राजनीतिक गलियारे में उठा-पठक का दौर जारी हैं. राजनीति करने वालें और राजनीति को समझने वालें दोनों इस स्थित को भाप पाने में मुश्किल में है कि राजनीतिक पार्टिंयों का अगला कदम क्या होगा.
5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में सत्ता गवांने और लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले सपा-बसपा गठबंधन से बीजेपी सतर्क दिख रही हैं. हिंदी बेल्ट के तीन राज्यों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनाव के नतीजे प्रदेश के सियासी समीकरण पर भी सीधा असर डालते नजर आ रहे हैं.
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इन राज्यों के सामाजिक समीकरण और सियासी गणित में काफी समानताएं हैं. इनके नतीजे देश की राजनीति की दिशा तय करने वाले यूपी के लिए भी काफी अहम माने जा रहे हैं. साथ ही फूलपुर, गोरखपुर कैराना और नूरपुर जैसी हार ने बीजेपी के रणनीतिकारों को नए समीकरण तलाशने की समीक्षा के साथ सिटिंग एमपी पर भी रिपोर्ट तैयार करने में जुट गए हैं.
आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए यूपी में एक दर्जन से अधिक बीजेपी सांसदों का टिकट कटना तय माना जा रहा है. इस संकेत के बाद से दर्जन भर सिटिंग सांसद विपक्षी पार्टियों में अपनी संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी हैं.
इन सांसदों की निगाह विपक्ष की ओर
2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर पे सवार होकर कई सांसद संसद के गलियारे तक पहुंचने में कामयाब हुए थे. भाजपा ने 2014 के चुनाव में 20 से अधिक टिकट ऐसे चेहरों को दिए थे जो सपा, बसपा और कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे, और जीत हासिल किए थे.
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ये सांसद जीतने के बाद अपने क्षेत्रों का दोबारा रुख भी नहीं किए. कुछ सांसदों का बीजेपी कार्यकर्तोओं के साथ संघर्ष चलता आ रहा है या कुछ पार्टी लाइन से अलग अपना ‘स्टैंड’ रखना शुरू कर दिए.
ऐसे में माना जा रहा है कि आला कामान को भेजी गई समीक्षा रिपोर्ट की समीक्षा करने के बाद कई सिटिंग सांसदों के टिकट काट सकती हैं. सिटिंग सांसदो को भी इसकी भनक लग गई हैं और इसके लिए वे समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की गठबंधन की तरफ निगाहें लगाए हुए हैं.
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पिछले दिनों आजमगढ़ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली हुई, उसके पास के क्षेत्र से जुड़े अति पिछड़ी जाति के एक सांसद समाजवादी पार्टी के लगातार संपर्क में हैं. कुछ दिन पहले योगी सरकार के एक मंत्री के खिलाफ उनकी चिट्ठी भी वायरल हुई थी. समीक्षा रिपोर्ट की भनक लगते ही बहराइच की सांसद सावित्री बाई फुले बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल रखी थीं, कुछ दिन पहले ही पार्टी पर आरोप लगाते हुए सावित्री बाई फुले ने बीजेपी से इस्तीफा दे दिया. उसी क्षेत्र के एक सांसद के सुर भी आजकल कुछ तल्ख हैं. उनके भी विपक्ष के साथ जाने की संभावना जताई जा रही हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय सीट वाराणसी के बगल के क्षेत्र के एक सांसद भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं. वह भी दूसरे दलों में संभावनाओं पर काम कर रहे हैं. मुलायम के गढ़ से आने वाले एक सांसद का भी टिकट कटना तय माना जा रहा है. एक ओर कुंभ के जरिए यूपी में अपनी छवि चमाकाने में जुटी बीजेपी के वहां के सांसद का भी टिकट कटना तय है. पश्चिमी यूपी की बात करें तो आगरा की पड़ोस की एक सीट के धनबली सांसद को भी पार्टी दोबार टिकट देने के मूड में नहीं है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की चौपाल के दौरान भी कार्यकर्ताओं और जनता ने उनकी जमकर शिकायत की थी. ऐसे समय में इन लोगों ने दूसरी पार्टियों में जगह बनाने की जुगत तेज कर दी हैं.
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समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष गठबंधन के बाद मीडिया से बात करते हुए बीजेपी पर तंज कसते हुए ट्विट करते हुए कहा, ‘बसपा-सपा गठबंधन से न केवल भाजपा का शीर्ष नेतृत्व व पूरा संगठन बल्कि कार्यकर्ता भी हिम्मत हार बैठे हैं. अब भाजपा बूथ कार्यकर्ता कह रहे हैं कि ‘मेरा बूथ, हुआ चकनाचूर.’ ऐसे निराश-हताश भाजपा नेता-कार्यकर्ता अस्तित्व को बचाने के लिए अब बसपा-सपा में शामिल होने के बेचैन हैं.’
बसपा-सपा में गठबंधन से न केवल भाजपा का शीर्ष नेतृत्व व पूरा संगठन बल्कि कार्यकर्ता भी हिम्मत हार बैठे हैं. अब भाजपा बूथ कार्यकर्ता कह रहे हैं कि ‘मेरा बूथ, हुआ चकनाचूर’. ऐसे निराश-हताश भाजपा नेता-कार्यकर्ता अस्तित्व को बचाने के लिए अब बसपा-सपा में शामिल होने के लिए बेचैन हैं. pic.twitter.com/z9EEB0io4G
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) January 13, 2019