उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर हलचल मचने वाली है। अयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव का ऐलान हो चुका है, और यह चुनावी जंग सिर्फ क्षेत्रीय नहीं, बल्कि दो बड़े राजनीतिक दिग्गजों के बीच नाक की लड़ाई बन चुकी है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के बीच यह मुकाबला किसी भी हाल में छोटा नहीं होने वाला है। 5 फरवरी को मतदान होगा और 8 फरवरी को नतीजे आएंगे, लेकिन यह चुनावी नतीजे केवल मिल्कीपुर की सीट नहीं, बल्कि यूपी की राजनीतिक दिशा को भी प्रभावित कर सकते हैं।
इस सीट पर उपचुनाव का मुद्दा इसलिए भी ज्यादा अहम है, क्योंकि मिल्कीपुर की सीट सपा के लिए एक प्रतिष्ठा का सवाल बन चुकी है, वहीं बीजेपी के लिए यह अयोध्या लोकसभा चुनाव के हार का बदला लेने का मौका है। तो क्या बीजेपी अपनी ताकत दिखा पाएगी और क्या सपा अपनी गहरी जड़ें यहां बरकरार रखेगी? आइए, जानते हैं इस चुनावी लड़ाई का पूरा माजरा।
मिल्कीपुर की सीट पर बीजेपी और सपा का मुकाबला
मिल्कीपुर की विधानसभा सीट पर हो रहे इस उपचुनाव की बागडोर खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संभाल रखी है। यह सीट अयोध्या लोकसभा सीट के अंतर्गत आती है, और 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यहां करारी हार का सामना करना पड़ा था। इसी हार का बदला लेने के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत इस उपचुनाव में झोंक दी है।
बीजेपी की रणनीति: हर रणनीति का इस्तेमाल
योगी आदित्यनाथ ने इस सीट पर अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए लगभग छह मंत्रियों को जिम्मेदारी दी है। इन मंत्रियों में सूर्य प्रताप शाही, स्वतंत्र देव सिंह, जेपीएस राठौर, दयाशंकर सिंह, मयंकेश्वर शरण सिंह, और सतीश शर्मा शामिल हैं। इन सभी को विशेष रूप से मिल्कीपुर में जनसंपर्क अभियान चलाने के लिए नियुक्त किया गया है। योगी ने इन मंत्रियों से कहा है कि वे “बूथवार टोली” बना कर जनता से सीधे संवाद करें और चुनाव प्रचार को और तेज करें।
बीजेपी की रणनीति यह है कि इस उपचुनाव में वे अयोध्या लोकसभा की हार का बदला लें और यह साबित करें कि पार्टी यहां पर अपनी पकड़ मजबूत कर चुकी है। इसके लिए यूपी सरकार की तरफ से रोजगार मेलों और अन्य विकास कार्यक्रमों का आयोजन भी किया गया है, ताकि वोटरों के बीच सरकार की छवि को सकारात्मक रूप से प्रस्तुत किया जा सके।
सपा की रणनीति: एकजुटता और पुराने समीकरणों पर भरोसा
वहीं दूसरी तरफ, समाजवादी पार्टी (सपा) भी इस चुनाव को गंभीरता से ले रही है और अपनी पूरी ताकत झोंक रही है। सपा ने इस सीट के लिए पहले ही अपने प्रत्याशी का ऐलान कर दिया था। सपा ने अयोध्या के सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को उम्मीदवार बनाया है। सपा का मानना है कि इस बार उनका “PDA” (यादव, पासी, मुस्लिम और दलित) समीकरण काम करेगा और उन्हें जीत दिलाएगा।
सपा ने अपने नेताओं की टीम मिल्कीपुर भेज दी है। सपा के रणनीतिकारों का कहना है कि अखिलेश यादव खुद इस उपचुनाव की कमान संभालेंगे और वह प्रचार के लिए मिल्कीपुर जाएंगे। इसके अलावा, शिवपाल यादव, इंद्रजीत सरोज और अन्य बड़े सपा नेता भी चुनावी प्रचार में सक्रिय रहेंगे। सपा की योजना है कि मिल्कीपुर सीट पर संविधान और अपने सांसद के स्वाभिमान को मुद्दा बनाकर वे लोगों से समर्थन जुटाएं।
मिल्कीपुर का सियासी समीकरण
मिल्कीपुर का सियासी समीकरण सपा के पक्ष में नजर आता है। यहां पर यादव, पासी और मुस्लिम वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है, जो सपा की पारंपरिक वोट बैंक रहे हैं। मिल्कीपुर में करीब 65 हजार यादव, 60 हजार पासी और 35 हजार मुस्लिम वोटर हैं। इसके अलावा 50 हजार ब्राह्मण, 25 हजार ठाकुर, 50 हजार गैर-पासी दलित, 8 हजार मौर्य, 15 हजार चौरासिया, 8 हजार पाल और 12 हजार वैश्य वोटर हैं। कुल मिलाकर, लगभग 30 हजार अन्य जातियों के वोट हैं।
सपा के सूत्रों का कहना है कि इस चुनाव में उनका PDA समीकरण फिर से कामयाब होगा, और सपा को इस सीट पर जीत मिलेगी। सपा के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल बन चुका है, क्योंकि यह सीट पार्टी के लिए काफी महत्वपूर्ण है।
सपा का दबदबा और बीजेपी की चुनौती
मिल्कीपुर की सीट पर इतिहास भी सपा के पक्ष में रहा है। 1967 से अब तक हुए 8 चुनावों में से 6 बार सपा जीतने में सफल रही है। 2012 में यह सीट सपा के लिए फिर से सुरक्षित हो गई थी। 2017 के चुनाव में सपा के अवधेश प्रसाद बीजेपी के बाबा गोरखनाथ से हार गए थे, लेकिन 2022 में फिर से सपा के टिकट पर अवधेश प्रसाद ने जीत हासिल की थी। अब, जब वे अयोध्या के सांसद बने हैं, तो इस सीट पर उपचुनाव हो रहा है।
यह उपचुनाव सपा के लिए जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही बीजेपी के लिए भी। पार्टी इसे एक तरह से अयोध्या लोकसभा चुनाव की हार का बदला लेने का अवसर मान रही है।