महाराष्ट्र में बागी फैक्टर: किसका होगा क्लोज चैप्टर?

महाराष्ट्र में बागी उम्मीदवारों को मनाने के लिए राजनीतिक दलों में हलचल तेज हो गई है। सोमवार को नामांकन वापस लेने का आखिरी दिन है, और ऐसे में बागी उम्मीदवारों को मनाने का काम तेजी से किया जा रहा है। इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के आवास पर महायुति (शिवसेना, बीजेपी और एनसीपी) के नेताओं की अहम बैठक हुई। इसमें बीजेपी के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस भी शामिल हुए। बैठक में बागी उम्मीदवारों को समझाने के तरीकों पर चर्चा हुई और उन्हें अनुशासनात्मक कार्रवाई की चेतावनी भी दी गई।

बागी उम्मीदवारों की संख्या

सूत्रों के अनुसार, बैठक में यह तय किया गया कि बागी उम्मीदवारों को अंतिम बार मनाने की कोशिश की जाएगी। अगर वे मान जाते हैं, तो ठीक, वरना उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इस समय लगभग 20 बीजेपी और शिंदे गुट के बागी उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। इसके अलावा, महायुति के करीब 35 नेता भी बागी रुख अपनाकर मैदान में उतरे हुए हैं। अगर इन बागियों ने समय रहते अपना नामांकन वापस नहीं लिया, तो महायुति को चुनाव में बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है।

माहिम सीट पर खास ध्यान

महायुति के लिए सबसे बड़ा संकट माहिम सीट पर है। यहां मनसे प्रमुख राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे और शिंदे गुट की शिवसेना के सदा सरवणकर के बीच सीधा मुकाबला हो सकता है। इस सीट पर सदा सरवणकर पर नाम वापस लेने का दबाव बनाया जा रहा है, लेकिन वे अभी तक मानने के लिए तैयार नहीं हैं।

अन्य बागी सीटें

कुछ अन्य महत्वपूर्ण सीटें जहां बागी उम्मीदवारों ने नामांकन किया है, उनमें शामिल हैं:

  • पचोरा: बीजेपी के अमोल शिंदे ने निर्दलीय नामांकन किया है।
  • मुंबा देवी: अतुल शाह ने भी बागी रुख अपनाया है।
  • बुलढाणा: विजयराज शिंदे ने निर्दलीय ताल ठोक दी है।
  • ओवला माजीवाडा: डिप्टी मेयर हसमुख गहलोत ने भी बागी होकर मैदान में उतरने का फैसला किया है।

इस तरह, बागी उम्मीदवारों की संख्या बढ़ती जा रही है, जो राजनीतिक दलों के लिए सिरदर्द बन गई है। शिंदे गुट के खिलाफ बीजेपी के 9 बागी उम्मीदवार भी मैदान में हैं, जबकि एनसीपी के 7 नेता भी निर्दलीय नामांकन कर चुके हैं।

बागियों का असर

राजनीतिक दलों का मानना है कि इन बागी उम्मीदवारों का असर चुनाव परिणाम पर पड़ सकता है, खासकर छोटे राज्यों में। यदि बागी उम्मीदवार समय रहते मान जाते हैं, तो स्थिति संभल सकती है, लेकिन यदि वे नहीं मानते हैं, तो राजनीतिक दलों के मुख्य उम्मीदवारों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। इससे विरोधी दलों को फायदा मिल सकता है।

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