सुप्रीम कोर्ट का एक और फैसला बदलेगी केंद्र सरकार, चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति वाली समिति में नहीं होंगे मुख्य न्यायधीश

मोदी सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त और दूसरे चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से संबंधित एक बिल पेश करने की तैयारी में है। बिल आने के साथ ही कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच एक नया टकराव शुरू होने की संभावना है। इसमें बिल में उनकी सेवा की शर्तों के साथ-साथ कार्यकाल को बढ़ाने का भी अधिकार होगा। केंद्र की तरफ से इससे जुड़ा एक विधेयक राज्यसभा में पेश करने के लिए सूचीबद्ध किया गया है। सूचीबद्ध विधेयक के अनुसार, चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक चयन समिति की सिफारिश पर की जाएगी। प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष होंगे। लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नॉमिनेट एक केंद्रीय मंत्री इसके मेंबर होंगे।

केंद्र द्वारा लाई गई ये बिल सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को कमजोर करती है, जिसमें एक संविधान पीठ ने कहा था कि मुख्य चुनाव आयुक्तों (ECI) और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की सलाह पर की जानी चाहिए। साफ़ शब्दों में कहें तो उस पैनल में CJI को रखने की बात कही गई थी।

लेकिन इस कानून के आने के बाद CJI पैनल से बाहर हो जाएंगे। इस फैसले में कहा गया था कि तब तक यही व्यवस्था लागू रहेगी, जब तक संसद में इसे लेकर कानून नहीं बनाया जाता। न्यायमूर्ति के M Josef की अध्यक्षता वाली पांच-जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से दिए फैसले में ये कहा था।

पिछले कुछ समय में केंद्र सरकार और SC के बीच टकराव की स्थिति देखी गई है, फिर चाहे वो कॉलेजियम की सिफारिशों को नहीं मानना हो या फिर केंद्रीय मंत्रियों की टिप्पणियां, हर बार ये विवाद जनता के बीच खुलकर सामने आई है। हाल ही में केंद्र सरकार ने बिल में संशोधन कर सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को पलट दिया था, जिसमें दिल्ली सरकार को ग्रेड-ए अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के अधिकार दिए गए थे।

केंद्र द्वारा इस बिल की लाने की बात जैसे ही खबरों में आई दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए लिखा- ”मैंने पहले ही कहा था – प्रधान मंत्री जी देश के सुप्रीम कोर्ट को नहीं मानते। उनका संदेश साफ़ है – जो सुप्रीम कोर्ट का आदेश उन्हें पसंद नहीं आएगा, वो संसद में क़ानून लाकर उसे पलट देंगे। यदि PM खुले आम सुप्रीम कोर्ट को नहीं मानते तो ये बेहद ख़तरनाक स्थिति है

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