कांग्रेस भुनाने की कोशिश में सफल होती नजर आती. उससे पहले ही पार्टी के भीतर मचा घमासान सतह पर आने लगा है. पार्टी के बड़े नेता आपसी समन्वय और एकजुट होने के दावे भले करें, मगर हो वही रहा है जो कांग्रेस की नियति रही है. गुटबाजी चरम पर है, नेता खुद सामने न आकर अपने प्यादों के जरिए सारी चालें चल रहे हैं.
हाल ही में रीवा में बैठक लेने पहुंचे कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया के साथ कांग्रेस के ही नेताओं ने अभद्रता कर डाली. उन्हें कमरे में बंद कर दिया और कहा तो यहां तक जा रहा है कि उन पर कुछ लोगों ने हाथ भी चला दिए. बावरिया से अभद्रता करने वालों को एक प्रभावशाली नेता का करीबी बताया जाता है. यह बात अलग है कि उनमें से छह को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया.
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कांग्रेस के छह कार्यकर्ताओं पर कार्रवाई किए जाने पर भाजपा के वरिष्ठ नेता गोविंद मालू ने चुटकी लेते हुए कहा, “बावरिया ने इस मामले में भाजपा के चरित्र हनन की कोशिश की थी. अब स्पष्ट हो गया है कि यह कृत्य कांग्रेसियों का था, लिहाजा उन्हें सार्वजनिक तौर पर माफी मांगना चाहिए, साथ ही सजा दुम (पूंछ) को नहीं हाथी को दी जाना चाहिए, जिसके इशारे पर यह सब हुआ.”
बावरिया के साथ हुई अभद्रता का मामला शांत पड़ता कि उज्जैन से नाता रखने वाली महिला नेत्री नूरी खान ने सीधे तौर पर चुनाव प्रचार अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया पर सोशल मीडिया के जरिए हमला बोल दिया. उन पर अपरोक्ष रूप से सामंती सोच का आरोप तक जड़ दिया. बाद में उन्होंने अपने बयान को सोशल मीडिया से हटाते हुए यू टर्न लिया और ट्वीट कर कहा कि सारा मामला पार्टी के संज्ञान में है. खान को दिग्विजय सिंह और प्रेमचंद्र गुड्डू के गुट का माना जाता है. अब देखना यही होगा कि पार्टी क्या रुख अपनाती है.
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इससे पहले कमलनाथ की बैठक से मीनाक्षी नटराजन का जाना, महिला सम्मेलन में महिला कांग्रेस अध्यक्ष मंडावी चौहान का रूठना, उज्जैन में प्रचार अभियान समिति में कई नेताओं का न पहुंचना. इतना ही नहीं कमलनाथ को एक नेता के दवाब में एक जिलाध्यक्ष को महज 15 दिन में ही हटाना, ये घटनाएं पार्टी की हालत को बयां करने के लिए काफी हैं.
नेताओं की बैठकों के अघोषित बायकॉट के मसले पर मीडिया विभाग की अध्यक्ष शोभा ओझा ने कहा, “एक तो ऐसा हुआ नहीं है. वहीं अगर ऐसा हुआ होगा तो संबंधित नेता ने इसका कारण बताया होगा. चुनाव करीब है और सब की अपनी-अपनी व्यस्तताएं हैं. लिहाजा कोई कार्यक्रम या व्यक्तिगत काम के सिलसिले में बैठक से गया होगा.”
एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, “कमलनाथ को सक्रिय राजनीति में चार दशक से ज्यादा का वक्त गुजर गया है. मगर उन्होंने कभी भी संगठन की बड़ी जिम्मेदारी का निर्वाहन नहीं किया है. मध्य प्रदेश से वे नौ बार सांसद रहे हैं मगर उनका संगठन से ज्यादा पाला नहीं पड़ा. वे स्वयं एक गुट के नेता के तौर पर पहचाने जाते रहे हैं, उन्हें संगठन को चलाने का अनुभव कम है, राज्य में कांग्रेस पूरी तरह गुटों में बंटी है, लिहाजा सबको संतुष्ट करने के फेर में कमलनाथ की ताकत भी कमजोर पड़ रही है.”
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उन्होंने कहा, “वहीं दूसरे गुटों से जुड़े कार्यकर्ता व नेता उन्हें वह अहमियत नहीं दे रहे हैं जिसके वे हकदार हैं. कांग्रेस को अनुशासित बनाने के लिए ठीक वैसे ही सख्त फैसले लेने की जरूरत है जैसे बिगडै़ल घोड़े पर काबू पाने के लिए चाबुक चलाए जाते हैं.”
कांग्रेस के सूत्रों की मानें तो रीवा में बावरिया के साथ हुई अभद्रता को लेकर राष्ट्रीय नेतृत्व नाराज है. उसने प्रदेश संगठन को अनुशासनहीन लोगों पर सख्त कार्रवाई की हिदायत दी है. यही कारण है कि रीवा के मामले में छह को निष्कासित किया गया है. मगर संगठन अनुशासनहीनों पर कार्रवाई कर पाएगा इसमें संदेह बना हुआ है.