ये हैं वो बॉलीवुड फिल्में जो समलैंगिकों की जिंदगी और तकलीफ की सच्चाई को समाज तक लाई

नई दिल्ली: भारत में अब समलैंगिकता अपराध नही है, सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि सेक्शुअल ऑरिएंटेशन किसी भी इंसान का नीजी फैसला है और ये किसी तरह का विकार नही है. कोर्ट में फैसले पर अपनी राय रखते हुए जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने कहा कि सालों तक प्रताड़ित करने के लिए समाज को समलैंगिक समुदाय से माफी मांगनी चाहिए.

आज समलैंगिक समुदाय को अपने हिस्से का इंसाफ मिल है लेकिन इसके लिए उन्होने एक लंबी लड़ाई लड़ी है. कई तरह के माध्यमों के जरिए कार्यकर्ताओं ने और कई फिल्म निर्देशकों ने इस मुद्दे को सिनेमा में जगह दी और लोगों को इसके प्रति जागरूक करने की कोशिश की.

हालांकि सिनेमा में काफी दशकों तक समलैंगिकता को मजाक के रूप में पेश किया. लेकिन भारतीय सिनेमा में काफी ऐसी फिल्में भी आई जिसने समलैंगिकों को समाज में समान स्थान दिलाने की कोशिश की और उन्हें मजाक के पात्र होने से हटकर एक इंसान के तौर पर फिल्माया.

ये हैं वो बॉलीवुड फिल्में जिन्होने समलैंगिकों की जिंदगी और तकलीफ की सच्चाई समाज तक लाई..

  1. कपूर एंड संस – करण जोहर की इस फिल्म में फवाद खान ने एक गे की भूमिका अदा की है जिसे अपने घरवालों से अपने प्यार की सच्चाई छुपानी पड़ती है. इस फिल्म में दिखाया गया है कि समलैंगिक लोगों को किस तरह अपने रिश्तों को छुपाना पड़ता है. यहां तक की सामाजिक विरोध के चलते अपने माता-पिता को भी अपनी सच्चाई नही बता पाते हैं.

2) मार्गरिटा विद ए स्ट्रा- इस फिल्म में कल्कि की एक्टिंग ने तो लोगों का दिल छू ही लिया था बल्कि इस फिल्म के प्लॉट ने भी लोगों से खूब तारीफें बटोरी थी. फिल्म एक साधारण लड़की पर बनी है जो सलिबर्ल पाल्सी नामक बिमारी से पीड़ित होती है. फिल्म दिखाया गया है कि किस तरह वो न चाहते हुए भी एक लड़की से प्यार कर बैठती है.

3) बॉम्बे टॉकीज– चार कहानियों से मिलकर बनी ये फिल्म समलैंंगिक लोगों से जुड़े मुद्दे को भी उठाती है. फिल्म में एक कहानी रानी मुखर्जी द्वारा निभाए गए किरदार की है. जो बेदह खूबसूरत है लेकिन उनके पति एक समलैंगिक हैं. रानी मुखर्जी के पति की भूमिका रणदीप हुड्डा द्वारा निभाई गई है और साकिब सलेम उनके लवर बने हैं. फिल्म दिखाती है कि किस तरह समाज के दबाव के कारण कुछ समलैंगिक लोगों को जबरन शादी करनी पड़ती है.

4) फायर- इस फिल्म की खासबात ये है कि ये उस समय बनाई गई थी जब कोई समलैंगिकता पर सुनना तो दूर बल्कि उसके बारे में सोचने तक को गुनाह समझते थे. नंदिता दास और शबाना आजमी की इस फिल्म पर जमकर विवाद हुआ था. फिल्म दो महिलाओं पर आधारित है जो अपने पति के छोड़ जाने पर एक दूसरे से प्यार कर बैठती हैं.

5) हनीमून ट्रवेल्स– यूं तो ये फिल्म एक शादीशुदा जोड़े की जिंदगी पर आधारित है लेकिन इसमें एक कहानी ऐसे जोड़े की भी है जिसमें एक समलैंगिक है. इसमें माता-पिता और समाज के दबाव के कारण समलैंगिक होने के बावजूद एक लड़के को शादी करनी पड़ती है. जिसका असर न केवल उसकी जिंदगी पर पड़ता है बल्कि उससे उस लड़की की जिंदगी भी उतनी ही प्रभावित होती है.

6) अलीगढ़– हंसल मेहता द्वारा निर्देशित की गई यह फ़िल्म श्रीनिवास रामचन्द्र सिरस के जीवन पर आधारित है, जिसे नौकरी से उनके समलैंगिक होने के कारण हटा दिया गया था. कहानी उत्तर प्रदेश के एक विश्वविद्यालय की सच्ची घटना पर आधारित है. जिसमें श्रीनिवास रामचन्द्र सिरस (मनोज बाजपई) मराठी पढ़ाते थे. लेकिन जब उनके समलैंगिक होने का पता चलता है तो उन्हें वहाँ से हटा दिया जाता है.

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