गोवा में एमजीपी के पास अभी भी है भाजपा की जीत की चाबी

गोवा

पणजी: आम चुनाव में भाग नहीं ले रही गोवा की महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) इस वक्त भले ही हाशिये पर पड़ी नजर आ रही हो लेकिन वह राज्य में लोकसभा चुनाव में बिना लड़े छुपा रुस्तम साबित हो सकती है।बीते दो दशकों से यह पार्टी राजनीतिक विरोधाभासों की मिसाल बन कर रह गई है। गोवा के पहले मुख्यमंत्री रहे दयानंद बंदोकर ने पार्टी की स्थापना की थी। इसका लक्ष्य नए आजाद हुए राज्य गोवा का पड़ोसी महाराष्ट्र में विलय था।

पार्टी का घोषित लक्ष्य राज्य में गैरब्राह्मण बहुजन समाज का विकास था लेकिन पार्टी पर धवालिकर भाइयों, सुदिन और दीपक, का कड़ा शिकंजा रहा है जो ब्राह्मण हैं। अभी की राजनीति में यदि देखें तो पिछले महीने भाजपा ने एजीपी के विधायक तोड़े और इसके बाद उप मुख्यमंत्री सुदिन धवालिकर को आनन-फानन में कैबिनेट से निकाल दिया। इसके बावजूद एजीपी अपनी इज्जत बचाने के कारण खुलकर अपने गुस्से का इजहार नहीं कर पाई। इसके बाद भी धवालिकर भाइयों ने आने वाले चुनावों में भाजपा का साथ देने के बारे में या इसके खिलाफ कुछ नहीं कहा है जोकि भारतीय जनता पार्टी को परेशान कर रहा है।

भाजपा ने पिछले ही महीने राज्य में अपने कद्दावर, लोकप्रिय नेता मनोहर पर्रिकर को खोया है, पार्टी को अल्पसंख्यकों और बंद खदानों के नाराज मजदूरों के गुस्से का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में एमजीपी पर उसका प्रहार उसके लिए घातक साबित हो सकता है। एक स्थानीय मराठी अखबार दैनिक हेराल्ड के संपादक राजेंद्र देसाई ने कहा, “भाजपा ने एमजीपी से बैर लेकर ‘राजनीतिक हाराकीरी’ की है। थोड़े से स्वार्थ के चलते उसने अपना बहुत बड़ा नुकसान किया है। यदि पर्रिकर जिंदा होते तो यह सब कभी नहीं करते। 2012 में जीत के बाद पर्रिकर पर दबाव था कि वह एमजीपी को छोड़ दें और उसके साथ गठबंधन में ना रहें लेकिन फिर भी मनोहर पर्रिकर ने ऐसा नहीं किया।”

देसाई ने कहा कि यदि पर्रिकर जिंदा होते वह इस बात को कभी स्वीकार नहीं करते जो भाजपा, एमजीपी के साथ कर रही है। उनके गुजर जाने के बाद ही यह सब किया गया। पिछले दो दशक से धवालिकर भाई सत्ता के साथ रहे हैं। फिर चाहे वह कांग्रेस के साथ हो चाहे भाजपा के। ऐसा बहुत कम देखने को मिला जब वे सत्ता में नहीं हों। भाजपा की चिंता का कारण परंपरागत हिंदू वोट है जो वह एमजीपी के साथ बांटती रही है। सच तो यह है कि गोवा में भाजपा का बनना और आगे बढ़ना एमजीपी के कार्यकर्ताओं की मेहनत का भी नतीजा है जिनमें से अधिकर ने पार्टी (एमजीपी) को 1990 के दशक में तब छोड़ा जब राम मंदिर की लहर बह रही थी।

मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत को भरोसा है कि एमजीपी लोकसभा चुनाव व तीन विधानसभी सीटों के उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी को समर्थन देगी जिसका मुख्य कारण उसका खुद लोकसभा चुनाव में भाग नहीं लेना है। मुख्यमंत्री ने सुदिन धवालिकर को ‘एक दूरदर्शी नेता’ बताया है।

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