हनुमानजी के लाखों प्रसिद्ध मंदिरों में से एक मेंहदीपुर बालाजी राजस्थान के दौसा जिला में स्थित हैं. दो पहाड़ियों के बीच बने इस मंदिर की लोगों के बीच काफी महत्ता है. यहां भक्ति के साथ अंधविश्वास के उदाहरण भी देखने को मिलते हैं. मान्यता है कि लोगों का कहना है कि बालाजी मंदिर में ऊपरी हवाओं, दुष्ट आत्माओं, भूत-प्रेतों से छुटकारा मिल जाता है.
यहां की संकरी गलियां हनुमान जी की भक्ति में डुबोती हैं. हनुमान जी के मंदिर के साथ एक राम मंदिर भी है, जहां भगवान श्रीराम और भगवती सीता की खूबसूरत प्रतिमाएं हैं, जो काफी आकर्षक दिखती हैं. इसी मंदिर के साथ हनुमान जी की बड़ी-सी प्रतिमा है, हालांकि इस मंदिर का निर्माण कार्य अभी चल रहा है, लेकिन हनुमान जी की यह विशाल प्रतिमा दर्शकों को आकर्षित करने वाली है.
मेंहदीपुर बालाजी धाम भगवान हनुमान के 10 प्रमुख सिद्धपीठों में गिना जाता है. मान्यता है कि इस स्थान पर हनुमानजी जागृत अवस्था में विराजते हैं. श्रद्धालुओं के बीच मेंहदीपुर बालाजी को दुष्ट आत्माओं से छुटकारा दिलाने वाले दिव्य शक्ति से प्रेरित शक्तिशाली मंदिर माना जाता है.
मंदिर के पास भोग भंडार बालाजी नाम की दुकान पर प्रसाद बेचने वाले जितेंद्र का कहना है, “यहां बहुत से ऐसे लोग आते हैं, जिन पर भूत-प्रेत का साया होता है. रात 10 बजे मंदिर बंद होने के बाद वे धर्मशाला लौट जाते हैं.”
यह सत्य है या ढकोसला? इस पर जितेंद्र कहते हैं, “पता नहीं, सचमुच भूत बाधा है या लोग यूं ही ऐसा करते हैं.”
वहीं एक अन्य स्थानीय दुकानदार सुरेश का कहना है, “लोगों में भूतों की आत्मा आने की बात बिल्कुल सही है और लोग यहां आकर बिल्कुल ठीक हो जाते हैं. यहां 4-5 दिनों में असर दिखने लगता है. मैं गारंटी देता हूं कि यहां आकर हर तरह का भूत, ऊपरी हवा का प्रकोप ठीक हो जाता है.
मंदिर में चढ़ावे को लेकर उनका कहना है, “यहां सिर्फ प्रसाद चढ़ाया जाता है और कोई पैसा-वैसा नहीं लगता.” प्रसाद घर ले जाने के बारे में वे कहते हैं, “यहां से प्रसाद घर ले जाने पर भूत-प्रेत का साया साथ जाने का डर रहता है, इसलिए यहां से भोग लगा हुआ प्रसाद नहीं ले जाना चाहिए.”
हालांकि, विशेषज्ञ इस बात को पूरी तरह नकारते हैं. जाने-माने मनोचिकित्सक डॉ. समीर पारिख कहते हैं, “अलग-अलग तरह के मामले हैं, सभी को अलग तरह से देखा जाता है. लोग इस बारे में समझते हैं कि इसके पीछे कोई और कारण है. ज्यादातर मामलों की वजह मानसिक बीमारियां होती हैं.”
वे कहते हैं, “ऐसा केमिकल इम्बेरेस के कारण होता है, जो हमारे नियंत्रण में नहीं होती. ये एक हिस्सा है, दूसरा हिस्सा है कि हम-आप जिस बैगग्राउंड से हैं, कल्चर से हैं, आपके आसपास के सोशल नेटवर्क है. उन लोगों के अंदर अगर कोई मजबूत विश्वास होता है तो आपके अंदर भी वहीं विश्वास आने की टेंडेंसी बढ़ जाती है.”
उन्होंने कहा, “आप अगर ऐसी जगह पले-पढ़े हैं, जहां ज्यादातर लोग भूत-प्रेतों, ऊपरी हवा को मानते हैं, तो ये उनमें ज्यादा होता है और जब आपके आसपास के लोग उस बारे में सोचते हैं तो आप भी उसी तरह से सोचने लग जाते हैं.”
डॉ. पारिख ने कहा, “विश्वास का अपना महत्व है, लेकिन विश्वास के साथ तथ्यों का भी इस्तेमाल करना आना चाहिए, जिससे किसी को कोई परेशानी आए तो उसका समाधान मिल सके.”
बालाजी मंदिर में आरती, ढोल-नगाड़े बजने के समय ये चीजें और भी सक्रिय हो जाती हैं. इसकी क्या वजह है? इस सवाल पर उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता कि ऐसा कुछ होता है. मेरा मानना है कि सामाजिक तौर-तरीके इस पर निर्भर करते हैं. जो चीजें मन में बैठी रहती हैं, हमें आभास होता है कि वही सब हमारे सामने हो रहा है.”
उन्होंने कहा, “दरअसल, विश्वास अपने आप में एक मजबूत पहलू है. विश्वास का अपना महत्व है, लेकिन हर मामले का दूसरा पहलू भी होता है. कुछ में मेडिकल ट्रीटमेंट से भी छुटकारा पाया जा सकता है.” श्रद्धालुओं की इस विषय पर अलग-अलग तरह की विचारधारा है. कुछ लोग ऐसी धारणा का कारण मानसिक बीमारी मानते हैं तो कुछ का कहना है कि यह सब सोलह आने सच हैं.