मणिपुर में 3 मई को शुरू हुई जातीय हिंसा 48 दिन के बाद भी थमने का नाम नहीं ले रही है। केंद्र और राज्य सरकार की शांति की अपील के बावजूद मणिपुर में मैतेई और कुकी जनजाति के बीच जातीय हिंसा जारी है। दोनों समुदाय के लोग एक-दुसरे के खून के प्यासे बने हुए हैं। सरकार, पुलिस प्रशासन और केंद्रीय सुरक्षाबलों द्वारा उठाए जा रहे हर प्रयास विफल हो रहे हैं। राज्य की बिरेन सरकार की बात मानने को कोई भी पक्ष तैयार नहीं है। इस बीच खबर आ रही है की उपद्रवियों की भीड़ ने अंधाधुंध फायरिंग की, जिसमें तैनात सेना का एक जवान घायल हो गया।
मणिपुर में 3 मई से कुकी और मैतेई समुदाय में आरक्षण को लेकर जारी हिंसा रुक ही नहीं रही है। हिंसा के 48वें दिन वेस्ट इंफाल में भीड़ ने अचानक फायरिंग करनी शुरू कर दी , जब तक सेना के जवान खुद को संभालते तब तक एक जवान को गोली लग चुकी थी। गोली लगने से जवान घायल हो गया। जिसके बाद उन्हें अस्पताल लाया गया, जहां उनकी हालत खतरे से बाहर है।
सेना ने आज सोमवार (19 जून) को बताया कि 18-19 जून की रात कांटो सबल से चिंगमांग गांव की ओर भीड़ ने अचानक फायरिंग शुरू कर दी, जिसमें एक जवान घायल हो गया। इलाके में ग्रामीणों की मौजूदगी को देखते हुए जवानों ने उपद्रवियों पर कोई जवाबी कार्रवाई नहीं की। पुरे क्षेत्र में सेना का फ्लैग मार्च जारी है।
देश के सबसे सुंदर राज्यों में से एक मणिपुर का हाल सीरिया-लेबनान जैसा हो गया है। हर तरफ तबाही का मंजर दिख रहा है। सैकड़ो घर जलाए जा चुके हैं, हजारों की संख्या में गाडियां फूंकी जा चुकी है। 100 से ज्यादा लोग इस जातीय हिंसा में अपनी जान गंवा चुके हैं। लगभग 40 हजार से ज्यादा लोगों की विस्थापित किया गया है। सेना उनकी निगरानी कर रही है। ऐसे हालातों को देखते हुए कहा जा सकता है की राज्य अब स्टेटलेस है।
किसी की जिंदगी और संपत्ति को कोई भी, कभी भी समाप्त कर सकता है। किसी का कोई कंट्रोल नहीं है, जैसा हालात लीबिया, लेबनान, नाइजीरिया, सीरिया में होता है ठीक वैसा ही हालात मणिपुर में हो गया है। मौजूदा स्थिति को देखकर ऐसा लगता है कि मणिपुर को अपनी ही आग में जलने के लिए छोड़ दिया गया है।