सर्वोच्च न्यायालय पैनल के मेम्बर बोले, कृषि कानूनों को वापस लेना दुर्भाग्यपूर्ण। ….

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नई दिल्ली: देश के पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा शुक्रवार को तीन कृषि कानूनों को वापस लेने  के एलान से आंदोलनकारी किसान संगठनों में खुशी की लहार है। हालांकि, महाराष्ट्र के एक  किसान नेता अनिल घानावत ने इस निर्णय को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। वह इस वर्ष  के प्रारम्भ में कृषि कानूनों पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति के तीन मेंबर में से एक थे।
उनके सह-पैनलिस्ट अशोक गुलाटी ने कहा कि वह व्यापक परामर्श के लिए पीएम  द्वारा घोषित समिति की राय आने की प्रतीक्षा करेंगे, उसके पश्चात ही प्रतिक्रिया देंगे।
गुरु नानक जयंती के शुभ अवसर पर शुक्रवार को देश के पीएम नरेंद्र मोदी ने बीते  वर्ष  संसद द्वारा पारित तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करते हुए कहा कि कानूनों को निरस्त करने की संवैधानिक प्रक्रिया संसद के शीतकालीन सत्र में प्रारम्भ की जाएगी। सत्र 29 नवंबर से प्रारम्भ हो रहा है।
पीएम ने केंद्र, राज्य सरकारों, किसानों, कृषि वैज्ञानिकों और कृषि अर्थशास्त्रियों के प्रतिनिधियों की एक समिति बनाने की भी एलान किया, जो इस बात पर बातचीत करेगी कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को और ज्यादा प्रभावी कैसे बनाया जा सकता है, कैसे शून्य बजट खेती को बढ़ावा दिया जा सकता है और फसल प्रारूप को वैज्ञानिक ढंग से कैसे बदला जा सकता है।
शरद जोशी द्वारा स्थापित शेतकारी संगठन के एक नेता मुंबई से फोन पर एक समाचार एजेंसी से बात करते हुए घानावत ने कहा, यह किसानों और पूरे देश दोनों के लिए एक बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण फैसला है। ये कानून कम से कम कुछ स्वतंत्रता दे रहे थे। किसानों को अपनी उपज का विपणन करने के लिए। परन्तु  इन कानूनों के निरस्त होने के साथ, पुराने कानून जारी रहेंगे, वही कानून जिन्होंने सैकड़ों किसानों को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित किया है, वही कानून जो किसानों की उपज के लिए बेहतर पारिश्रमिक बाजार को रोकते हैं।
अपनी बात स्पष्ट करते हुए घानावत ने कहा कि यदि कपास को अच्छी कीमत मिलने लगे तो सरकार आवश्यक वस्तु अधिनियम का उपयोग करके स्टॉक की सीमा तय कर सकती है या निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के लिए विदेश व्यापार अधिनियम का उपयोग कर सकते हैं, जिससे कपास की कीमत कम हो जाएगी। सोयाबीन और अन्य फसलों के लिए भी यही किया जा सकता है।
घानावत ने यह भी कहा कि वह सोमवार को दिल्ली पहुंचेंगे और सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति के अन्य दो सदस्यों से मिलेंगे।
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